
बग़ावतों का मसीहा
CRIME STORY VIKTOR BOUT: अल क़ायदा के आतंकियों ने गोली चलाई तो दुनिया भर के निशाने पर ओसामा बिन लादेन आ गया। इराक़ में जब भी गोली चली तो दुनिया ने सद्दाम हुसैन को ही कोसा। ऐसे ही अफ्रीका के न जाने कितने मुल्क़ की क़िस्मत में बग़ावतों ने सिर उठा रखा है। (CRIME KI KAHANI)
दुनिया में जब भी कोई आतंकी गोली चलाता है तो सभी उस आतंकी या आतंकी संगठन को कोसते हैं, किसी विद्रोही गुट की तरफ से किसी जंग का ऐलान होता है तो विद्रोही गुट को ही निशाने पर लिया जाता है। लेकिन क्या कोई ये जानता है कि दुनिया भर में जंग के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वो असल में कुछ लोगों के इशारे पर और उनके फायदे के लिए ही हो रहा है।
कहते हैं कि जब भी दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई बाग़ी गोली चलाता है, और उस गोली पर अगर सरकारी मुहर नहीं लगी होती तो ये मान लिया जाता है कि उस गोली के पीछे और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ एक ही नाम है। और वो नाम है विक्टर बाउट (VIKTOR BOUT) का। (CRIME KI KAHANI)
अनगिनत उपनामों वाला ख़तरनाक अपराधी
CRIME STORY VIKTOR BOUT: विक्टर बाउट उर्फ वादिम मार्कोविच अमीनोव उर्फ विक्टर बुलाकिन उर्फ विक्टर अनातोलीयेविच उर्फ विक्टर बड उर्फ विक्टर बड उर्फ विक्टर बट उर्फ बोरिस और भी न जाने कितने उर्फ वाला ये शख्स दुनिया का सबसे ख़तरनाक इंसान है, जो इस वक़्त अमेरिका के इलिनोइस की फेडरेल जेल में 25 सालों की सज़ा काट रहा है।
(CRIME KI KAHANI) ये दुनिया का शायद इकलौता ऐसा शख्स है जिसे अपने क़ानून की हथकड़ियों में जकड़ने के लिए अमेरिका ने पूरे चार साल इंतज़ार किया और जब तक उसे अपने यहां की बनी हथकड़ियों में जकड़ नहीं लिया तब तक अमेरिकी अधिकारी चैन से नहीं बैठे। इसलिए आज क्राइम की कहानी की श्रंखला में बात होगी विक्टर बाउट की, उसकी ज़िंदगी के उन पहलुओं की जिसने उसे दुनिया के सबसे ख़तरनाक अपराधियों की कतार में सबसे आगे ले जाकर खड़ा कर दिया।
अमेरिका का जानी दुश्मन
CRIME STORY VICTOR BOUT सवाल उठता है कि विक्टर बाउट कौन है, कहां से आया, और उसने ऐसा क्या किया जिसकी वजह से अमेरिका उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गया। और इन सबसे बड़ी बात आखिर क्यों इस विक्टर बाउट को दुनिया का सबसे ख़तरनाक इंसान कहा जाता है। (CRIME KI KAHANI)
1990 के दशक में सोवियत मिलिट्री का एक ट्रांसलेटर सोवियत संघ के टूटने के बाद फौज की नौकरी छोड़कर एक कारोबारी बना और उसका हथियारों का कारोबार दुनिया में इस क़दर फैला कि उसे दुनिया में मर्चेंट ऑफ डेथ यानी मौत का सौदागर के नाम से एक नई और अजीबो ग़रीब पहचान मिली।
यूं तो उसके बारे में क़िस्से कहानियों की कोई कमी नहीं लेकिन दुनिया भर के तमाम देशों की चुनी हुई सरकारें इस एक अकेले नाम की वजह से हमेशा थर्राती रहती हैं। और वो यही चाहती हैं कि ये इंसान कभी भी हथकड़ियों से आज़ाद न हो, और न ही कभी जेल से बाहर आए। क्योंकि अगर ये किसी भी सूरत में आज़ाद हो गया तो शायद दुनिया में तबाही और बर्बादी का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा।
