चेन्नई-श्रीलंका के बीच उलझी अनोखी मर्डर-मिस्ट्री, फाउंटेन-पेन की कहानी से खुला राज़
Chennai alavandar murder case
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28 अगस्त 1952 का दिन था चेन्नई जिसे मद्रास के नाम से जाना जाता था । मद्रास की एक रहने वाली महिला अपने पति जिसका नाम आलवेंद्र था उसको ढूंढते हुए उस दुकान पर पहुंची जहां पर वो काम किया करता था। वो एक पैन की दुकान पर काम करता था जो मद्रास के चाइना बाजार में थी । इन दिनों उस जगह को पैरी कॉर्नर कहते हैं । दुकान का नाम था जैम एंड कंपनी जो अपने महंगे फाउंटेन पैन के लिए मशहूर थी।
महिला की चिंता की वजह ये थी कि उसका पति एक दिन गुजर जाने के बावजूद घर नहीं पहुंचा था। दुकान पर काम करने वाले लोगों ने बताया कि वो पिछली दोपहर को ही दुकान से चला गया था। पत्नी हैरान थी कि आखिर हर रोज दोपहर का खाना खाने आने वाला पति अचानक बिना बताए कहां गायब हो गया ।
आलवेंद्र की पत्नी ने तमाम जानने वाले लोगों से संपर्क किया लेकिन आलवेंद्र का पता कहीं नहीं लगा। थक हारकर वो एक बार फिर उसी दुकान पर लौटी जहां पर आलवेंद्र काम करता था । उसने जैम एंड कंपनी के मालिक से विनती करी कि वो उसकी एफआईआर लिखाने में उसकी मदद करे। मद्रास के लॉ कॉलेज पुलिस स्टेशन में आलवेंद्र की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई। आलवेंद्र की पत्नी ने किसी पर अपना शक नहीं जताया ।
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1950 में भारत और श्रीलंका के बीच एक ट्रेन चलती थी जिसमें आधा सफर ट्रेन से तय किया जाता था जबकि बाकी का सफर समुद्र के रास्ते तय किया जाता था। ये ट्रेन चेन्नई से धनुष्कोटी के बीच चलती और फिर वहां से मुसाफिर श्रीलंका तक का सफर पानी के जहाज से करते थे। 675 किलोमीटर लंबे इस सफर को तय करने में करीब 19घंटे का वक्त लगता था।
29 अगस्त 1952 को जब ये ट्रेन मनामदुराई के पास पहुंची तो एक कंपार्टमेंट में बैठे लोगों ने टीटीई को शिकायत की कंपार्टमेंट में रखे लोहे के एक संदूक में से बदबू आ रही है। इस शिकायत पर रेलवे पुलिस ने उस संदूक को ट्रेन से उतारा और जब उसे खोलकर देखा गया तो उसमें एक आदमी के लाश के टुकड़े पड़े हुए थे। पुलिस ने लाश के निजी अंग देखे और उन्हें देखने के बाद उन्हें ये लगा कि वो लाश किसी मुस्लिम आदमी की है।
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तफ्तीश भी इसी दिशा में की गई कि कहीं से कोई मुस्लिम आदमी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई है। लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया और डॉक्टरों ने अंदाजा लगाया कि मरने वाले की उम्र 25 साल के आसपास होनी चाहिए। हालांकि डॉक्टरों का ये अंदाजा बाद में जाकर गलत ही निकला। हालांकि लाश को दूसरे पोस्टमॉर्टम के लिए चेन्नई भेजा गया और यहां पर नए सिरे से पोस्टमॉर्टम किया गया।
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इसी बीच समुद्र के किनारे गश्त कर रहे एक कांस्टेबल ने देखा कि एक डिब्बा समुद्र के किनारे पर पड़ा हुआ है । कांस्टेबल किनारे पर गया और भूरे रंग की कमीज में लिपटे उस पैकेट को खोला तो उसके होश उड़ गए। उस पैकेट में एक इंसान का कटा हुआ सिर था। दरअसल इस सिर को समुद्र किनारे मिट्टी के अंदर दबाया गया था और लहरों ने मिट्टी को हटा दिया और वो शर्ट में लिपटा डिब्बा बाहर दिखने लगा।
