चंद सेकंड में तड़पा तड़पाकर मारने वाला हथियार

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चंद सेकंड में तड़पा तड़पाकर मारने वाला हथियार
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केमिकल वेपन, दुनिया का एक ऐसा हथियार है जो ज़ख्मी नहीं करता बल्कि तड़पा तड़पाकर मारता है। सस्ता, असरदरार और सटीक हथियार है केमिकल बम। दुनिया को अब परमाणु बम से ज़्यादा केमिकल वेपन से डर लगता है, कई देश हैं जो इस ज़हरीले और तड़पा-तड़पाकर मारने वाले हथियार का इस्तेमाल कर चुके हैं और कई इसकी फिराक में हैं।

रसायनिक हथियार से इतना ज़्यादा खौफ इसलिए है क्योंकि ये पल भर में ही हजारों–लाखों लोगों को मौत की नींद सुला देता है, कोई किसी तरह अगर बच भी गया तो बीमारियों की चपेट में आकर घुट घुटकर मरने के लिए मजबूर हो जाता है। जब तक लोगों को इस ज़हरीले हमले का अंदाज़ा लगता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

जो देश इनकी खोज में सबसे आगे–आगे दौड़ रहे थे वही आज इस कैमिकल वेपन से सबसे ज़्यादा डरे हुए हैं, और उनमें सबसे पहला नाम है अमेरिका का। अमेरिका को डर है कि सीरिया के पास ये केमिकल वेपन है, और कहीं अगर ये किसी आतंकी संगठन के लिए हाथ लग गए तो उसका पहला निशाना अमेरिका ही होगा।

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अमेरिका खुद को बहुत एडवांस्ड और चालाक समझता है, अपने दुश्मनों को भी वो धीरे धीरे खत्म कर रहा है, विरोधियों के हथियारों को रोकने की तकनीक विकसित कर रहा है लेकिन इस केमिकल बम को रोक पाना उसके लिए भी बड़ा मुश्किल है। ये किसी भी शक्ल में आ सकता है और तबाही मचा सकता है।

अमेरिका जैसे तमाम देशों को डर केमिकल वेपन से तो है लेकिन उससे भी ज़्यादा खौफ इस बात से है कि अगर ये ज़हरीला हथियार किसी गैरजिम्मेदार राष्ट्र या आतंकवादी गिरोह के हाथ लग गया या उन्होंने विकसित कर लिया तो दहशत का क्या आलम होगा।

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अमेरिका, ब्रिटेन जैसे कई देश सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद पर ये आरोप लगा चुके हैं कि उन्होंने अपने विरोधियों पर केमिकल वेपस का इस्तेमाल किया है मगर इस बात का कोई पुख्ता सबूत उनके पास नहीं है कि सीरिया ने कब और कहां इसका इस्तेमाल किया। ऐसे आरोप सद्दाम पर लगाकर अमेरिका पहले ही इराक को बर्बाद कर चुका है। यूरोपीय देशों की ये मॉड्स ऑपरेंडी ही है कि वो हर उभरते हुए देशों को ऐसे दबाने की कोशिश करते हैं।

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दरअसल अमेरिका को शक़ था कि पूर्व राष्ट्रपति ओबामा को बॉस्टन धमाकों के फौरन बाद को एक खत के ज़रिए सरीन केमिकल भेजने की कोशिश की गई थी, जिसके सीरिया से भेजे जाने का अंदेशा था। लेकिन सबूत उसका भी नहीं था। हां मगर उसके बाद से रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय बहस तेज हो गई है।

केमिकल हथियार कितना खौफनाक और खतरनाक होते हैं इसे समझने के लिए आपको ऐसे हमलों के बारे में जानना ज़रूरी है। 16 मार्च 1988 को जुमा का रोज़ था, इराक के तानाशाह सद्दाम ने इस ज़हरीले हथियार का इस्तेमाल अपने ही लोगों को मारने के लिए किया। ये त्रास्दी नहीं नरसंहार था। इराक के हलब्जा पर रासायनिक हथियारों से हमले के बाद जो मंज़र था उसे देखकर दुनिया थर्रा गई। हर तरफ लाशें ही लाशें नज़र आ रहीं थी, सड़कों पर, इमारतों पर जहां देखो सिर्फ लाशें ही लाशें। जांच में पता चला कि मरने वाले एक दूसरे को बचाने की कोशिश करते हुए मारे गए थे। हालांकि वो जिसे बचाने की कोशिश कर रहे थे वो भी मारे गए।