क्योंकि हथियारों के इस कारोबारी के जो ग्राहक हैं वो किसी भी सूरत में चुनी हुई सरकारों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं हो सकते। क्योंकि वो लोग कोई और नहीं अलगाववादी और आतंकवादियों की जमात है। तो आज की क्राइम की कहानी उसी विक्टर बाउट की जिसका नाम सुनकर अब भी अमेरिका को पसीना आ जाता है और चेहरा ग़ुस्से से तमतमा जाता है।
विक्टर का सच सिवाय विक्टर के कोई नहीं जानता
CRIME STORY VIKTOR BOUT हमेशा से रहस्य के पर्दे में रहने वाला विक्टर बाउट असल में कहां पैदा हुआ इसको लेकर भी दुनिया पूरा सच नहीं जानती। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में मौजूद दस्तावेज़ों पर यक़ीन किया जाए तो विक़्टर बाउट की पैदाइश आज के ताजाकिस्तान की राजधानी ताजिक में 13 जनवरी 1967 को हुआ था। जबकि दक्षिण अफ्रीकी खुफिया विभाग के दस्तावेज़ बताते हैं कि वो मूल रूप से यूक्रेन का है।
जब उसकी पैदाइश को लेकर इतने सवाल हैं तो उसकी बाक़ी की ज़िंदगी के बारे में दुनिया कितना सच जानती होगी, ये अपने आप में सोचने वाली बात है। फिर भी जो जानकारियां उसके बारे में दुनिया के अलग अलग देशों की खुफिया एजेंसियों के पास दर्ज हैं उनके मुताबिक़ विक्टर बाउट सोवियत संघ के मिलिट्री इंस्टीट्यूशन से विदेशी भाषा विभाग से ग्रेजुएट है।
और कॉलेज ख़त्म होते ही वो मिलिट्री सर्विस में दुभाषिये के तौर पर सोवियत सेना का हिस्सा बन गया। विक्टर बाउट के बारे में कहा जाता है कि वो कम से कम 14 भाषाएं अच्छी तरह पढ़ सकता है और लिख सकता है।
अलबत्ता दुनिया की छह भाषाओं में वो धाराप्रवाह बोल सकता है। जिन भाषाओं में वो बोल सकता है उनमें रूसी, अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, पुर्तगाली (पोर्चग़ीज़) और फ़ारसी (पर्शियन) प्रमुख हैं। इसके अलावा अगर बाउट की निजी वेबसाइट पर ग़ौर करें तो उसे स्पेनिश भाषा का भी अच्छा ख़ासा ज्ञान है।
12 साल की उम्र से ही उसे नई भाषाओं में बेहद दिलचस्पी है। और बाउट की ही वेबसाइट से ही ये भी पता चलता है कि उसने सोवियत सेना में एक दुभाषिये के तौर पर काम किया और उसकी रैंक लेफ्टिनेंट की थी।
KGB का हिस्सा रहा विक्टर
CRIME STORY VIKTOR BOUT 1991 में सोवियत संघ के टूटने के साथ ही विक्टर बाउट ने भी लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक तक पहुँचने के बाद सेना को छोड़ दिया और अपना खुद का एयर फ्रेट का कारोबार शुरू कर दिया यानी हवाई रास्ते से माल ढुलाई का कारोबार। हालांकि विक्टर बाउट के बारे में ये भी कहा जाता है कि उसने सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB के लिए न सिर्फ ट्रेनिंग ली बल्कि कई ऑपरेशन में भी हिस्सा लिया।
बाउट की निजी वेबसाइट पर दर्ज की गई बातों पर यकीन किया जाए तो सोवियत संघ के टूटने के साथ ही साथ विक्टर ने अफ़्रीका में अपने लिए नई ज़मीन तलाश ली थी और हवा के रास्ते माल ढुलाई का कारोबार शुरू कर दिया। उस वक़्त विक्टर बाउट के पास एन्तोनोव एएन-8 सीरीज के चार विमान ही थे। लेकिन यहां ग़ौर करने वाली बात ये है कि विक्टर ने अफ्रीकी देश अंगोला से अपने कारोबार की शुरूआत की जहां सिर्फ रूसी विमान को ही लैंड करने की इजाज़त थी।
सेंक्शन बस्टर का मिला था नाम
