क़िस्सा UNIT 731 का, वो जापानी लैब जिसे कहा जाता है दुनिया का सबसे बड़ा इंसानी क़त्लख़ाना
दुनिया का सबसे बड़ा इंसानी क़त्लख़ाना, पांच लाख लोगों को मौत के घाट उतारने वाली लैब, जापान की लैब में इंसानों के क़ातिल, Inside Unit 731, Japan's Gruesome WWII Human Experiment Program
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वर्ल्ड वॉर टू के बग़ैर अधूरी है जंग की कहानी
Shams Ki Zubani: इन दिनों जंग का माहौल है। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग को 50 दिन हो भी चुके हैं और पूरी दुनिया में जंग से जुड़ी बातें बातचीत का हिस्सा बन गई हैं। और अक्सर ऐसी बातचीत के दौरान दूसरे विश्व युद्ध का ज़िक़्र न हो ऐसा कभी होता नहीं है। बल्कि बात घूम फिरकर वर्ल्ड वॉर टू के दायरे में पहुँच ही जाती है। कहते हैं कि छह साल के उस दूसरे विश्व युद्ध ने पूरी दुनिया को सैकड़ों साल पीछे धकेल दिया है। दूसरा विश्वयुद्ध अब तक का शायद सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है क्योंकि इन छह सालों तक पूरी दुनिया के ज़्यादातर देश किसी न किसी शक्ल में जंग का हिस्सा बनते रहे।
उसी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दुनिया ने हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही भी देखी। और गुज़रते वक़्त के साथ धीरे धीरे जंग की कई सुनी अनसुनी कहानियां, क़िस्से और डरावने क़िस्सों की शक्ल में हमारे सामने आते रहे।
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इंसानी क़त्लगाह का सिलसिला
Story about Unit 731 : जैसे रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी इस 50 दिन पुरानी जंग के कई क़िस्से तो अब सामने आ रहे हैं। जबकि आज इंटरनेट का ज़माना है। वैसे जब भी जंग होती है, तब अनगिनत क़िस्से और कहानियों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। जिनकी सच्चाई पर हमेशा ही शक बना रहता है, जिस पर यक़ीन करने को दिल नहीं करता।
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हालांकि ये भी सही है कि जब भी कोई जंग होती है तो सैनिकों की सहूलियतों के लिए और जंग को जीतने के लिए तरह तरह के तजुर्बे तरह तरह के एक्सपेरिमेंट होते हैं। इन्हीं एक्सपेरिमेंट के दौरान ख़तरनाक हथियारों के भी प्रयोग किए जाते हैं जिन्हें जंग के मैदान में इस्तेमाल करके बाजी अपने हक़ में मोड़ने का चलन हमेशा से रहा है।
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इन्हीं तजुर्बों और प्रयोगों का नतीजा है कि दुनिया के पास तरह तरह के हथियार हैं। एक से बढ़कर एक हथियार और मिसाइलों की भरमार हो चुकी है। दुनिया के कई देशों के पास परमाणु हथियार तक हैं, वो भी किसी एक्सपेरिमेंट का नतीजा है। कुछ ऐसे ही प्रयोगों के बाद बायोलॉजिकल वेपन भी आ गए। जिसमें पारंपरिक युद्ध की ज़रूरत ही नहीं।
बस एक वायरस छोड़िये और कोरोना की तरह की महामारी से दुनिया जूझती रहेगी। एक छोटे से पूरी जंग एक झटके में जीती जा सकती है। हालांकि ऐसे किसी भी वेपन का इस्तेमाल करने की छूट किसी को नहीं है। बल्कि वो सब पाबंदी के दायरे में आता है। लेकिन ऐसी चीजों को लेकर प्रयोग तो चलते ही रहते हैं। आज की क्राइम की कहानी भी ऐसे ही एक तजुर्बे के दौर से गुजरती है जिसने इस धरती पर इंसानों की सबसे बड़ी क़त्लगाह बना डाली।
जापान का सबसे बड़ा इंसानों का क़त्लख़ाना
Shams Ki Zubani: क्या अजीब इत्तेफ़ाक है कि दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका ने अब तक के पहले और आखिरी दो एटम बम गिराकर जिस जापान की कमर तोड़कर रख दी थी, वो जापान पहले विश्व युद्ध के बाद और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान तक बेहद ताक़तवर था। और क्राइम की इस कहानी की शुरूआत भी 1930 के आस पास होती है जो क़रीब पूरे 15 साल तक के अपने सफर के बाद किसी अंजाम तक पहुँचती है।
