5 साल तक मरने वाला क़ातिल के साथ था, फिर भी वो करता रहा क़त्ल का इंतज़ार
mossad operation in revenge of munich olympic killings
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5 सितंबर 1972 जर्मनी के म्यूनिख (MUNICH OLYMPICS) शहर में ओलंपिक खेल चल रहे थे कि अचानक फिलिस्तीनी आतंकी संगठन PLO ( PALESTINE LIBERATION ORGANIZATION) ने ओलंपिक में भाग लेने आए इज़रायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। बंधक बनाने के तुरंत बाद ही आतंकियों ने दो खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया।
जबकि बाकी बंधक बनाए गए खिलाड़ियों को छोड़ने के एवज में इज़रायली जेल में बंद करीब दो सौ फिलिस्तीनी आतंकियों की रिहाई की मांग कर रहे थे । जब इजरायल नहीं माना तो PLO ने बाकी इज़रायली खिलाड़ियों को भी मौत के घाट उतार डाला। कुल मिलाकर ओलंपिक में भाग लेने आए 11 खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
इज़रायली नागिरकों की मौत से पूरा इज़रायल गुस्से में था। सभी बदले की मांग कर रहे थे। अपने निर्दोष नागरिकों की मौत से सरकार भी बेहद गुस्से में थी और उसने इस पूरे आतंकी हमले में शामिल आतंकियों को मौत के घाट उतारने का जिम्मा इज़रायल की खुफिया एजेंसी मौसाद (MOSSAD) को सौंपा ।
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वक्त गुजरता गया और म्यूनिख हमले में शामिल आतंकियों को मौसाद चुन-चुन कर मौत के घाट उतारती गई। मौसाद ने हमले में शामिल ज्यादातर आतंकियों और साजिश रचने वालों को मार डाला था लेकिन म्यूनिख हमले के मास्टरमाइंड अली हसन सालेह (ALI HASSAN SALAMEH) का कोई पता नहीं चल पा रहा था।
अली हसन को “RED PRINCE” के नाम से भी जाना जाता था और वो अरब के एक टॉप कमांडर का बेटा था जो इज़रायल के साथ 1948 के युद्ध में मारे गए थे। लेबनान के बेरूत (BEIRUT) में रहने वाला अली हसन PLO के नेता यासिर अराफत का बेहद खासमखास था, कहा तो ये भी जाता है कि अगर अली हसन जिंदा होता तो यासिर अराफत (YASSER ARAFAT) की जगह वो PLO का शीर्ष नेता होता। अली हसन अपनी रंगीन मिजाजी के लिए जाना जाता था। उसकी छवि एक प्लेबॉय (PLAYBOY) की थी जिसे शराब पीना और लड़कियों का शौक था।
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अली हसन की लाइफ स्टाइल का अंदाजा इस बात से ही लगा लीजिए कि उसकी शादी बला की खूबसूरत लेबनानी मॉडल और ब्यूटी क्वीन जॉर्जीना रिज़्को (GEORGINA RIZK) के साथ हुई थी। हालांकि अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मौसाद अली हसन की परछाई को भी नहीं छू पाया था।
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उनका एक एजेंट म्यूनिख हमले के बाद से ही अली हसन की तलाश में लेबनान के बेरूत और सीरिया के दम्सकस में रह रहा था। काफी खोजबीन करने के बाद उस एजेंट को पता चला कि अली हसन बेरूत में रहता है । ये जानकारी उसने मौसाद हेडक्वार्टर को दी और तब अली हसन को ठिकाने लगाने के प्लान की शुरुआत हुई।
साल 1974 में मौसाद ने अली हसन को खोज निकालने वाले एजेंट को बेरूत भेजा। इस एजेंट को नाम दिया गया एजेंट डी, एजेंट डी को खासतौर पर कहा गया था कि वो केवल अली हसन पर निगाह रखेगा लेकिन उससे कभी भी मिलेगा नहीं । मौसाद को लगता था कि अली हसन एजेंट डी को पहचान जाएगा और इस वजह से उनके जासूस की जान खतरे में आ सकती है। 1965 में सीरिया में अपने एजेंट एली कोहने का पकड़े जाने और उसकी सरेआम फांसी से मौसाद दबाव में था । मौसाद के आला अधिकारी नहीं चाहते थे कि उनका कोई भी एजेंट एली कोहन जैसी मौत मारा जाए।
एजेंट डी बेरूत के इंटरनेशनल होटल में रहने लगा। अली हसन इसी होटल की जिम में कसरत करने आता था। एजेंट डी भी उसी जिम में कसरत करने जाने लगा और वो अली हसन को कसरत करते हुए देखता था लेकिन जैसा की मौसाद की तरफ से आदेश था उसने कभी भी अली हसन से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश नहीं की। छह महीने का वक़्त बीत चुका था एक दिन एजेंट डी जब जिम में कसरत कर रहा था।
