एटा के 'बाहुबली ब्रदर्स'.. 'डकैत' से नेता बनने की चौंकाने वाली कहानी!

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एटा के 'बाहुबली ब्रदर्स'.. 'डकैत' से नेता बनने की चौंकाने वाली कहानी!
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एटा से देवेश पाल सिंह और मनीषा झा के साथ सुप्रतिम बनर्जी की रिपोर्ट

कहते हैं सियासत और बाहुबल का रिश्ता अन्योन्याश्रित है. मगर इससे पहले कि हम आपको सियासत और बाहुबल की एक नई कहानी सुनाएं, मैंने अभी-अभी जो ये भारी भरकम शब्द पटका है, पहले उसका मतलब साफ़ किए देता हूं. अन्योन्याश्रित मतलब जो एक-दूसरे पर आश्रित हों. यानी टिके हुए हों. जैसे बाहुबल सियासत पर टिका है और सियासत बाहुबल पर टिकी है.

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों में अगर मुलायम सिंह के परिवार के सिवाय कोई एक और परिवार ऐसा है, जिसके दो-दो लोग इस बार सपा के टिकट से चुनाव मैदान में हैं, तो वो एटा का वही यादव परिवार है, जिसकी कहानी यहां हम आपको सुनाने वाले हैं. एटा के अलीगंज सीट से बड़े भाई रामेश्वर सिंह यादव चुनाव मैदान में हैं, जबकि एटा सदर सीट से छोटे भाई जुगेंदर सिंह यादव अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं. इसके पीछे गणित क्या है, इसकी चर्चा तो बाद में होगी, लेकिन पहले ये जान लीजिए कि ये एटा के वो बाहुबली ब्रदर्स हैं, जिनकी रंगबाज़ी का इतिहास पुराना है.

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रामेश्वर सिंह यादव बेशक अब चुनावी सियासत के रास्ते जनता के सेवक बन चुके हों, मुलायम परिवार से सीधे कनेक्शन रखते हों, लेकिन एक दौर था, जब वो कथित तौर पर अलीगंज के एक ख़ूंखार डाकू छविराम यादव के साथ हुआ करते थे. मतलब उनके गिरोह में थे. 7 अगस्त 1981 को छवि राम के गिरोह के साथ पुलिस की एक ज़बरदस्त मुठभेड़ हुई, जिसमें नौ पुलिसवालों की जान चली गई. और इसी के साथ रामेश्वर सिंह यादव पुलिस की रडार पर आ गए. रामेश्वर पर छविराम को हथियारों की सप्लाई का इल्ज़ाम था. बाद में उन पर पुलिस की मुखबिरी कर कुछ डकैतों का सफ़ाया करवाने का इल्ज़ाम भी लगा.

तब तो जुर्म के तौबा कर रामेश्वर सिंह यादव उन दिनों सपा के बड़े नेता लटूरी यादव के क़रीब आ गए और उन्हीं के ज़रिए उन्हें अपनी लाइफ़ की पॉलिटिकल एंट्री भी मिल गई. लेकिन जुर्म के साये ने ना तो रामेश्वर का पीछा छोड़ा और ना उनके छोटे भाई जुगेंदर का. दोनों भाई लगातार सियासत की सीढ़ियां चढ़ते रहे और दोनों के ख़िलाफ़ क़ानून के बही-खातों में अलग-अलग इल्ज़ामों में भी नाम दर्ज होता रहा. फिलहाल हालत ये है कि दोनों भाइयों पर कई संगीन धाराओं में मुक़दमे तो हैं ही, योगी सरकार ने उन्हें सरकारी बही खातों में भू-माफ़िया तक घोषित कर रखा है.

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अब सवाल ये कि इतने दाग़दार अतीत के बावजूद आख़िर रामेश्वर और जुगेंद्र का सिक्का सपा में केसै चल निकला? तो जवाब है रामेश्वर के परिवार का रिश्ता सपा के बड़े नेता रामगोपाल यादव के परिवार से जुड़ जाना. रामगोपाल के बेटे की शादी जुगेंद्र सिंह यादव की साली से हुई और ये रिश्ता एटा के इन बाहुबली ब्रदर्स के लिए तरक्की के नए रास्ते खोलता चला गया. वैसे आपको बता दें कि यादव बंधु ख़ुद पर लगे सारे इल्ज़ामों को किसी भी दूसरे मंझे हुए सियासतदान की तरह सियासी साज़िश क़रार देते हैं.

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