इंसानी इतिहास की ये वो कहानी है जिसमें इंसानों द्वारा इंसानों पर किए गए रिसर्च के नाम पर जिस तरीक़े से जान ली गई, जैसे जैसे जान ली गई, सोच कह ही दहल उठता है आदमी।
ज़रा सोचिए कि कोई इंसान किसी गोली से कैसे मरता है? अजीब सा लगने वाला ये सवाल ही इस कहानी की बुनियाद है और उस तजुर्बे का पहला सूत्रवाक्य जिसकी आड़ में दुनिया का सबसे बड़ा क़त्लगाह बन गया।
यूनिट 731 जापानी लैब का वजूद
Shams Ki Zubani: इस क़त्लगाह बनने की शुरूआत होती है एक इंसान के खुद से बात करने से। वो खुद से ही सवाल करता है कि कोई इंसान किसी गोली से कैसे मरता है? कहां कहां मारने से मरता है, कितनी दूरी से मारने पर मरता है। शरीर के किस हिस्से में मारने से मरता है। वगैराह वगैराह...लेकिन अब ये बात सोच की हद तक रहती तो भी ग़नीमत है, लेकिन इस सोच को अमल में भी लाने का जब सिलसिला शुरू होता है तो दुनिया की सबसे बड़ी क़त्लगाह का वजूद सामने आता है।
असल में ये कहानी एक लैब की है, जिसकी आड़ में एक क़त्लखाना तैयार हो गया था। उस लैब का नाम था यूनिट 731। जिसे दुनिया की सबसे ख़तरनाक प्रयोगशालाओं में से एक का दर्जा हासिल है। चीन के पिंगफांग शहर में बनी ये ख़तरनाक लैब असल में जापान की इम्पीरियल आर्मी की तरफ से तैयार की गई वो लैब थी जिसको कुछ लोग टॉर्चर हाउस भी कहते थे। टॉर्चर यानी प्रताड़ना यानी ज़ुल्म-ओ-सितम का कभी ख़त्म न होने वाला सिलसिला।
इंसानों पर ख़ौफ़नाक तजुर्बे
Qissa Unit 731: असल में इस लैब में ज़िंदा इंसानों पर कुछ ऐसे ख़ौफ़नाक तजुर्बे किए जाते थे जिनके बारे में तो आमतौर पर कोई सोच ही नहीं सकता। बल्कि उसके बारे में सोचकर ही रूह फ़नां हो जाए।
जापान की इम्पीरियल आर्मी में एक चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर थे, जिनका नाम था जनरल शीरो इशी। जिनकी ज़िम्मेदारी थी कि सेना के लिए ज़रूरी हथियार और उपकरणों और उनकी उपयोगिता के बारे में रिसर्च करना। शीरो इशी को केमिकल और बॉयो मेडिकल चीज़ों के बारे में रिसर्च करने में महारत हासिल थी।
ज़ाहिर है कि शीरो इशी केमिकल और जैविक हथियारों को तैयार करने और उनके इस्तेमाल करने के मामले में विशेषज्ञ थे। उन्हें जापान की हुकूमत की तरफ से कुछ कैमिकल और जैविक हथियारों को तैयार करने के काम की ज़िम्मेदारी दी गई।
जापानी लैब का मुखिया जल्लाद जरनल
Shams Ki Zubani: दो साल की कड़ी मेहनत के बाद शीरो इशी ने अपनी एक प्रॉजेक्ट रिपोर्ट तैयार की और उसे सरकार के पास इज़ाज़त के लिए भेजी। इनके इस काम में सबसे ज़्यादा साथ दिया जनरल शीरो इशी के ख़ास दोस्त कर्नल कोईजिमो ने। जिनकी मदद से जनरल शीरो इशी के प्रॉजेक्ट को मंजूरी मिल गई लेकिन शर्त सिर्फ इतनी थी कि जिस लैब को बनाने की बात जनरल शीरो इशी ने की थी उसे जापान हुकूमत किसी भी सूरत में अपनी सरज़मी पर बनाने को तैयार नहीं हुई।
इसी बीच जापान ने 1932 में जापान ने चीन पर हमला कर दिया था और चीन के एक इलाक़े मंचूरिया पर जापान का कब्ज़ा हो गया। इसी मंचूरिया इलाक़े में मौजूद था पिंगफांग शहर। इस पिंगफ़ांग शहर में कई लैब पहले से मौजूद थी उसमें से ही एक लैब को जापानी हुकूमत के इशारे पर जनरल शीरो इशी ने टेकओवर कर लिया और अपनी ज़रूरत की लैब तैयार की जिसे नाम दिया गया यूनिट 731।
क़ैदियों पर ग़ैरइंसानी तजुर्बे
Shams Ki Zubani: कहा जाता है कि जनरल शीरो इशी असल में इंसान के नाम पर जल्लाद था, जो बहुत ही बेरहम था। जब ये लैब चालू हो गई तो शीरो इशी को तजुर्बे के लिए ज़िंदा इंसानों की ज़रूरत महसूस हुई। लिहाजा जापान की हुकूमत ने लैब की ख़ातिर चीन, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों से जंग के दौरान पकड़े गए क़ैदियों को जनरल शीरो इशी के हवाले कर दिया जाता था।