इराक के तानाशाह ने कुर्द लोगों को सबक़ सिखाने के लिए वहां अंधाधुंध तरीक़े से रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था, जिसमें इराक की सेना ने अपने ही 5 हज़ार से ज़्यादा नागरिकों तड़पा-तड़पा कर मार दिया था। इराकी कुर्द अन्फाल आंदोलन की वजह से मारे गए थे। कुर्दो के खिलाफ चलाए गए इस ऑपरेशन में मसटर्ड, सरिन, टबुन और वीएक्स जैसी ज़हरीली गैसों का इस्तेमाल किया गया था। आम लोगों पर किया गया दुनिया का ये पहला केमिकल अटैक था।

इस केमिकल अटैक का ऐसा असर था जो सालों तक दिखाई दिया, हादसे के बाद भी जो बच्चे यहां पैदा हुए उन पर भी इसका असर दिखाई दिया। हमले से ज़्यादातार लोगों की मौत सांसों के रूकने और दम घुटने की वजह से हुआ। पांच घंटों तक सद्दाम की सेना ने कुर्दीस्तान के इस इलाके पर ज़हरीली गैसों से हमला किया।

जो लोग इस हादसे के बाद बचने में कामयाब रह गए थे उन्होंने बताया कि जब उनके इलाके में इस गैस को गिराया गया तो उन्हें पहले सेब जैसी खुशबू महसूस हुई लेकिन उसके कुछ दूर में लोगों ने उल्टियां करनी शुरू कर दी। जब तक ये धुएं का गुबार हटा तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इन मासूम लोगों को बचाने का मौका भी किसी को नसीब नहीं हो पाया।

दुनिया जिससे कांपती है, घबराती है और परेशान है। आखिर वो रसायनिक हथियार यानी केमिलक वेपन है किस बला का नाम? कैसे ये किसी भी इंसान को चंद लम्हों में ही मौत की नींद सुला देती है या फिर ज़िंदगीभर के लिए लाचार बना देती है?

इंसानों या उनके पूरे के पूरे कुंबे को मौत की नींद सुला देना या ज़िंदगीभर के लिए लाचार बना देने वाले केमिकल वेपन को बड़े पैमाने पर तबाही मचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मौत का ये सामान गैस की शक्ल में, पानी की शक्ल में और धमाकों की शक्ल में बर्बादी फैलाते हैं। पिछले कई बरसों में बर्बादी के इस सामान का इस्तेमाल इसलिए बढ़ा है क्योंकि ये दुश्मनों को आसानी से निशाना बना सकते हैं, औऱ उन्हें संभलने का मौका भी नहीं देते हैं।

मौजूदा दौर में नर्व गैस और आंसू गैस का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है जो अमूमन भीड़ को तितर बितर करने के लिए उपयोगी है, लेकिन वो रसायनिक हथियार जो तबाही मचाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं उनमें सबसे ज़हरीला रसायनिक हथियार है।

बोटूलिनम टॉक्सिन

दुनिया का ये सबसे ज़हरीला केमिकल है, इसके ज़हरीले होने का अंदाज़ा इस बात से लगाइये कि इस केमिकल का सिर्फ एक चम्मच एक अरब लोगों को ज़िंदगी को खत्म करने के लिए काफी है। ये वो केमिकल है जिसका बहुत बारीक सा हिस्सा बोटोक्स सर्जरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो झुर्रियों को खत्म करता है।

वीएक्स

ये दुनिया का अब तक का सबसे जानलेवा केमिकल है, जिसका मतलब सिर्फ और सिर्फ मौत है। अगर ये आपके जिस्म में छुल भर गया तो आपकी पलक झपकते ही आपकी मौत तय है।

रिसिन

ये वो भयानक केमिकल है कि एक छोटे से नमक के दाने के बराबर भी हिस्सा तबाही मचाने के लिए काफी है, ये पौधों से निकलने वाला का सबसे ज़हरीला पदार्थ है। जिसका मतलब मौत से कम कुछ भी नहीं, ये वही केमिकल है जो बॉस्टन धमाकों के फौरन बाद एक लेटर में भरकर व्हाइट हाउस में ओबामा को निशाना बनाने के लिए भेजा गया था।

टेट्रोडोटॉक्सिन

समुद्र में पाई जाने वाली पफरफिश नाम की मछली से निकलने वाला ये वो ज़हर है जो मौत का संभलने का मौका नहीं देता, इसके बस छू जाने से ही 4 घंटे के अंदर इंसान तड़प तड़प कर अपनी जान दे देता है।

