मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर काबुल में नहीं बल्कि क़ंधार में है, वजह चौंका देने के लिए काफ़ी है

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मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर काबुल में नहीं बल्कि क़ंधार में है, वजह चौंका देने के लिए काफ़ी है
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तालिबान की तरफ से दावा किया जा रहा है कि मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर काबुल में नहीं बल्कि क़ंधार में हैं. जहां वो तालिबान के सुप्रीम लीडर अख़ुंदज़ादा से मुलाक़ात कर रहे हैं. तालिबान के मुताबिक़ वो बहुत जल्द वापस काबुल आ जाएंगे लेकिन तालिबान की थ्योरी को एक इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट कटघरे में खड़ा कर रही है.

दावा ये है कि कुछ दिनों पहले बरादर और हक़्क़ानी नेटवर्क के एक मंत्री ख़लील उर रहमान के बीच बहस हुई थी, बात इनती बिगड़ी कि नौबत हाथापाई तक पहुंच गई. हाथापाई के दौरान मुल्ला बरादर से मारपीट हुई. यही वजह है कि मारपीट के बाद मुल्ला बरादर नई तालिबान सरकार से नाराज होकर कंधार चले गए. रिपोर्ट के मुताबिक जाते वक़्त बरादर ने कहा था कि अफगानिस्तान को ऐसी सरकार नहीं चाहिएअब आपको बताते हैं कि आखिर तालिबान की नई सरकार में गुटबाजी और टकराव की वजह क्या है ? आखिर मुल्ला बरादर के खिलाफ हक्कानी ग्रुप क्यों खड़ा है ?

एक रिपोर्ट के मुताबिक हक़्क़ानी नेटवर्क और कंधारी तालिबान के बीच लंबे अर्से से कुछ मुद्दों पर मतभेद मौजूद थे और उन मतभेदों को काबुल पर तालिबानी कंट्रोल ने सीधी जंग में बदल दिया. हक़्क़ानी नेटवर्क का दावा है कि तालिबान की जीत में उसका सबसे बड़ा रोल हैं,ऐसे में बड़ा रोल है तो ईनाम के तौर पर नई सरकार में हिस्सेदारी भी सबसे बड़ी होनी चाहिए.

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वही दूसरी ओर बरादर ने नई सरकार में सिर्फ़ और सिर्फ़ मौलवी और तालिबान शामिल हों ऐसा हरगिज नहीं चाहते।इसी मुद्दे को लेकर दोनों गुटों में तलवारें खिंच गई है,सरल शब्दों में समझे तो सत्ता में ताकत की लड़ाई शुरू हो गई है. नई सरकार में तालिबान के कट्टरपंथी और तालिबान के नरमपंथियों में सीधी जंग है. बरादर को लगता है कि डिप्लोमेसी की वजह से अमेरिका ने 20 वर्षों के बाद अफगानिस्तान छोड़ा है

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डिप्लोमेटिक चैनल में उनकी अहम भूमिका रही और उसके चलते तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता मिली है जबकि हक़्क़ानी नेटवर्क मानता है कि बंदूक की जीत हुई है. अमेरिका ने तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़ा है दोनों गुटों में विवाद के चलते काबुल में अंतरिम सरकार के एलान के बावजूद कई विभागों में काम नहीं हो रहा है. कई मंत्रियों ने अभी कामजाज नहीं संभाला है.

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तालिबान के अंदर फूट और झड़प को लेकर हक्कानी गुट के नेता अनस हक्कानी की सफाई भी आई है. पूरा तालिबान एकजुट है और किसी के बीच कोई विवाद नहीं है. सभी लोग इस्लामिक और अफगानी वैल्यू को ध्यान में रखते हुए एक साथ आगे बढ़ रहे हैं.

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बड़ी बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की टेरर लिस्ट में हक्कानी नेटवर्क का नाम है. हक्कानी नेटवर्क की स्थापना खूंखार आतंकी जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी. लेकिन अब ये नेटवर्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के हाथों की कठपुतली है. आज हक्कानी नेटवर्क का आतंकी यानी सिराजुद्दीन हक़्क़ानी तालिबान की नई सरकार में गृह मंत्री हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक तालिबान की नई सरकार में बरादर का कद पाकिस्तान के इशारे पर ही कतरे गए हैं

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