
Acid Attack Survivor Story : उस समय मैं 15 साल की थी. 10वीं में पढ़ती थी. रोजाना 8 किमी दूर साइकल से स्कूल जाती थी. स्कूल से छुट्टी करना मेरी आदत नहीं थी. मौसम चाहे कोई भी हो मैं स्कूल जरूर जाती थी. लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ कि स्कूल जाने का मेरा मन नहीं करता था. घर में ही रहने लगी. सोचने लगी ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ. उन्हें मैं दादाजी कहती हूं. उम्र 55 साल से ज्यादा. पहले तो वो मेरे पीछा करते थे. पर मैंने कभी सोचा ही नहीं कि वो पीछा क्यों करते हैं. फिर लगा कि शायद ये इत्तेफाक होगा. लेकिन एक दिन अचानक मुझे रोका. जिन्हें मैं दादाजी कहती थी उनकी बात सुनकर मेरे होश उड़ गए. पहली बार में लगा कि मुझे सुनने में गलती हो गई. पर मैं सही थी. असल में उस दादाजी ने साइकल से रुकवाकर कहा था...मैं तुमसे प्यार करता हूं. मैं तुम्हारे साथ रिलेशन बनाना चाहता हूं.
ये बात सुनकर मैं दंग रह गई. हैरान थी. परेशान हो गई. मैंने कहा कि आपको मैं दादाजी कहती हूं. आप कैसी बात कर रहे हैं. वो कहते हैं सच में. मैं तुमसे प्यार करता हूं. मैंने फिर उनकी बात सुने वहां से चली आई. लेकिन वो पीछा करना नहीं छोड़ते थे. घूरते थे. आखिरकार मैं डर गई. परेशान हुई. लेकिन घरवालों को क्या कहती.
शुरू में लगा कि कोई मेरी बात पर यकीन कैसे करेगा. मेरी उम्र 15 साल. और वो 55 साल से ज्यादा. लेकिन परेशान होकर अपनी पढ़ाई में पहली बार स्कूल जाना छोड़ दिया. घर पर ही रहने लगी. बिल्कुल परेशान. ना कुछ किसी से कहती थी. ना बात करती थी. फिर कुछ दिनों मेरी हालत देखकर मां ने मुझसे पूछा. कई बार पूछने पर मैंने पूरी आपबीती सुनाई.
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My Story : घर में सभी को बताया. फिर घरवालों ने उस दादाजी को समझाया. गांव के लोगों को भी पता चली ये बात. उन्होंने भी उस बुजुर्ग को टोका. बस यही बात उसे बुरी लग गई. कुछ हफ्ते बीते होंगे. रात का वक्त था. गर्मी में हमलोग सो रहे थे. तभी सोते हुए मेरे चेहरे पर कुछ जलता हुआ फेंक दिया गया. मैं चीखने लगी. चिल्लाने लगी. मेरा चेहरा जल रहा था. आंखों से कुछ नहीं दिख रहा था. सबकुछ अंधेरा छा गया था.
लेकिन मेरे कानों में सब सुनाई दे रहा था. मुझे पता चला कि उसी दादाजी ने मेरे चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था. हमारा परिवार उस समय यूपी के बिजनौर के गांव में रहता है. वहां पास में कोई अस्पताल नहीं था. घर के लोगों ने पुलिस में शिकायत की. लेकिन इलाज नहीं मिला. करीब 4 घंटे बाद किसी तरह सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन वहां आग से जलने वालों के इलाज कुछ नहीं था. इस तरह करीब 8 घंटे बीत जाने के बाद पहली बार मुझे मेरठ के अस्पताल में मुझे इलाज मिला. लेकिन वहां भी कोई खास इंतजाम नहीं था.
पर इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था. कई दिनों तक इलाज चला. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी. ऐसा क्यों होता है. कई महीनों तक मैं कुछ देख नहीं पाई. मेरे चेहरे का कोई ऐसा हिस्सा नहीं था जो बचा हो. कई महीनों बाद सिर्फ एक आंख की थोड़ी थोड़ी रोशनी आई थी. पर दूसरी आंख से तो आज भी बंद है. अब चेहरे को छुपा कर रखती थी. खुद के चेहरे को देख नहीं सकती थी. पर मेरा चेहरा कैसा दिखता था. आसपास के लोग खुद ही बता देते थे.
