Taliban 2.0 : इन 4 नेताओं के इर्दगिर्द रहेगी तालिबान की सत्ता, जानें पूरी डिटेल
AFGHANISTAN 'S NEW RULERS
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तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में बड़ी ही आसानी से सत्ता हथिया ली। काबुल में तालिबान की एंट्री के बाद अशरफ गनी और उप राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह ने देश छोड़ दिया है। ऐसे में अब सवाल है कि अफगानिस्तान की सत्ता किन तालिबान नेताओं के हाथ में आएगी? इस सवाल के जवाब में एक नाम पर सबसे है ज्यादा चर्चा है, वो है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ।
कौन है बरादर
तालिबान के मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति घोषित किए जाने की संभावना है। हालांकि अभी अफगानिस्तान में नेतृत्व का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है। खबर है कि तालिबान के बड़े नेता राजनीतिक तौर पर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि समूह अलग-अलग धड़ों और जनजातियों और उनके समर्थकों के हित साधने में लगा हुआ है। फिलहाल, कहा जा रहा है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, मौलवी हैबतुल्लाह अखुंदजादा जैसे कई नेताओं का नाम अहम पदों के लिए सबसे आगे चल रहा है।
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आपको बता दें कि संगठन में नंबर दो और इसके राजनीतिक विंग के प्रभारी मुल्ला अब्दुल गनी बरादर नई सरकार का नेतृत्व करने की संभावना है। वो कंधार के दोहा से काबुल पहुंचे और नए शासन के पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लिया। बरादर तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक है, जो अब विद्रोही समूह के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है और दोहा में समूह की वार्ता टीम का हिस्सा है। मुल्ला बरादर पोपलजई पश्तून जनजाति से संबंधित हैं और पहले मुल्ला मुहम्मद उमर के साथ तालिबान के सह-संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन चार लोगों में से एक है, जिसने वर्ष 1994 में अफगानिस्तान में तालिबान का गठन किया था।
जब बरादर ने NATO सैन्य बलों के खिलाफ विद्रोह किया था
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साल 2001 में जब अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान पर हुए आक्रमण में तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया था तब वो नेटो सैन्य बलों के खिलाफ विद्रोह के प्रमुख बन गया था।
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जब बरादर गिरफ्तार हुए थे
बाद में फरवरी 2010 में अमेरिका और पाकिस्तान के एक संयुक्त अभियान में उन्हें पाकिस्तान के कराची शहर से गिरफ्तार कर लिया गया था। साल 2012 तक मुल्ला बरादर के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी। उस समय अफगानिस्तान सरकार शांति वार्ता को बढ़ावा देने के लिए जिन कैदियों को रिहा करने की मांग करती थी उनकी सूची में बरादर का नाम प्रमुख होता था। सितंबर 2013 में पाकिस्तानी सरकार ने उसे रिहा कर दिया, हालांकि ये स्पष्ट नहीं हो सका कि वो पाकिस्तान में ही रुका या कहीं और चला गया।
8 साल जेल में बिताए
बरादर ने आठ साल क़ैद में बिताए और तभी रिहा किया गया जब ट्रम्प प्रशासन ने 2018 में तालिबान के साथ बातचीत शुरू की। उन्होंने नौ सदस्यीय तालिबान टीम का नेतृत्व किया, जिसने अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि ज़ाल्मय खलीलज़ाद के साथ बातचीत की। वह दोहा समझौते के दो हस्ताक्षरकर्ता थे।
अमेरिका इस शर्त पर अपने सैनिकों को वापस लेने के लिए सहमत हो गया कि तालिबान अल-कायदा या आईएसआईएस को आश्रय नहीं देगा और युद्ध को समाप्त करने के लिए एक राजनीतिक समझौते पर पहुंचने के लिए अन्य अफगानों के साथ बातचीत करेगा।
यह स्पष्ट नहीं है कि बरादार ने अब पाकिस्तान के साथ अपनी शांति स्थापित कर ली है, जिसने वार्ता के माध्यम से तालिबान का हाथ थाम लिया था। लेकिन अगर वह नई सरकार का मुखिया बनता है तो उसके पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठानों - सेना और आईएसआई - की तुलना में अधिक स्वतंत्र दिमाग होने की संभावना है।
मुल्ला मोहम्मद याकूब
मुल्ला उमर का 31 साल का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब तालिबान की सेना में ऑपरेशन हेड की भूमिका में है। कहा जा रहा है कि नई सरकार में उसे बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। याकूब अमेरिका के साथ हुई चर्चा में तालिबान के प्रतिनिधिमंडल या अंतर अफगान वार्ता का हिस्सा नहीं था। वो तालिबान के नेतृत्व परिषद रहबरी शुरा का हिस्सा है, जिसे क्वेटा शुरा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि 2001 में सत्ता से हटाए जाने के बाद कई सदस्य पाकिस्तान के इस शहर में रहते थे।
मुल्ला खैरुल्लाह खैरख्वा और मुल्ला मोहम्मद फज्ल
दोनों की उम्र 54 साल है और ग्वांटनामो बे के पांच बंदियों में शामिल हैं। तालिबान के सत्ता से बाहर जाने के कुछ महीनों में ही इन्हें पकड़ लिया गया था। हालांकि, मई 2014 में अमेरिकी सैनिक बोई बर्गडाल के बदले इन्हें छोड़ दिया गया था। खैरख्वाह भी पोपलजई है और पिछली तालिबान सरकार में आंतरिक मंत्री रहा था। दुर्रानी जनजाति से आने वाला फज्ल डिप्टी डिफेंस मिनिस्टर था।
सिराजुद्दीन हक्कानी
अभी तक यह साफ नहीं है कि अपने पिता जल्लालुद्दीन से हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व हासिल करने वाला सिराजुद्दीन हक्कानी नई व्यवस्था का आधिकारिक हिस्सा बनने के लिए सामने आएगा।
हालांकि वो फैसले और कार्रवाई में अहम भूमिका निभाएगा। 2007 से ही वह UNSC के प्रस्ताव 1272 के तहत आतंकी है और उस पर 5 मिलियन डॉलर का अमेरिकी इनाम है।हक्कानी नेटवर्क तालिबान से संबद्ध एक आतंकवादी इकाई है, लेकिन इससे अलग है और तालिबान के भीतर पाकिस्तान के आईएसआई के सभी समूहों के सबसे करीब है।
उसे पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में स्थायी ठिकाना मिल गया है और अल-कायदा के साथ उसके मजबूत संबंध हैं। दोहा वार्ता के दौरान तालिबान के दो सदस्यों काफी हाई लाइटेड रहे पहले हैं, वो थे शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई, जो 2012 से दोहा में तालिबान का राजनीतिक कार्यालय चलाते थे, और दूसरे हैं जाने-माने मुख्य प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद, जिन्होंने पहली बार मंगलवार यानी की 17 अगस्त को ही अपना चेहरा काबुल में रिवील किया था।
फिर सबसे छोटा हक्कानी भाई अनस है, जो हक्कानी नेटवर्क का सार्वजनिक चेहरा रहा है। उन्होंने बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति करजई और अपदस्थ अशरफ गनी सरकार के सदस्यों के साथ एक बैठक में तालिबान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, जहां पर जो सरकार गठन को लेकर बातचीत की गई। तो कुल मिलाकर इन चार नेताओं के अलावा कुछ और नेता भी है, जो अहम भूमिका निभाएंगे, लेकिन माना जा रहा है कि ये चारों ही सबसे शक्तिशाली होंगे।
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