हिंदुस्तान के इन हिस्सों में जाते ही क्यों गायब हो जाते हैं जहाज ? कहलाते हैं हिंदुस्तान के बरमूडा ट्रायंगल!

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नॉर्थ एटलांटिक के बरमूडा ट्रायंगल के बारे में आपने सुना होगा कि कैसे वहां पर जाने वाले जहाज अचानक गायब हो जाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में भी एक बरमूडा ट्रायंगल जैसी रहस्मयमय जगह है जहां पर जाने वाले विमान या तो समुद्र की गर्त में समा जाते हैं या फिर जमीन पर क्रैश होकर नेस्तोनाबूद हो जाते हैं ।

तमाम खोजबीन के बावजूद भी ये पता नहीं चल पाया है कि यहां पर विमान गायब होकर दुर्घटनाग्रस्त क्यों हो जाते हैं । क्या कोई चुंबकीय क्षेत्र इस इलाके के आसपास है या फिर कोई और शक्ति है जो विमान दुर्घटनाओं के पीछे है । भारत का ये बरमूडा ट्रायंगल पश्चिम बंगाल, झारखंड और उडीषा के बीच में है ।

यहां पर उड़ने वाले जहाज भी एटलांटिक के बरमूडा ट्रायंगल की तरह से गायब हो जाते हैं । किसी को पता तक नहीं चलता कि पूरी तैयारी से उड़ने वाले ये हवाई जहाज अचानक हवा में ही मौत के ताबूत कैसे बन जाते हैं ।

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इस ट्रायंगल में फंसकर अब तक 16 जहाज या तो जमींदोज हो गए हैं या फिर समुद्र में समाकर हमेशा के लिए गायब हो गए हैं। उडीषा के मयूरभंज जिले में ये सिलसिला आजादी से पहले से चल रहा है ।

सबसे पहले यहां पर 4 मई 1944 को अमेरिकी सेना का एक लड़ाकू विमान दूसरे विमान से टकरा गया था जिसमें चार लोग मारे गए थे। एक बार शुरु हुए इस सिलसले के दौरान 1944 के मई महीने में एक के बाद एक ,दो और लड़ाकू विमानों के टकराने के हादसे और हुए जिसमें दस लोगों ने अपनी जान गंवाई ।

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उडीषा के मयूरभंज के अरमाडा एयरफील्ड से उड़ने वाले ज्यादातर विमान इस ट्रायंगल में फंसकर खत्म हो गए। 1944 से शुरु हुए इस सिलसिले में आखिरी विमान दुर्घटना साल 2018 में हुई, इस हादसे में एक हॉक ट्रेनर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया हालांकि इसमें पायलट की जान बच गई।

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पिछले करीब 80 साल में इस ट्रायंगल में 16 विमान हादसे हो चुके हैं जिसमें 25 लोग अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं । हालांकि अब तक हुई किसी भी विमान दुर्घटना की वजह अब तक सामने नहीं आई है और ये अब भी दुनिया भर के लिए ये ट्रायंगल भी बरमूडा ट्रायंगल जैसा ही एक रहस्य बना हुआ है।

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अरुणाचल प्रदेश में भी गायब हो जाते हैं विमान

उडीषा का अरमाडा ही नहीं बल्कि अरुणाचल प्रदेश से लगे कई ऐसे पहाड़ी इलाके हैं जहां पर न जाने अब तक कितने विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं और इसमें कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं ।

अरुणाचल के इस दुर्गम पहाड़ी इलाकों में हादसों का सिलसिला तो बेहद पुराना है। अमेरिका के मुताबिक दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी वायुसेना के करीब 400 लोगों ने इस रुट पर अपनी जान गंवाई है ।

हालांकि किसी भी हादसे की रिपोर्ट किसी खास वजह की ओर इशारा तो नहीं करती लेकिन हालात ये हो गए थे कि दूसरे विश्वयुद्द के दौरान अमेरिकी एयरफोर्स के अफसर और सैनिक इस रुट पर जाने डरा करते थे । केवल अमेरिका ही नहीं अरुणाचल के आसपास के इलाके में भारत ने भी अपने कई विमान और हेलिकॉप्टर खोए हैं ।

इन हादसों में अब तक 100 से भी ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई है। जानकार मानते हैं कि उडीषा से उलट यहां पर ज्यादातर हादसे खराब मौसम की वजह से होते हैं । यहां मौसम कभी भी अपना रुख बदल लेता है।

हवाई रुट पर जीरो विज़बिलिटी होना तो आम बात है। कभी तेज हवाएं भी हादसों का सबब बनती हैं खासतौर पर छोटे विमान और हेलिकॉप्टर तो तेज हवाओं से मुकाबला नहीं कर पाते और दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इस इलाके में सबसे ज्यादा पवन हंस हेलिकॉप्टर हादसों का शिकार हुए हैं।

यही वजह थी कि सुखोई विमानों की तरह से पवन हंस हेलिकॉप्टरों को भी उड़ते ताबूत बोले जाने लगा था । सबसे ताजा हादसा जून 2019 में हुआ जहां पर एक छोटे विमान में सवार 13 लोगों की मौत हो गई। दुर्घटना के करीब पंद्रह दिन बाद लगातार खोजबीन के बाद विमान का मलबा मिला लेकिन जब रेस्कयू टीम विमान के पास पहुंची तो वहां उन्हें कोई भी जिंदा नहीं मिला।

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