रसायनिक हथियारों को इस्तेमाल करने के अभी तक तीन तरीके ही सामने आए हैं, जिसमें पहला तरीका है इस ज़हरीले सामान को किसी रॉकेट, कारतूस या खान में भरकर अपने दुश्मन को निशाना बनाकर धमाका करना। दूसरा तरीका है इस ज़हरीले हथियार को हवा में घोलना, ताकि इसकी जद में आने वाले इंसान को बिना किसी चेतावनी के आराम से मौत की नींद सुला दिया जाए। जब इन दोनों तरीकों को एक साथ इस्तेमाल किया जाता है तब तबाही और भी भयानक होती है, जबकि तीसरा तरीका इन ज़हरीली गैसों को तरल पर्दाथ के तौर पर इस्तेमाल करना है। ये तरीका बहुत ही खौफनाक और घोंट घोट के मारने वाला तरीका है। इस तरीके का ज़्यादातर इस्तेमाल गैस चेंबर के तौर पर किया जाता है।

तकरीबन आधी दुनिया रसायनिक हथियारों के ढे़र पर बैठी हुई है, अमेरिका से लेकर रूस, चीन, इराक, लीबिया और यहां तक की हमारे देश के पास भी रसायनिक हथियार हैं। भारत समेत ये वो देश हैं जिन्होंने अपने रसायनिक हथियारों की घोषणा की है साथ ये संधि भी की है कि इसके इस्तेमाल से गुरेज़ करेंगे, लेकिन नार्थ कोरिया और सीरिया समेत दुनिया के कई ऐसे देश हैं जिन्होंने चोरी छुपे रसायनिक हथियारों की अच्छी खासी खेप तैयार कर ली है। लेकिन दुनिया के सामने मानने को तैयार नहीं है, इन देशों से खतरा ज़रूर है लेकिन उससे ज़्यादा इस बात का खतरा है कि उनके ये हथियार किसी आतंकवादी संगठन के हाथ न लग जाएं, क्योंकि उसके बाद जो तबाही होगी उसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है।

रसायनिक हथियारों से होने वाली तबाही दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध औऱ उसके बाद कई बार देख चुकी है, इसलिए इसके इस्तेमाल पर अंतर्राष्ट्रीय कानून बना दिया गया है। ताकि देश इसके इस्तेमाल से गुरेज़ करें। जो केमिकल वेपन कंवेनशन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनाया गया है उसके मुताबिक इसके प्रोडक्शन औऱ स्टॉक करने पर पाबंदी है। इनका इस्तेमाल दवाएं बनाने के लिए तो किया जा सकता है लेकिन किसी पर हमले के लिए इसके इस्तेमाल पर पाबंदी होगी।

वैसे आज जो देश केमिकल वेपन के इस्तेमाल के सबसे बड़े मुखालिफ बनते फिर रहे हैं वो ही कभी इन्हें बढ़ावा दिया करते थे, अमेरिका को सिर्फ सीरिया और नार्थ कोरिया से ही खतरा नहीं है। डर तो उसे इस बात का भी है कई आतंकवादी संगठनों ने भी बायो-केमिकल हथियार का विकास कर लिया है। इसका नतीजा दुनिया और खासकर अमेरिका के लिए कितना भयानक हो सकता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

इतिहास में ये पहला मौका नहीं जब दुनिया रसायनिक हमले से घबरा रही हो, इससे पहले भी दुनिया के कई देश मानवता के इस सबसे बड़े विनाशक का इस्तेमाल कर चुके हैं।

ज़हरीली गैसों का लंबा चौड़ा इतिहास है-

* प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रसायनिक हथियारों से मरने वालों की कुल तादाद 1 लाख थी, इनमें थे ज़्यादातर वो लोग थे जिनका इन हथियारों से कोई लेना देना नहीं था।

* द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमला किया जिसकी ज़हरीली गैसों की वजह से 1 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए।

* वियतनाम युद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय कानून का दुर्रूपयोग करते हुए अमेरिका ने अपने रसायनिक हथियारों से पेड़ पौधे और फसलों पर हमला किया, जिसकी वजह से लोग कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से पीड़ित हुए, उसका असर यहां आज तक दिखाई देता है..

* ईरान-इराक युद्ध के दौरान दुनिया के सबसे जानलेवा VX केमिकल का इस्तेमाल किया गया, जिसका बदला इराक ने अपने ही 5000 कुर्द नागरिकों को मारकर लिया।

कायदे से देखा जाए तो रसायनिक हथियारों का सबसे ज़्यादा दुर्रुपयोग अमेरिका ने ही किया है लेकिन आज वही अमेरिका इन्हीं रसायनिक हथियारों से घबराया हुआ।

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