CRIME STORY VIKTOR BOUT विक्टर बाउट की कंपनी दुनिया में इकलौती कंपनी थी जो फ्रांस की सरकार, संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी कंपनियों के लिए फूल, फ्रोजन चिकन और फ्रांसीसी सैनिकों के लिए संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों के लिए सप्लाई का काम करती थी। इसके अलावा बाउट की कंपनी अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के लिए खास सेवा में लगी हुई थी। इसलिए उस दौर में बाउट को एक नाम दिया गया था सेंक्शन बस्टर यानी पाबंदियों को तोड़ने वाला।
जिस वक़्त विक्टर बाउट की एयर सेस कंपनी अफ्रीका के उन देशों में माल सप्लाई का कारोबार कर रही थी, जहां संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध लगे हुए थे। उसी दौर में विक्टर बाउट ने महसूस किया कि पश्चिम अफ्रीकी देशों में अचानक हथियारों की मांग बढ़ रही है। खासतौर पर अंगोला, लाइबेरिया, सिएरा लियोन, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो।
यहां से लग गई CIA पीछे
CRIME STORY VIKTOR BOUT विक्टर बाउट 1990 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेना के साथ काम कर चुके थे। लिहाजा उन्हें पता था कि रिबेलियन ग्रुप्स यानी विद्रोही गुटों तक कैसे हथियार पहुँचाए जा सकते थे। हालांकि विक्टर ने इससे पहले कभी ये कोशिश नहीं की थी। मगर रास्ता पता था। और उसकी सबसे बड़ी वजह ये भी थी कि विक्टर बाउट एक चैनल के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान में अल क़ायदा और तालिबान के साथ डील को इनकार भी कर चुका था।
ये 1994 का साल था। उसके बाद विक्टर बाउट ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से पहले नॉर्दर्न एलाइंस को हथियारों की सप्लाई की थी। और नॉर्दर्न एलाइंस के कमांडर अहमद शाह मसूद के साथ उनके बेहद निजी ताल्लुक बन गए थे।
इसी बीच अमेरिका की खुफ़िया एजेंसी CIA को भनक लग चुकी थी कि नॉर्दर्न एलाइंस को हथियारों की सप्लाई करने वाला कोई सोवियत संघ का ही कारोबारी है। क्योंकि CIA की रिपोर्ट में अफ़ग़ानिस्तान में मिले हथियारों और गोलाबारूद की सप्लाई के लिए जिस कंपनी का ज़िक्र किया गया था वो विक्टर बाउट की ही कंपनी एयर सेस थी।
यूनाइटेड नेशन ने पहली बार किया ख़ुलासा
CRIME STORY VIKTOR BOUT लेकिन साल 2000 में विक्टर बाउट का नाम पहली बार संयुक्त राष्ट्र (UNITED NATION) की रिपोर्ट में सामने आया। रिपोर्ट में साफ साफ लिखा हुआ था कि साल 1996 से 1998 तक बुल्गारिया की कंपनी के बने हथियारों की स्मगलिंग की जा रही है। और इस स्मगलिंग के लिए कोई और नहीं बल्कि विक्टर बाउट और उसकी कंपनी ही जिम्मेदार है। और जिन हथियारों की सप्लाई विक्टर बाउट कर रहा है, उसका इस्तेमाल अंगोला में विद्रोहियों के गुट कर रहे हैं। जिसकी वजह से वहां गृह युद्ध के हालात बन गए हैं।
इसके बाद विक्टर बाउट का नाम तेज़ी से लाइबेरिया के गृह युद्ध के समय उछला क्योंकि कहा जाने लगा कि लाइबेरिया तक पहुँचे तमाम हथियार किसी और ने नहीं विक्टर बाउट के जरिए ही लाए गए हैं। जिन हथियारों ने लाइबेरिया के गृह युद्ध को ख़ूनी गृह युद्ध में बदल दिया था।
इसके बाद तो अमेरिका की ख़ुफिया एजेंसियां विक्टर बाउट के पीछे हाथ धोकर पड़ गईं और उसकी पूरी कुंडली ही निकाल लाईं। CIA की एक रिपोर्ट में कहा गया कि युगोस्लाव में हुई जंग के दौरान भी विक्टर बाउट ने ही हथियारों की सप्लाई की थी। खासतौर पर यूगोस्लाविया की मिलोसेविच सरकार के ख़िलाफ़ बोस्निया के उन विद्रोहियों को जिन्होंने यूगोस्लाविया को न सिर्फ एक जंग में धकेला बल्कि यूगोस्वालिया के टुकड़े टुकडे कर दिए।
