मणिपुर में यौन उत्पीड़न की घटनाओं की सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच को लेकर न्यायालय में PIL दायर

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मणिपुर में यौन उत्पीड़न की घटनाओं की सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच को लेकर न्यायालय में PIL दायर
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Manipur News : मणिपुर में यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए शीर्ष अदालत के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश के तहत एक स्वतंत्र समिति के गठन का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। अधिवक्ता विशाल तिवारी की जनहित याचिका में कहा गया है कि यह मणिपुर में कानून के शासन के उल्लंघन और दमनकारी क्रूरता, अराजकता के खिलाफ दायर की गई है।

इसमें कहा गया है, ‘‘हाल में मणिपुर का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें दो महिलाएं भीड़ से घिरी दिखी थी, जिन्हें निर्वस्त्र करके अपमानजनक तरीके से घुमाया गया और उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया। इस पूरी घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘हिंसा, हमले, यौन उत्पीड़न, बलात्कार और दंगों से संबंधित यह मामला मणिपुर में महीनों से जारी है, फिर भी प्रतिवादी संख्या-एक (भारत सरकार) या प्रतिवादी संख्या-दो (मणिपुर सरकार) की ओर से इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।’’

जनहित याचिका में कहा गया है कि स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति को चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा जाना चाहिए और कर्तव्य में लापरवाही बरतने तथा ‘ललिता कुमारी’ मामले में शीर्ष अदालत के 2013 के फैसले का अनुपालन नहीं करने के लिए राज्य एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश जारी किये जाने चाहिए।

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Manipur Violence Supreme Court : शीर्ष अदालत ने ‘ललिता कुमारी’ मामले में दिये अपने फैसले में पुलिस के लिए दिशानिर्देश जारी किये हैं, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 154 के तहत प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है, यदि सूचना संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती है और ऐसी स्थिति में कोई प्रारंभिक जांच अनुमेय नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि यदि सूचना किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करती है, लेकिन जांच की आवश्यकता का संकेत देती है, तो यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच की जा सकती है कि क्या सूचना किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।

तिवारी ने मणिपुर में हिंसा की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) जांच के लिए अदालत से निर्देश देने का अनुरोध भी किया है। जनहित याचिका में कहा गया है कि हिंसा से प्रभावित राज्य में कोई निवारक और सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए हैं, जहां 'कानून और संविधान के शासन का उल्लंघन' हुआ है। इसमें कहा गया है कि हिंसा ने आम लोगों का जीवन दयनीय बना दिया है। इसमें दावा किया गया कि हिंसा को रोकने के लिए केंद्र या राज्य सरकार की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।

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जनहित याचिका में कहा गया, ‘‘मणिपुर पुलिस ने सोशल मीडिया पर इस घटना को अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला बताया। इस तरह के संज्ञेय अपराध से देश की आपराधिक कानून प्रणाली के अनुसार नहीं निपटा गया और यह उच्चतम न्यायालय के (2013 के) फैसले के अनुरूप नहीं था।’’ जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘ललिता कुमारी’ मामले में शीर्ष अदालत के 2013 के फैसले के अनुसार, संज्ञेय अपराध की जानकारी होने पर पुलिस का कर्तव्य बनता है कि वह प्राथमिकी दर्ज करे।

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उच्चतम न्यायालय ने 20 जुलाई को कहा था कि मणिपुर में दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के वीडियो से वह ‘बहुत व्यथित’ है और हिंसा के लिए महिलाओं को साधन की तरह इस्तेमाल करना ‘किसी भी संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य’ है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस वीडियो पर संज्ञान लिया और केंद्र तथा मणिपुर सरकार को फौरन उपचारात्मक, पुनर्वास संबंधी और निवारक कार्रवाई का निर्देश दिया। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘मणिपुर में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटना से संबंधित वीडियो कल सामने आया है और अदालत इससे बहुत व्यथित है। मीडिया में जो कुछ दिखाया जा रहा है वह संवैधानिक मानवाधिकारों का उल्लंघन और अतिक्रमण है।’’ मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' निकाले जाने के बाद राज्य में जातीय हिंसा भड़क गई थी, जिसमें कम से कम 160 लोग मारे गए हैं और कई सौ घायल हुए हैं।

 

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