जिन पर उस लैब में जानवरों से भी बुरे सुलूक किए जाते थे। उन ज़िंदा इंसानों के शरीर में ख़तरनाक वायरस और केमिकल्स के प्रयोग किए जाने लगे। इसके साथ साथ लैब में ज़िंदा इंसानों को ऐसी ऐसी यातनाएं दी जाती थी जिसके बारे में सुनकर रूह तक कांप जाती है।
जनरल शीरो इशी ने अपने उस प्रयोग के चक्कर में कई ज़िंदा इंसानों को लैब के भीतर तड़पा तड़पा कर मार डाला। और जो नहीं मरे तो उन्हें चीर फाड़कर मार दिया गया ये देखने के लिए कि आखिर उस इंसान में केमिकल से खुद को बचाने के लिए कौन कौन से अंग काम करते हैं। बताया ये जाता है कि जनरल शीरो इशी के इस प्रयोग में क़रीब पांच लाख से ज़्यादा ज़िंदा इंसानों को तड़पा तड़पा कर मौत के घाट उतारा गया।
फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग यानी खून जमाने का प्रयोग
Shams Ki Zubani: उस लैब में फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग का नाम पर ज़िंदा इंसानों को बेहद ठंडे पानी में डुबो दिया जाता था। और पानी को इस हद तक ठंडा कर दिया जाता था कि उसमें डूबा ज़िंदा इंसान भी जम जाए। इसके बाद उस जमे हुए पानी को उबाला जाता और अलग अलग तापमान पर देखा जाता कि उसका जमे हुए इंसानी जिस्म पर कैसा कैसा असर होता।
इसी यूनिट 731 लैब का एक प्रयोग ऐसा था जो बेहद तक़लीफ़देय था। असल में यहां बंधक बनाए गए आदमियों और औरतों को जबरन शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर किया जाता था। लेकिन संबंध बनाने से पहले उनके शरीर में एक खास तरह का वायरस भी डाल दिया जाता था, ये देखने के लिए कि स्त्री और पुरुषों के संबंधों के दौरान शरीर के अलग अलग तापमान और शरीर की अलग अलग हरकतों का केमिकल पर क्या असर पड़ता है।
इतना ही नहीं महिलाओं के शरीर में वायरस डालने के बाद उन्हें गर्भवती भी किया जाता था और ये देखा जाता है कि नवजात पर केमिकल का क्या असर होता है। इस सिलसिले में कई दफ़ा महिलाओं की मौत तक हो जाती थी।
लैब में पांच लाख इंसानों का किया गया शिकार
Shams Ki Zubani: लैब में होने वाली वहशियत का अंदाज़ा शायद कोई लगा सके। यहां हर वो ज़ुल्म होता था जिसे न तो कभी क़िस्से और कहानियों में लिखा तक नहीं गया। कहते हैं कि जिन इंसानों के शरीर में केमिकल या वायरस को डाला जाता था उनके शरीर के अलग अलग हिस्सों को काट कर भी देखा जाता था। और उन अंग विहीन इंसान को गोली मारकर आग में जलाकर और ठंडे पानी में डुबो कर मारकर उस वायरस के फैलने या सिकुड़ने के असर को भी देखा जाता था।
इस पूरे तजुर्बे के दौरान जनरल शीरो इशी ने क़रीब पांच लाख लोग को अपनी वहशी हरक़तों को का शिकार बनाया।
साल 1945 में पर्ल हॉर्बर पर जापान के हमले के ख़िलाफ़ अमेरिका ने जब परमाणु हमले का प्रयोग किया और उस हमले से जापान पूरी तरह से टूट गया तो जापान की इम्पीरियल आर्मी को चीन के कब्ज़ा किए गए हिस्सों को भी छोड़ना पड़ा। इसी बीच सोवियत संघ की सेना भी चीन की तरफ से वहां पहुँच गई। सोवियत संघ की सेना ने जब यूनिट 731 को अपने कब्ज़े में किया तो वहां काम करने वाले तमाम जापानी साइंटिस्टों को अपने बंदी बना लिया।
अमेरिका ने कर ली सौदेबाज़ी
Shams Ki Zubani: बताया ये जाता है कि इस ख़तरनाक खुलासे के बाद भी अमेरिका ने बड़े ही शातिराना अंदाज में यहां भी सौदेबाज़ी करके इंसानियत का सौदा कर लिया और उन साइंटिस्टों को अपने कब्ज़े में ले लिया जिन्हें सोवियत सेना ने युद्ध बंदी बना लिया था। कहते हैं कि अमेरिका ने उन तमाम साइंटिस्टों को इस शर्त पर आज़ादी दे दी कि उन्हें उस लैब में किए गए प्रयोगों की रिपोर्ट दे दी जाए।
अब वो तमाम जगह वीरान हो चुकी हैं जहां दूसरे विश्वयुद्ध से पहले ही पांच लाख से ज़्यादा इंसानों को तड़पा तड़पा कर मौत के घाट उतारा गया। आज भी वो जगह हैं मगर अब नए ज़माने के लोगों के लिए वो टूरिस्ट स्पॉट बनी हुई हैं।
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