मधुमिता शुक्ला के कातिलों को क्यों मिली रिहाई? 8 हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट को बताएगी यूपी सरकार
Madhumita Shukla case : मधुमिता शुक्ला मर्डर केस के दोषी अमरमणि और मधुमणि की रिहाई पर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने.
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दिल्ली से संजय शर्मा की रिपोर्ट
Madhumita Shukla Murder : मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के दोषी अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने मधुमिता की बहन की याचिका पर नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से 8 हफ्तों में जवाब मांगा है। मधुमिता की बहन और याचिकाकर्ता निधि शुक्ला की वकील कामिनी जायसवाल की रिहाई पर रोक लगाने की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि सरकार का जवाब आने दें। अगर आपकी दलीलों से हम सहमत होंगे तो वापस जेल भेज देंगे।
क्या है मधुमिता शुक्ला हत्याकांड
Madhumati Shukla hatyakand: 20 साल पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में रहने वाली एक कवयित्री मधुमिता शुक्ला का मर्डर हुआ था। और उस हत्या के सिलसिले में पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार किया गया था। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई ने भी की थी और उस तफ्तीश में अमरमणि के साथ साथ उनकी पत्नी मधुमणि को भी दोषी करार दिया गया था। अदालत ने इस हत्याकांड के लिए पति पत्नी को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
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20 साल बाद हो रही रिहाई
लेकिन अब जेल से बाहर निकलकर आई खबर पर यकीन किया जाए तो मधुमिता शुक्ला की हत्या के सिलसिले में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी की सजा को उनके अच्छे चाल चलन की वजह से कम कर दी गई है। उनकी शेष सज़ा समाप्त कर दी गई है। राज्यपाल की अनुमति से कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग ने इसका आदेश जारी किया है। दोनों यानी पति पत्नी को 20 साल बाद रिहा किया जाएगा।
अच्छे चाल चलन के आधार पर जेल से रिहा
महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा से विधायक रहे और उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रह चुके अमरमणि त्रिपाठी को जेल प्रशासन ने अच्छे चाल चलन के आधार पर जेल से रिहा करने और उनकी बाकी सजा समाप्त करने का फैसला किया है। आदेश में साफ साफ कहा गया कि अगर दोनों को किसी अन्य मामले में जेल में रखना आवश्यक न हो तो जिला मजिस्ट्रेट गोरखपुर के विवेक के मुताबिक दो जमानतें और उतनी ही धनराशि का एक मुचलका देकर वो जेल से मुक्त हो सकते हैं।
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20 साल एक महीना और 19 दिनों से जेल में
आपको बता दें कि जांच एजेंसियों ने 20 साल पुराने इस मामले में अपनी तफ्तीश में अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि को दोषी पाया था। इतना ही नहीं इन दोनों पर ही गवाहों को धमकाने का आरोप भी लगाया गया था जिसकी वजह से इनका मुकदमा देहरादून स्थानांतरित कर दिया गया था। दोनों ही बीते 20 साल एक महीना और 19 दिनों से जेल में हैं।
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मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या
9 मई 2003 को लखनऊ के निशातगंज के पास मौजूद पेपर मिल कॉलोनी में जानी मानी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड से उस समय की बहुजन समाज पार्टी सरकार में हड़कंप मच गया था। मौके पर तफ्तीश के लिए पहुँचे पुलिस अफसरों ने पूरे मामले को भांप लिया था। पुलिस अफसरों को मधुमिता और अमरमणि के प्रेम प्रसंग के बारे में नौकर देशराज ने पहले ही जानकारी दे दी थी। जानकारी मिलते ही ये बात शासन के तमाम अधिकारियों तक पहुँच गई थी।
देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट
दरअसल अमरमणि का शुमार उस समय के कद्दावर मंत्रियों में किया जाता था। हत्याकांड के बाद देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन यूपी के सियासी गलियारों में अमरमणि का दबदबा कभी कम नहीं हुआ।
मधुमिता के गर्भवती होने का खुलासा
हत्याकांड की जांच उस वक़्त की मुख्यमंत्री मायावती ने CBCID को सौंप दी थी। मधुमिता के शव का पोस्टमॉर्टम करने के बाद शव उनके गृह जिले लखीमपुर भेज दिया गया था। शव जब रास्ते में ही था तभी एक पुलिस अफसर की नज़र पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर पड़ी और उस एक लाइन ने पूरे केस की दिशा ही बदल कर रखदी। असल में उस रिपोर्ट में मधुमिता के गर्भवती होने का जिक्र था।
सीबीआई जांच की सिफारिश
अधिकारियों ने शव को फौरन रास्ते से वापस मंगवाकर उसकी दोबारा जांच करवाई। डीएनए जांच हुई तो उसमें बात साफ हो गई कि मधुमिता के पेट में पल रहा बच्चा अमरमणि का ही था। सरकार पर निष्पक्ष जंच का दबाव बढ़ता जा रहा था, लिहाजा मायावती ने आखिरकार इस मामले की जांच के लिए सीबीआई से कराने की सिफारिश करनी ही पड़ी। सीबीआई ने जांच के दौरान गवाहों को धमाके की बात मानी। जब गवाहों को धमकाने का आरोप सही महसूस हुएतो मुकदमे को देहरादून ट्रांस्फर कर दिया गया । देहरादून में चले मुकदमे में चारों को अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी जबकि एक अन्य शूटर प्रकाश पांडेय को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। लेकिन बाद में नैनीताल हाई कोर्ट ने प्रकाश पांडेय को दोषी माना और उम्रकैद की सजा सुनाई।
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