कितने देशों को तोड़ने वाला है विक्टर
CRIME STORY VIKTOR BOUT CIA की रिपोर्ट कहती है कि विक्टर बाउट ही वो शख्स था जिसने बोस्निया और हर्जेगोविना सरकार के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर और पूर्व रक्षा मंत्री हसन कैनेयाक के साथ मिलकर इस पूरे विद्रोह को खाद पानी दी और हथियारों की सप्लाई कम नहीं पड़ने दी, जिसने बोस्निया और हर्जेगोविना को अलग देश बनने में मदद मिली।
CIA की रिपोर्ट के मुताबिक विक्टर बाउट और हसन कैनेयाक की मुलाक़ात 90 के दशक में तेहरान में हुई थी और तभी से ये सारी खिचड़ी पकनी शुरू हुई थी। अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने बोस्निया के उस अखबार की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें हसन कैनेयाक को विक्टर बाउट का कारोबारी साझीदार लिखा गया था।
उसी रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि मई 2006 में बोस्निया से इराक़ जाते समय क़रीब दो लाख AK-47 राइफल लापता हो गई थी, जो इत्तेफाक़ से विक्टर बाउट की एयर सर्विस सेस के जरिए भेजी जा रही थी।
लॉर्ड ऑफ गन कहलाता रहा विक्टर
CRIME STORY VIKTOR BOUT साल 2001 में जब अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना ने धावा बोला था उसी समय विक्टर बाउट मॉस्को में नज़र आया था और अमेरिका के इस इल्ज़ाम को सिरे से खारिज कर दिया था कि उसकी कंपनी के जहाज़ों ने अफ़ग़ानिस्तान की लगातार उड़ान भरी मगर उसके अल क़ायदा और तालिबान के साथ कोई लेना देना नहीं।
ये वही दौर था जब ये बात पूरी तरह से साफ हो चुकी थी कि अफ़ग़ानिस्तान में विद्रोही गुट यानी नॉर्दर्न एलाइंस को हथियारों की सप्लाई किसी और ने नहीं बल्कि विक्टर बाउट ने ही पहुँचाई थी।
इसके बाद तो विक्टर बाउट ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक विक्टर बाउट ने अफ़ग़ानिस्तान के तमाम विद्रोही गुट और आतंकी गुटों को बेहिसाब हथियारों की सप्लाई की। यहां तक कि अफ़ग़ानिस्तान में जिस वक़्त कि अमेरिकी फौज वहां तालिबान और आतंकियों के साथ जूझ रही थी, उस दौर में ही अल क़ायदा ने ये बात भी साफ कर दी थी कि अफ़ग़ानिस्तान का सारा सोना और सारी नक़दी देश के बाहर विक्टर बाउट के ज़रिए ही निकली है।
दुनिया भर के विद्रोहियों की आंखों का तारा
CRIME STORY VIKTOR BOUT साल 2000 के बाद तो विक्टर बाउट क़रीब क़रीब बेलगाम हो गया। और उसने अफ्रीका के तमाम विद्रोही गुटों को हथियारों की सप्लाई तेज़ कर दी। इतना ही नहीं। सीरियाई मूल के रिचर्ड चिचाक्ली के साथ मिलकर ताजिकिस्तान में समर एयरलाइंस के नाम से कंपनी खोली जिसकी आड़ में वो सरकार विरोधी ताक़तों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का काम करने लगी।
कॉन्गो में हुए दूसरे युद्ध के दौरान हथियारों के इस सौदागर ने जमकर हथियारों की सप्लाई की जिससे कई हफ़्तों से कॉन्गों में खूनी खेल चलता रहा और आख़िर में विद्रोहियों ने कॉन्गो को दो हिस्सों में तोड़कर ही दम लिया।