Anshu Story : मैं साफ तो नहीं देख सकती थी. लेकिन लोगों की बातें तो पूरा सुनाई देती थी. लोग कहते थे. देखों ने इस लड़की का चेहरा बंदर जैसा हो गया है. अब इससे कौन करेगा शादी. वो मुझे अजीब नजरों से देखते थे. कुछ साल बाद जब थोड़ा थोड़ा दिखने लगा था तो फिर से पढ़ने का सोचा. तब तक 4 साल निकल चुके थे. साल 2018 में फिर से स्कूल गई. तो वहां पता चला कि मेरा नाम स्कूल से कट चुका है. मैं पढ़ना चाहती थी.
स्कूलवालों ने भी पढ़ाने से कर दिया मना : लेकिन स्कूल में कहा गया कि अगर तुम स्कूल आओगी तो दूसरे बच्चे नहीं पढ़ेंगे. वो तुमसे डर जाएंगे. इसलिए तुम्हें हम नहीं पढ़ा सकती थी. मैं सोचने लगी. क्या मैं इंसान नहीं हूं. इसमें मेरी गलती क्या है. पर मैं सोचकर कुछ नहीं कर सकती थी. क्योंकि मैं बेबस थी. मजबूर थी. मुझे देखकर लोग डरने लगे थे. इसलिए उस चेहरे को ही मैं अब दुपट्टे से छुपाकर रखती थी.
अब बिजनौर वाले अपने गांव में रहनी लगी थी. लेकिन घर से निकलती नहीं थी. घर में कैद रहती थी. अखबार पढ़ती थी. कुछ साल पहले की बात है. अखबार से पता चला कि आगरा में कुछ एसिड अटैक वाली लड़कियां काम कर रही हैं. वहां कैफे चला रहीं हैं. उसका नाम है शीरोज हैंगआउट कैफे. मैं भी आगरा जाना चाहती थी. पर आसपास के लोगों को पता चला तो बोलने लगे कि इसे भला कोई नौकरी क्यों देगा. इसकी सूरत देखकर तो लोग भाग जाएंगे. लेकिन मैं हार नहीं मानी. एक बार तो मेरे पापा भी वहां ले जाने को तैयार नहीं थे. फिर मेरी मां ने जिद की. वो मेरे साथ आगरा गईं. वहां मैं अपने चेहरे को छुपाकर कैफे में पहुंची.
वहां जाने पर जो एसिड सर्वाइवर काम कर रहीं थीं उन्होंने मुझसे कहा कि चेहरा क्यों छुपाया है. अगर तुम खुद को स्वीकार नहीं कर सकती तो दुनिया तुम्हें कैसे स्वीकार करेगी. फिर उस बात से मुझे हौंसला मिला. मैंने तय कर लिया कि मैं अब आगे आऊंगी. मैं काम नहीं करूंगी. फिर छाया फाउंडेशन जिसने शीरोज कैफे की शुरुआत की थी. उसमें मेरी ट्रेनिंग हुई. फिर मैं काम करने लगी. आज मैं दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर-21ए स्टेडियम में शीरोज कैफे में काम कर रहीं हूं. एसिड अटैक पीड़ित लड़कियों को जागरूक कर रहीं हूं.
अब मैं बेहद खुश हूं. क्योंकि एक समय था जब मैं मौत की दुआ कर रही थी. चाहती थी कि मैं मर जाऊं. लेकिन अब मेरा दुबारा जन्म हुआ है. और अब मैं जीना चाहती हूं. और ये चाहती हूं कि एसिड को पूरी तरह से रोका जाए और फिर कोई लड़की मेरी जैसी हालत में नहीं आए.
Real Story : ये रियल कहानी है अंशु की. वो बिजनौर की रहने वाली हैं. ये हादसा साल 2014 में हुआ था. उस समय अंशु यूपी के बिजनौर में रहतीं थीं. उस वक्त 10वीं में पढ़तीं थीं. आज वो नोएडा स्टेडियम में बने शीरोज कैफे में कार्य कर रहीं हैं.