1952 में इस तरह के जघन्य अपराध बेहद कम हुआ करते थे लेकिन जब समुद्र किनारे कटा हुआ सिर डिब्बे में बंद मिला तो ये खबर चेन्नई से निकलने वाले हर अखबार की सुर्खियां बन गया। पुलिस को शक था कि जो कटा हुआ सिर मिला है उसका रिश्ता ट्रेन में मिले लाश के टुकड़ों से हो सकता है लिहाजा लाश का मिलान उस सिर से भी किया गया जो समुद्र किनारे चेन्नई में मिला था। मिलान बिल्कुल ठीक निकला ये सिर उसी लाश का था जो टुकड़ों में बक्से में मिली थी।
आलवेंद्र की पत्नी को भी लाश को देखने के लिए बुलाया गया। पत्नी ने एक पर एक चढ़े दांत और कान में छेद को देखकर इस बात की तस्दीक कर दी कि ये लाश आलवेंद्र की है। लाश मिल चुकी थी लेकिन आलवेंद्र को किसने कत्ल किया। इन सवालों का जवाब पुलिस को ढूंढना था ।
पुलिस ने ऑलवेंद्र के बारे में पता किया तो पता चला कि वो एक हिंदु है और दो बच्चों और पत्नी के साथ चेन्नई के ही जॉर्जटाउन इलाके में रहता था। पहले वो अंग्रेजों की सेना में काम किया करता था लेकिन 1940 में उसने सेना को छोड़ दिया और पैरी कॉर्नर की जैम एंड कंपनी नाम की दुकान में बतौर सेल्समैन काम करने लगा। हालांकि कुछ दिन बाद ही उसने प्लास्टिक का सामान बेचने का काम शुरु कर दिया और इस काम के लिए जैम एंड कंपनी के मालिक ने उसे अपनी दुकान के सामने ही छोटी जगह भी मुहैया कराई थी।
जांच में ये भी पता चला कि औरतें आलवेंद्र की कमजोरी थीं और उसके कई औरतों के साथ संबंध थे। उन दिनों फाउंटन पैन बेहद ही नायाब और महंगे होते थे। आलवेंद्र महिलाओं और लड़कियों से दोस्ती करने के लिए उन्हें गिफ्ट में फाउंटन पैन दिया करता था। फिर उनसे दोस्ती कर उनके साथ रिश्ते बनाया करता था। इसके अलावा आलवेंद्र साड़ियों का काम भी किया करता था जो महिला आलवेंद्र के पैसे नहीं चुका पाती आलवेंद्र उसके साथ भी साड़ी की कीमत माफ करने के एवज में हमबिस्तर हुआ करता था।
ऐसी ही महिलाओं में से एक महिला देवकी भी थी। देवकी एक बार जैम एंड कंपनी से फाउंटन पैन खरीदने आई और यहीं पर उसकी मुलाकात आलवेंद्र से हुई । दोनों के बीच रिश्ते बने लेकिन ज्यादा दिन तक ये रिश्ते नहीं चल सके क्योंकि देवकी की शादी प्रभाकर से होने के बाद उसने आलवेंद्र से बात करना बंद कर दिया था।
पुलिस ने तफ्तीश आगे बढ़ाई और ऐसी कई महिलाओं से संपर्क किया जिन्हें आलवेंद्र का कर्ज चुकाना था । पुलिस को लगता था कि कहीं पैसे के चलते तो आलवेंद्र का कत्ल किसी महिला ने तो नहीं कर दिया।
इसी बीच जब देवकी का नाम सामने आया तो पुलिस की एक टीम उसके घर रोयापुरम पहुंची लेकिन घर पर ताला लटका हुआ था । पड़ोसियों ने बताया कि दोनों पति-पत्नी दो तीन दिन से घर में मौजूद नहीं हैं। अब पुलिस की टीम का शक दोनों पर जाता है और पुलिस उन लोगों से पूछताछ करती है जो प्रभाकर को जानते थे।
उनसे पूछताछ के दौरान देवकी और प्रभाकर का ठिकाना तो पता नहीं लग पाया लेकिन ये मालूम चला कि प्रभाकर के घर एक नौकर काम करता था। पुलिस को उसका पता चल गया और पुलिस ने नौकर से पूछताछ की।
नौकर ने पुलिस को बताया कि 30 अगस्त 1952 को प्रभाकर और देवकी ये कहकर घर से निकल गए कि वो मुंबई जा रहे हैं प्रभाकर के घरवालों के पास। प्रभाकर का परिवार मुंबई में रहा करता था। नौकर ने ये भी बताया कि 28 अगस्त की रात को उसने देवकी की रोती हुई आवाज सुनी थी और दोनों के बीच किसी आलवेंद्र नाम के आदमी को लेकर बातचीत हो रही थी।
पुलिस को अब यकीन हो गया था कि आलवेंद्र का कत्ल देवकी और प्रभाकर ने ही किया है । हाथोंहाथ एक टीम को हवाई जहाज से मुंबई के लिए रवाना किया गया। ये शायद चेन्नई पुलिस के इतिहास में पहली बार था कि किसी केस को सुलझाने के लिए पुलिस टीम को जाहज जैसे महंगे साधन से तफ्तीश के लिए भेजा गया हो। चेन्नई पुलिस की टीम ने मुंबई पहुंचने के बाद वहां की पुलिस से संपर्क किया और प्रभाकर के परिवार तक पहुंच गए।
