लखनऊ सहकारी बैंक से 146 करोड़ रुपए ट्रांसफर करने की दिलचस्प कहानी, जान लीजिए

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लखनऊ सहकारी बैंक से 146 करोड़ रुपए ट्रांसफर करने की दिलचस्प कहानी, जान लीजिए
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संतोष शर्मा के साथ चिराग गोठी की रिपोर्ट

UP Co-operative Bank Fraud Case : कभी आपने ये सोचा होगा कि कोई बैंक फ्राड करने के लिए एक करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दे, लेकिन ये सच है। ऐसा ही हुआ है और वो भी लखनऊ में। यहां बैंक फ्राड करने के लिए बाकायदा खर्चा किया गया, प्लानिंग की गई, हैकर बुलाया गया, लेकिन इतना सब करने के बाद भी आरोपी पकड़े गये। आखिरी मौके पर साइबर ठग गच्चा खा गए और कानून के शिकंजे में फंस गए। नहीं तो 140 करोड़ रुपए की ठगी हो जाती।

दिलचस्प बात ये है कि इस फ्राड में ठेकेदार, आम लोग, बैंक के पूर्व एवं वर्तमान कर्मी समेत कई लोग शामिल थे। बताया जा रहा है कि बदमाशों ने वारदात को अंजाम देने के लिए बाकायदा 18 महीने की प्लानिंग की। इसके लिए एक करोड़ रुपए खर्च किए और आठ बार असफल हुए। इसके बाद 146 करोड़ की धोखाधड़ी की। 16 अक्टूबर 2022 को शनिवार के दिन लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश कॉपरेटिव बैंक से 7-8 खातों में 146 करोड़ रुपए की रकम ट्रांसफर हुई। अगले दिन जब बैंक मैनेजर बैंक पहुंचा तो उसके होश उड़ गए। तुरंत पुलिस को बुलाया गया। साइबर टीम ने तुरंत एक्शन लेते हुए सारे खाते फ्रीज कर दिए, जिसमें इतनी बड़ी रकम ट्रांसफर हुई थी।

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साइबर क्राइम पुलिस ने जिन पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है, उनमें रामराज शामिल है। वह लोक भवन लखनऊ में अनुभाग अधिकारी है। दूसरा मास्टर माइंड ध्रुव कुमार श्रीवास्तव है। तीसरा आरोपी कर्मवीर सिंह यूपी को-आपरेटिव बैंक के महमूदाबाद कार्यालय में भुगतान विभाग में तैनात था। चौथा आरोपी आकाश कुमार और पांचवा आरोपी भूपेंद्र सिंह है।

ऐसे ट्रांसफर हुई इतनी बड़ी रकम ?

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आरोपी ध्रुव, ज्ञानदेव पाल के साथ मई 2021 में लखनऊ आया था।

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वहां उनकी आकाश से मुलाकात हुई।

आकाश के जरिए वो ठेकेदार से मिले। (ध्रुव, ज्ञानदेव पाल, आकाश और ठेकेदार)

ठेकेदार ने बताया कि मेरे पास एक हैकर है।

ठेकेदार ने बैंक फ्राड का आइडिया दिया।

भूपेंद्र सिंह के जरिए बैंक के महमूदा बाद सहायक प्रबंधक से मुलाकात हुई।

मुंबई से हैकर को बुलाया गया।

हैकर ने एक डिवाइस तैयार की।

डिवाइस को कर्मवीर सिंह और ज्ञानदेव पाल बैंक के सिस्टम में लगाते रहे।

बाद में लोक भवन में अनुभाग अधिकारी रामराज फिल्म में नये किरदार के रूप में हुई।

रामराज की टीम में उमेश गिरी था।

रामराज ने पूर्व बैंक प्रबंधक आर एस दुबे से संपर्क किया।

14 अक्टूबर 2022 को दुबे, रवि वर्मा और ज्ञानदेव पाल शाम छह बजे के बाद बैंक गए।

यहां आकर इन लोगों ने बैंक के सिस्टम में कीलॉगर इंस्टॉल किया Key logger और हैकर की बनाई गई डिवाइस फिट Device की।

15 अक्टूबर 2022 की सुबह आरोपी पांच टीमों में बंट गए।

इसके बाद रवि वर्मा और आरएस दुबे बैंक के अंदर गए।

फिर बैंक के सिस्टम को अपने यहां से कंट्रोल किया।

कैसे इतनी रकम तमाम खातों में RTGS के जरिए ट्रांसफर हो गई ?

ज्ञानदेव पाल, उमेश गिरी, बैंकर ने साइबर एक्सपर्ट के साथ मिलकर 146 करोड़ रुपए गंगासागर सिंह की कंपनियों के अलग-अलग खातों में आरटीजीएस के जरिए ट्रांसफर कर दिया।

पैसे ट्रांसफर होने के बाद गैंग के सभी सदस्य ब्रेक प्वाइंट ढाबा लखनऊ-अयोध्या रोड़ बाराबंकी पहुंचे। तब तक गंगासागर की कंपनियों के सभी अकाउंट फ्रीज कर दिए गए। इसके बाद आरोपी नैनीताल भाग गया। दूसरे गैंग मेंबर भी फरार हो गए। आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी समेत तमाम धाराओं में मामला दर्ज हुआ है। फिलहाल पांच आरोपी गिरफ्तार है। बाकी आरोपियों की तलाश जारी है।

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