इत्तेफ़ाक से उस दिन जिम में कोई नहीं था। अचानक उसे अपने पीछे एक आवाज सुनाई दी जिसने एजेंट को कहा कि आप ठीक तरह से कसरत नहीं कर रहे हैं मेरे दोस्त। एजेंट ने मुड़ कर देखा तो वो हैरान रह गया खुद अली हसन उसके पीछे खड़ा हुआ था। इसके बाद अली हसन ने एजेंट को वो कसरत कर के दिखाई और दोनों में बातचीत शुरु हो गई। अली हसन ने उससे पूछा कि क्या वो स्क्वैश खेलना जानता है । एजेंट ने कहा कि वो टेनिस खेलना जानता है और अली हसन ने उसे बताया कि वो स्क्वैश खेलने के लिए एक पार्टनर की तलाश है ।
इसके बाद एजेंट और अली हसन ने साथ में स्क्वैश (SQUASH) खेलना शुरु कर दिया। मौसाद के लोग एजेंट के अली हसन के मिलने जुलने की वजह से घबराए हुए थे लेकिन जब एजेंट ने उनको विश्वास दिलाया कि उसे कुछ नहीं होगा तब मौसाद की तरफ से मामला आगे बढ़ाने के लिए हरी झंडी दे दी गई। अली हसन और एजेंट की बीच दोस्ती बढ़ती गई और एक दिन अली हसन उसे अपने घर लेकर गया । अपनी बीवी जॉर्जीना रिज़को से मिलाया अपना पूरा घर भी दिखाया ।
इसके बाद कई बार अली हसन एजेंट को अपने घर बुलाता है। उसे कई पार्टियों में लेकर जाता है और उसको कई गिफ्ट्स भी देता है। इस बात से बेखबर कि जिसे वो अपना दोस्त समझ रहा है दरअसल वो उसकी मौत का एजेंट है। एजेंट डी अली हसन को मारने के कई प्लान मौसाद को भेजता है और आखिरकार बेरूत मे आने के चार साल बाद अक्टूबर 1978 में अली हसन को मारने के एक प्लान को मंजूरी दी गई।
दरअसल अली हसन अपने घर से निकलकर अपने दफ्तर जाया करता था । हसन के दफ्तर के नीचे कार पार्किंग के लिए केवल तीन ही जगह थीं । प्लान ये था कि इन तीन पार्किंग में से एक पार्किंग में विस्फोटक भरी कार पार्क कर दी जाएगी और जब अली हसन अपनी कार से वहां पहुंचेगा तो कार को उड़ा दिया जाएगा। ऑपरेशन की तैयारी होने लगी । इस ऑपरेशन मे मौसाद की एक महिला एजेंट को भी शामिल किया गया जिसे धमाका करना था।
मूलतौर पर वो ब्रिटिश नागरिक थी लेकिन वो मौसाद के लिए काम करती थी । नाम था एरिका चैम्बर्स । चैम्बर्स ईसाई थीं और साथ ही वो एक ब्रिटिश नागरिक भी थीं ऐसे में उस पर शक की गुजांइश बेहद कम थी। एरिका लेबनान पहुंच जाती है और बेरूत में अली हसन के दफ्तर के सामने वाली बिल्डिंग में एरिका एक फ्लैट किराये पर लेती है जहां से वो पार्किंग की जगह साफ नजर आती थी ।
अब पूरे ऑपरेशन के लिए विस्फोटक का इंतजाम करना था । विस्फोटक लाने के लिए एजेंट डी जोर्डन जाता है। विस्फोटक को फर्नीचर के अंदर छिपा कर बेरूत लाना था । हालांकि मुश्किल इस बात की थी कि विस्फोटक को बेरूत तक लाने के लिए एजेंट डी को पहले जॉर्डन ( JORDAN) से सीरिया (SYRIA) बार्डर पार करना था और फिर सीरिया से लेबनान ।
दोनों ही बॉर्डर पर काफी सख्त चेकिंग हुआ करती थी लेकिन एजेंट डी ने मिशन पूरा करने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। उसने फर्नीचर को अपनी कार में लोड किया और फिर जोर्डन से लेबनान के लिए निकल गया । रास्ते में दोनों ही बार्डर पर चेकिंग की गई लेकिन लगभग सौ किलो विस्फोटक को फर्नीचर के अंदर इतनी सफाई से छिपाया गया था कि एजेंट डी साफसुथरा बच निकला।
बेरूत पहुंचने के बाद एजेंट डी ने ये पूरा विस्फोटक एक और मौसाद एजेंट को दे दिया। इस एजेंट का काम था कार में विस्फोटक फिट करना और उसे उस इमारत की पार्किंग तक पहुंचाना जहां पर अली हसन का दफ्तर था। विस्फोटक का डेटोनेटर एरिका चैम्बर्स तक पहुंच चुका था । जनवरी 1979 में ही ऑपरेशन को मौसाद की तरफ से हरी झंडी मिल चुकी थी।
22 जनवरी 1979 को तयशुदा वक्त पर अली हसन दो कारों के साथ अपने दफ्तर पहुंचा । दफ्तर के सामने वाले फ्लैट में बैठी एरिका ने कार में फिट हुए विस्फोटक में धमाका करने के लिए रिमोट का बटन दबा दिया। सौ किलो विस्फोटक से लदी कार में जब धमाका हुआ तो सड़क पर कोहराम मच गया। धमाका इतना जबरदस्त था कि धमाके की जगह से कई सौ मीटर दूर की इमारतों की खिड़कियों के कांच टूट गए।
इस धमाके में अली हसन के चार बॉडीगार्ड मौके पर ही मारे गए। अली हसन बुरी तरह से घायल हो गया उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उसकी मौत हो गई। हालांकि इस धमाके की चपेट में चार बेगुनाह लोग भी आ गए जबकि 16 लोग घायल हो गए।
धमाका करने के तुरंत बाद एजेंट डी, एरिका और कार में विस्फोटक फिट करने वाला एजेंट बेरूत से भाग निकले और इज़रायल पहुंच गए। इस तरह से मौसाद ने इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया । मौसाद के इतिहास में इस ऑपरेशन को सबसे कामयाब ऑपरेशनों में से एक माना जाता है।
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