'ऐ मेरे वतन के लोगों' आंसुओं से भीगे इस गीत को ऐसे अमर कर दिया लता मंगेशकर ने, ये है पूरा सच

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आंसुओं से भीगा एक गीत आज तक आंखें भिगो रहा

CRIME TAK SPECIAL: किसी भी कलाकार की सबसे बड़ी धरोहर यही होती है कि उसकी यादों में जब आंखें भीगकर पिघलती हैं तो आंसू बनकर जो पानी ज़मीन पर गिरता है तो वो सूखता नहीं है, बल्कि सोंधी सी खुशबू बनकर फ़िज़ा में घुल जाता है। लता मंगेशकर के गाए गीत भी कुछ इसी तरह का असर दिखाते हैं।

अपने जीवनकाल में 50 हज़ार से ज़्यादा गीत गाने वाली लता मंगेशकर की पहचान यूं तो किसी एक गीत की मोहताज नहीं हैं। मगर एक गीत है जो उनकी आवाज़ के बगैर अपनी शिनाख़्त के लिए भटक सकता है, वो अमर गीत है ऐ मेरे वतन के लोगों।

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झगड़े से शुरू हुआ गीत के जनम का क़िस्सा

CRIME TAK SPECIAL:ये गीत किसी फिल्म का नहीं है, और न ही इसे फिल्मी पर्दे पर किसी के मुखड़े से सुना गया। बल्कि ये वो गीत है जिसका इतिहास सबसे जुदा है, जिसके बनने की कहानी अपने आप में एक मिसाल है। सबसे बड़ी बात ये गीत एक महान संगीतकार और एक महान गीतकार की रचना का सबसे शानदार अंजाम है।

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ये क़िस्सा साल 1962 के आस पास का है। जब दिल्ली में आज़ादी के जश्न का एक समारोह आयोजित होने वाला था, और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों और गायक गायिकाओं को देश और विदेश की बड़ी बड़ी हस्तियों के सामने अपनी कला को पेश करना था।

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उस वक़्त फिल्म इंडस्ट्री के सबसे मशहूर संगीतकारों में से एक सी रामचंद्रन दक्षिण भारत में अपनी कई फिल्मों के संगीत को पूरा करने के कामों में बहुत व्यस्त थे।

एल्युमिनियम की पन्नी से इतिहास के पन्नों तक

CRIME TAK SPECIAL:इधर आयोजकों ने उस समय के तीन बड़े और धुरंधर संगीतकारों को एक एक अच्छी प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया था। ये कार्यक्रम 27 जनवरी को दिल्ली के एक स्टेडियम में आयोजित होने वाला था। इस कार्यक्रम की तारीख नज़दीक आई तो सी रामचंद्र ने सबसे पहले गीतकार प्रदीप से देशभक्ति से लबरेज एक गीत लिखने का आग्रह किया।

गीतकार प्रदीप ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जिस वक्त वो इस गीत की शुरूआत करने की उधेड़बुन में घूम रहे थे उस वक़्त उनके पास न तो कोई कागज़ था और न ही कोई पेन, समंदर के किनारे टहलते हुए सिगरेट पीते हुए उनके ज़ेहन में इस गीत के मुखड़े के पहले शब्द कौंधे, ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी।

उन्होंने वहीं समंदर के किनारे से एक सिगरेट की एल्यूमिनियम की फॉयल उठाई और उस पर लकड़ी के सहारे इन शब्दों को इसलिए उतार लिया कि कहीं वो उनके मानस पटल से मिट न जाए। उन्हें क्या पता था कि एल्यूमिनियम की पन्नी पर उतारी गई वो लकीरें अब हिन्दुस्तान के मुकद्दर की सबसे खूबसूरत और स्वरमयी लकीरें बन चुकी हैं।

96 अंतरे से शुरू हुई सात अंतरे के गीत की लम्बी यात्रा

CRIME TAK SPECIAL:इस गीत की पहली लाइन को गुनगुनाते वक़्त ही प्रदीप के जेहन में जो दूसरा वाक्य सामने आया वो था लता मंगेशकर।

बहरहाल उसके बाद प्रदीप ने इस गीत के क़रीब 96 अंतरे लिखे। जिनमें से छंटते छंटते वो पहले 17 रह गए और फिर रिकॉर्डिंग के वक़्त सिर्फ 11 अंतरे ही रिकॉर्ड किए गए।

सबसे दिलचस्प ये है कि पहले ये गीत लता मंगेशकर से नहीं गवाया जा रहा था। क्योंकि सी रामचंद्र और लता मंगेशकर के बीच कुछ तनातनी चल रही थी। लिहाजा सी रामचंद्र ने इस गीत के लिए आशा भोंसले के साथ रिहर्सल की। और बात लगभग पक्की भी हो गई थी लेकिन तभी प्रदीप ने सी रामचंद्र से अपने मन की बात कही। कि उनकी इच्छा यही है कि इस गीत को लता मंगेशकर से गवाया जाए तो ज़्यादा अच्छा होगा।

दिल में उतरे शब्द और आंखों से छलके आंसू

CRIME TAK SPECIAL:न जाने कैसे सी रामचंद्र ने अपनी ऐंठ को किनारे रखकर लता के साथ इस गाने की रिकॉर्डिंग करने का फैसला कर लिया।

जब लता मंगेशकर को इस गीत के पहले बोल सुनाए गए तो उनके होठ थरथरा रहे थे, गंला रुंध गया था और उनकी आवाज़ कांपने लगी थी। मगर ये जानकर हर कोई हैरत में पड़ गया कि जब स्टूडियो में लता मंगेशकर ने इस गाने को रिकॉर्डिंग की तो सिंगल टेक ओके हो गया था।

सबसे हैरानी की बात ये है कि जिस वक़्त इस गीत को लता मंगेशकर के मुंह से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सुना तो उनकी आंखों में भी आंसू थे। उनके भी होंठ थरथरा रहे थे और उनकी आवाज़ भी कांप उठी थी। और तब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मंच पर आकर लता मंगेशकर को न सिर्फ आशिर्वाद दिया बल्कि उनसे एक आग्रह भी किया कि वो जब भी उनसे मिले ये गीत उन्हें ज़रूर सुनाएं।

गीत को मिली अमर आवाज़

CRIME TAK SPECIAL:आज भी जब ये गीत कहीं बजता है तो न जाने कितने कानों में लता मंगेशकर की आवाज़ उनके ज़ज्बात को पिघलाकर आंखों के रास्ते बाहर ले आती है।

शायद ये दुनिया का इकलौता गीत है जिसे सुनकर हमारे सैनिकों का हौसला तब भी आसमान की बुलंदी को छूने लगता है, और आज भी यही गीत सरहद पर अपनी सबसे बड़ी कुर्बानी देने को तैयार बैठे किसी भी सैनिक की भुजाओं में जोश भड़का देता है।

वक़्त का सितम देखिये 6 फरवरी को कवि प्रदीप का जन्म दिन मनाया जाता है और अब यही तारीख लता मंगेशकर की पुण्यतिथि के तौर पर याद रखी जाएगी। वाकई इससे बड़ा और अजीब इत्तेफ़ाक और क्या हो सकता है, जिसे इस वतन के लोग हर दम याद ही नहीं रखेंगे बल्कि हरदम इस तारीख को अपनी आंखों में पानी भी भरेंगे।

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