यस बैंक मनी लॉन्ड्रिंग केस : कारोबारी संजय छाबड़िया को जमानत देने से अदालत का इनकार

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यस बैंक मनी लॉन्ड्रिंग केस : कारोबारी संजय छाबड़िया को जमानत देने से अदालत का इनकार
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Mumbai News (PTI) : बम्बई उच्च न्यायालय ने यस बैंक धनशोधन (Money Laundering Case) मामले में रियल इस्टेट कारोबारी संजय छाबड़िया (businessman Sanjay Chhabria) को यह कहते हुए ‘डिफॉल्ट’ जमानत देने से इनकार कर दिया कि धनशोधन में अवैध रूप से अर्जित धन को वैध दिखाने के लिए पेचीदा प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, इसलिए इसमें गहन जांच की आवश्यकता होती है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 के अनुसार, यदि जांच एजेंसी हिरासत की तारीख से 60 दिनों के भीतर आरोप-पत्र दाखिल करने में विफल रहती है तो आरोपी ‘डिफॉल्ट’ जमानत का हकदार होगा। कुछ श्रेणी के अपराधों के लिए, निर्धारित अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एम. एस. कार्णिक की पीठ ने ‘डिफॉल्ट’ जमानत के अनुरोध वाली छाबड़िया की याचिका नौ अक्टूबर को इस आधार पर खारिज कर दी थी कि हालांकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अनिवार्य 60 दिनों की अवधि के भीतर उनके खिलाफ अभियोजन शिकायत प्रस्तुत की थी, लेकिन उसने विशेष अदालत से मामले में आगे की जांच जारी रखने की अनुमति मांगी थी। ईडी का मामला यह है कि छाबड़िया के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन मामले के संबंध में जांच अब भी जारी है। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में एजेंसी से सहमति जतायी और कहा कि धनशोधन के अपराध में कई परस्पर जुड़े लेनदेन शामिल होते हैं और इसकी विस्तृत जांच की जरूरत होती है और वर्तमान मामले में ईडी एक आर्थिक अपराध की जांच कर रहा है, जिसमें गहन और विस्तृत जांच की जरूरत है।

आदेश में कहा गया, ‘‘आरोपी को निस्संदेह निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक आयाम है। इसी तरह, यह प्रतिवादी (ईडी) का भी कर्तव्य है कि वह अपराध के संबंध में व्यापक एवं पूरी जांच करे।’’ अदालत ने कहा, ‘‘धनशोधन का तात्पर्य अवैध रूप से अर्जित धन को उसके अवैध मूल को छिपाने के लिए वैध दिखाने की प्रक्रिया से है। धनशोधन का अंतिम लक्ष्य अवैध धन को वैध वित्तीय प्रणाली में एकीकृत करना है, जिससे प्राधिकारियों के लिए इसका पता लगाना और जब्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।’’

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न्यायमूर्ति कार्णिक ने कहा कि धनशोधन में अवैध रूप से प्राप्त धन के स्रोत को अस्पष्ट करने के लिए जटिल प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। उन्होंने कहा कि धनशोधन मामले की जटिलता अवैध धन को छिपाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों की जटिलता से निर्धारित होती है। अदालत ने आदेश में कहा, ‘‘जटिल धनशोधन मामले, जैसे वर्तमान मामले में, लेनदेन के कई स्तर शामिल होते हैं। इन मामलों में आम तौर पर जटिल योजनाएं और तकनीकें शामिल होती हैं, जिनका उद्देश्य अस्पष्टता की कई परतें बनाना होता है, जिससे जांचकर्ताओं के लिए अवैध धन की वास्तविक प्रकृति को उजागर करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।’’

ईडी का मामला यह है कि छाबड़िया ने यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर और दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) के प्रमोटर कपिल वाधवान द्वारा अवैध रूप से प्राप्त कोष की हेराफेरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। न्यायमूर्ति कार्णिक ने कहा कि मामले में धनशोधन के बड़े अपराध के संबंध में आगे की जांच जारी है। अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी द्वारा अपराध में शामिल किसी भी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कोई और सबूत, मौखिक या दस्तावेजी लाने के लिए मामले में आगे की जांच करने पर कोई पाबंदी नहीं है, जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है।’’ छाबड़िया के वकील विभव कृष्णा ने कहा कि चूंकि मामले में छाबड़िया की गिरफ्तारी के 60 दिन बाद भी मामले की जांच अधूरी है, इसलिए आरोपी ने ‘डिफॉल्ट’ जमानत का अनुरोध किया है।

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छाबड़िया को सात जून, 2022 को यस बैंक-डीएचएफएल धनशोधन मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था। ईडी ने चार अगस्त, 2022 को अपनी अभियोजन शिकायत (आरोपपत्र) प्रस्तुत की थी। कृष्णा ने दलील दी कि ईडी ने अपनी जांच पूरी किये बिना शिकायत दायर कर दी ताकि ‘डिफॉल्ट’ जमानत का दावा करने के आरोपी के पक्ष में अर्जित अपरिहार्य अधिकार को खत्म किया जा सके। उन्होंने अदालत को बताया कि छाबड़िया को इसी अपराध से संबंधित सीबीआई के भ्रष्टाचार मामले में इस साल अप्रैल में उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘डिफॉल्ट’ जमानत दी गई थी। पिछले साल अगस्त में एक विशेष अदालत द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद छाबड़िया ने ईडी के मामले में जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास ने याचिका का विरोध किया और दलील दी कि छाबड़िया के संबंध में जांच पूरी हो चुकी है लेकिन पूरे मामले की जांच अभी भी जारी है।

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