इस दौर में विक्टर बाउट की हथियार सप्लाई का आलम ये था कि उसने कम से कम 300 से ज़्यादा नए कर्मचारियों की भर्ती की और 40 से 60 नए जहाज़ ख़रीदे। लेकिन अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसी की उस रिपोर्ट ने दुनिया को तब बुरी तरह चौंका दिया जब 2002 में रिपोर्ट में कहा गया कि विक्टर बाउट केन्या को सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल की भी सप्लाई की थी, जिसका इस्तेमाल केन्या ने इजराइल के उस विमान को निशाना बनाकर किया था जिसने 2002 में नैरोबी से उड़ान भरी थी।
जहां पहुँचा वहीं बवाल
CRIME STORY VIKTOR BOUT 2006 में लेबनान युद्ध के समय विक्टर बाउट को हिजबुल्ला के आतंकियों के साथ मीटिंग करते देखा गया था। कुछ रिपोर्ट का ये भी दावा है कि जिस वक़्त हिजबुल्ला के अधिकारियों की मीटिंग हो रही थी उस वक्त विक्टर बाउट मॉस्को में था।
इसके बाद विक्टर बाउट को लीबिया में भी देखा गया था। जहां लीबिया के राष्ट्रपति कर्नल मुहम्मर गद्दाफ़ी के ख़िलाफ़ विद्रोह तेज़ी से भड़क रहा था और 2011 आते आते मुहम्मर गद्दाफ़ी की सत्ता को उखाड़ फेंका गया था। ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों ने 2003 में इस बात के संकेत दे दिए थे कि विक्टर बाउट इन दिनों लीबिया के चक्कर लगा रहा है और लगातार लीबिया की खुफिया एजेंसी के प्रमुख मूसा ख़ान से मुलाक़ात कर रहा है। ज़ाहिर है कि बेमतलब के तो विक्टर बाउट कहीं जाता नहीं। और उसके बाद के ही सालों में लीबिया में विद्रोह भड़का था।
इंसानियत को लहुलुहान करवाने वाला इकलौता शख्स
CRIME STORY VIKTOR BOUT विक्टर बाउट कहीं भी टिककर नहीं रह रहा था। वो लगातार एक देश से दूसरे देश घूम रहा था, नई नई कंपनियां खोल रहा था, नए नए जहाजों को ख़रीदकर अपने कारोबार को बढ़ा रहा था, लिहाजा अमेरिकी और दुनिया की दूसरी एजेंसियों को उसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने में दिक्कत हो रही थी।
माना जा रहा है कि साल 2000 से लेकर 2007 तक विक्टर बाउट बेल्जियम, लेबनान, रवांडा, रूस, दक्षिण अफ़्रीका, सीरिया और संयुक्त अरब अमीरात में अपने ठिकाने बनाता रहा और इन्हीं देशों में उसने सबसे ज़्यादा वक़्त बिताया। इनमें से दक्षिण अफ्रीका और UAE को छोड़कर बाक़ी सभी देशों में जमकर विद्रोही गुटों की खूनी हरकतें होती रही और दुनिया इंसानियत को लहुलुहान होता देखती रही।
बैंकॉक में जकड़ा गया हथकड़ियों में
CRIME STORY VIKTOR BOUT 6 मार्च 2008 को विक्टर बाउट थाईलैंड में बैंकॉक में रॉयल थाई पुलिस के हत्थे चढ़ गया। इस समय तक विक्टर बाउट के ख़िलाफ़ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर चुकी थी। जिससे थाईलैंड की पुलिस अलर्ट थी। थाईलैंड को अरब अमीरात से एक खुफ़िया रिपोर्ट मिली थी जिसके मुताबिक विक्टर बाउट थाईलैंड में दुनिया के कुछ नामी आतंकी संगठनों के आकाओँ के साथ मुलाक़ात करने वाला था।
इसी बीच कोलंबिया के विद्रोही गुट के नेता की शक्ल में अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसी DEA यानी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के एक एजेंट ने एक स्टिंग ऑपरेशन करके विक्टर बाउट के मुंह से सच्चाई उगलवा ली थी। उस स्टिंग ऑपरेशन में विक्टर बाउट कोलंबिया के विद्रोही गुट (FARC) को हथियारों की सप्लाई करने के लिए राजी हो गया था। जिसके आधार पर अमेरिका ने थाईलैंड सरकार से विक्टर बाउट की क़ानूनी हिरासत मांग ली। और फरवरी 2009 में थाईलैंड सरकार ने तमाम क़ायदे क़ानून के तहत विक्टर बाउट को अमेरिका के हवाले कर दिया। उसके बाद से ही विक्टर बाउट अमेरिका के क़ानून की हथकड़ियों में जकड़ा हुआ है।