पुलिस को देवकी तो घर पर ही मिल गई लेकिन प्रभाकर घर पर नहीं था और उसने मुंबई में नौकरी करना भी शुरु कर दिया था। पुलिस ने प्रभाकर को भी गिरफ्तार कर लिया और हवाई जहाज से ही वापस चेन्नई आ गए। पुलिस ने दोनों से पूछताछ की तो देवकी ने बताया कि उसका आलवेंद्र से मिलना जुलना था जो बढ़कर दोनों के बीच रिश्तों तक पहुंच गया। हालांकि जब उसकी शादी हुई तो उसने आलवेंद्र से किनारा कर लिया।
एक दिन वो अपने पति प्रभाकर के साथ आलवेंद्र की दुकान पर पहुंची। वहां पर उसने प्रभाकर को आलवेंद्र से मिलाया । बातों ही बातों में आलवेंद्र ने प्रभाकर के सामने कुछ ऐसी बातें कर दी जिससे प्रभाकर के दिमाग में ये बात बैठ गई कि देवकी के शादी से पहले आलवेंद्र के साथ संबंध थे। अब वो आए दिन देवकी से इसके बारे में पूछता था और देवकी ये कहकर टाल देती थी कि ऐसा कुछ नहीं है। हालांकि उसके सवाल जवाब जब बढ़ने लगे तो देवकी को लगा कि शायद उसे बताना ही पड़ेगा।
27 अगस्त 1952 को देवकी और प्रभाकर एक फिल्म देखने गए। फिल्म देखने के दौरान ही देवकी ने माना कि उसके आलवेंद्र के साथ रिश्ते थे । उसने ये भी बताया कि आलवेंद्र अब भी उसे परेशान करता है । ये सुनकर प्रभाकर गुस्से से पागल हो गया। फिल्म देखकर लौटते वक्त पऱ प्रभाकर ने बाजार से मालाबार चाकू खरीदा । उसने देवकी को अगले दिन यानि 28 अगस्त को घर बुलाने को कहा।
देवकी आलवेंद्र के पास पहुंची और उसने बताया कि वो घर में अकेली है वो दोपहर बाद उसके घर आ सकता है। प्रभाकर ने घर के नौकर को कुछ पैसे देखकर चेन्नई घूमने के लिए भेज दिया। दोपहर में आलवेंद्र देवकी के घर पहुंचा। घर में घुसते ही वो देवकी के कपड़े उतारने लगा और उसे इधर उधार छूने लगा। ये देखकर घर में छिपे प्रभाकर ने आलवेंद्र की गर्दन पर चाकू का इतना तेज वार किया कि उसकी गर्दन लगभग अलग हो गई।
इसके बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसके कई टुकड़े किए गए। इन टुकड़ों को उसने लोहे के एक संदूक में भरे और फिर रिक्शे पर लादने के बाद उसे एगमोर रेलवे स्टेशन लेकर पहुंचा । वहां कुली की मदद से उसने संदूक को चेन्नई-सायलोन एक्सप्रेस ट्रेन में चढ़ा दिया और वहां से आ गया। रास्ते में लौटते वक्त एक पार्क में उसने चाकू फेंक दिया।
शरीर के बाकी हिस्सों को ठिकाना लगा दिया था बस सिर बाकी था । 29 अगस्त की रात को प्रभाकर रोयापुरम बीच पर पहुंचा और वहां पर एक गहरा गड्डा करने के बाद सिर को समुद्र के किनारे ही गाढ़ दिया । उसे उम्मीद थी कि सिर रेत के नीचे ही दबा रहेगा लेकिन समुद्र की लहरों ने उसे जमीन से बाहर कर दिया। इसके बाद वो देवकी के साथ 30 अगस्त को मुंबई के लिए रवाना हो गया। आलवेंद्र के कत्ल की कहानी सुलझ चुकी थी।
मामला कोर्ट में पहुंचा और ये एक एतिहासिक मुकदमा बन गया। हालत ये थी कि जब इस केस की सुनवाई होती तो वहां जमा भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता था। करीब एक साल तक चले इस मुकदमें के बाद 13 अगस्त 1953 को केस में फैसला सुनाया गया। फैसले में कोर्ट ने प्रभाकर को सात साल की सजा सुनाई जब्कि देवकी को तीन साल की सजा सुनाई गई।
इस फैसले को सुनकर हर कोई हैरान था और आज भी इस केस का जिक्र कई मामलों में किया जाता है । खासतौर पर ऐसे मामले जहां पर अनैतिक संबंधों के चलते कत्ल की वारदात की गई हो। प्रभाकर और देवकी अपने अच्छे व्यवहार की वजह से जेल से बाहर आ गए और फिर केरल में जाकर उन्हें फिर से अपनी एक नई जिंदगी शुरु की।
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