अमेरिका की अदालत ने सुनाई सज़ा
CRIME STORY VIKTOR BOUT नवंबर 2011 में मैनहटन की जूरी ने अमेरिकी क़ानून के तहत विक्टर बाउट को अमेरिकी नागरिकों की हत्या कराने का दोषी पाया और अप्रैल 2012 को विक्टर बाउट को 25 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई। अमेरिका में हथियारों की सप्लाई की साज़िश रचने के लिए कम से कम इतनी ही सज़ा मिल सकती है।
बाउट पर यही इल्ज़ाम लगा कि उसने अमेरिकी नागरिकों की हत्या के लिए ही हथियारों की सप्लाई की थी। हालांकि विक्टर बाउट ने अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ इस तर्क के साथ आवाज़ उठाई कि अमेरिका में हथियारों का खुला बाज़ार है इस लिहाज से वहां हथियार बेचने वाले हर दुकानदार को सज़ा दी जानी चाहिए। लेकिन उसकी दलील नहीं सुनी गई।
विक्टर बाउट के बारे में एक बात और भी ज़्यादा मशहूर है। इन दिनों दुनिया भर की जेलों में जो सबसे अमीर लोग बंद हैं, उनमें भी विक्टर बाउट का नाम सबसे ऊपर की कतार में लिखा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक विक्टर बाउट ने हथियारों की स्मगलिंग से क़रीब 6 अरब डॉलर की दौलत इकट्ठा की है। यानी इस रकम को भारतीय रूपये में लिखें तो 4,55,28,24,00,000 इतनी रकम बैठती है। यानी इतने ज़ीरो जिसे गिनते गिनते सुबह से शाम हो जाए।
आपराधिक ज़िंदगी पर बनी फिल्म
CRIME STORY VIKTOR BOUT इसी बीच साल 2020 में रूस ने इस संभावना को तलाशना शुरू कर दिया कि क़ैदियों की अदला बदली के रूप में क्या विक्टर बाउट को अमेरिकी जेल से रूस लाया जा सकता है। क्योंकि रूस इस बात के लिए राजी हो गया था कि विक्टर बाउट के बदले वो एक अमेरिकी मरीन पॉल व्हेलन को छोड़ सकता है।
फिलहाल तो रूस का ये प्रस्ताव अमेरिका ठुकरा चुका है। क्योंकि अब इस मामले ने सियासत की दहलीज पर कदम रख दिया है। अमेरिका के एक लेखक हैं निक कोहेन जिन्होंने एक उपन्यास लिखा था द वाशिंग मशीन, उसी उपन्यास का एक चैप्टर है मर्चेंट ऑफ डेथ यानी मौत का सौदागर।
इस चैप्टर में लेखन ने विक्टर बाउट के तमाम काले कारनामों और उसकी निजी ज़िंदगी के कुछ पहलुओं को रखा है। इसी पहलू को लेकर अमेरिका के हॉलीवुड ने साल 2005 में एक फिल्म बनाई थी लॉर्ड ऑफ वॉर। इसके अलावा अमेरिका में 2015 में एक सीरियल भी तैयार किया गया था मैनहन्ट: किल ऑर कैप्चर (MANHUNT: KILL OR CAPTURE)। उस सीरियल का एपिसोड दस विक्टर बाउट के जीवन पर आधारित है।
मौत के सौदागर का अगला क़दम
CRIME STORY VIKTOR BOUT बहरहाल मौत के सौदागर के नाम से मशहूर हो चुका विक्टर बाउट दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का स्मगलर माना जाता है। और इस वक़्त वो अमेरिका की जेल में है। और विक्टर बाउट को लेकर रूस भी चुप नहीं बैठा हुआ है।
इस वक्त यूक्रेन के साथ युद्ध में जूझ रहा रूस कोई न कोई रास्ता निकालने की फिराक़ में है ताकि अपने विक्टर बाउट को वो अपने पास ला सके। ऐसे में मामला और भी ज़्यादा दिलचस्प और रोचक हो जाता है। एक ख़्याल ये भी ज़ेहन में आता है कि कहीं इस लॉर्ड ऑफ वॉर की वजह से ही तो ये जंग नहीं छेड़ दी गई?