Nithari : गरीब नौकर को राक्षस बनाकर फंसाने का आसान रास्ता चुना, मानव अंग व्यापार पर जांच नहीं, जानें हाईकोर्ट के फैसले की एक-एक बारीकी
Nithar case Allahabad High Court acquit Pandher and Koli: सुरेंद्र कोली को किस आधार पर हाईकोर्ट ने दोषी नहीं माना और कर दिया बरी, आइए जानतें है सबसे खास बातें...
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Nithari Kand High Court Verdict : निठारी नरकंकाल का सच क्या है? नरकंकाल तो मिले, लेकिन कातिल कौन है, अब इस पर पर्दा पड़ गया है. मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या कर उनकी लाश के टुकड़े-टुकड़े किए गए. लेकिन ये सबकुछ निठारी की कोठी डी-5 में हुआ, इसके कोई सबूत नहीं मिले. क्या मासूम बच्चों की हत्या सिर्फ उनके साथ रेप के लिए किए गए या फिर किसी मानव अंगों की तस्करी के लिए. ये सवाल भी शायद हमेशा के लिए राज ही बनकर रह जाएगा. क्योंकि अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिन दो केस में मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को बरी किया है उस फैसले की एक-एक डिटेल जानकर निठारी कांड एक बार फिर से उसी खंडहर में राज की तरह दफ्न हो जाएगा जिसमें कभी वो पहले से ही था.
असल में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे निठारी कांड की जांच को लेकर बड़े सवाल उठाए हैं. जिस तरह से जांच एजेंसियों ने छोटी से छोटी और बेहद ही बेसिक गलतियों को दोहराया है उसे जानकर लगेगा कि आखिर देश में जांच का स्तर क्या है. हम फॉरेंसिक जांच में कितने पीछे हैं. अगर कोई आरोपी बयान देता है तो उससे जुड़े साक्ष्य और सबूत जुटाने में हमारी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी यानी सीबीआई कितनी एक्सपर्ट है, उसकी भी इस निठारी कांड के फैसले से कलई खुल जाएगी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तो सबसे पहले कहा कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सरकार द्वारा निठारी कांड को लेकर मानव अंगों के व्यापार (Human Organ Trade) होने के एंगल से जांच करने की खास सिफारिश की गई थी. लेकिन इसकी संभावित जांच करने में जांच एजेंसी पूरी तरह से विफल रही है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि निठारी में हत्याओं के जिम्मेदार का पता लगाने में लापरवाही जांच एजेंसियों द्वारा जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात से कम नहीं है. इसके साथ ही ये भी कहा कि हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की जांच सही से नहीं की गई. और तो और सबूत इकट्ठा करने के बुनियादी मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन किया गया.
हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि हमें ऐसा लगता है कि जांच में अंग व्यापार की संगठित गतिविधि की संभावित संलिप्तता के अधिक गंभीर पहलुओं की जांच पर ध्यान दिए बिना ही घर के एक गरीब नौकर को राक्षस बनाकर फंसाने का आसान रास्ता चुना गया.
निठारी डी-5 कोठी में कोई हत्या हुई, इस बात के नहीं मिले सबूत
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Nithari Case : हाईकोर्ट के जजमेंट में ये साफ कहा है कि डी-5 में कभी कोई हत्या होने के सबूत नहीं मिले हैं. हाईकोर्ट के जजमेंट में लिखा है....
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कभी कोई हत्या मकान नंबर डी-5 के अंदर हुई हो। यदि आरोपी सुरेंद्र कोली ने वास्तव में हत्या की है और घर के अंदर 16 टुकड़ों में बंटी लाशें थी तो वहां किसी ना किसी सामान पर कुछ खून के धब्बे जरूर होते। घर और उसके कपड़ों पर भी मिलने चाहिए थे। इसके अलावा, इंसानी खाल या उसके कुछ कटे फटे टुकड़े, मांस और हड्डियाँ अवश्य कोठी के बाथरूम या किसी कमरे के हिस्से से जरूर मिलतीं। एक्सपर्ट की एक टीम FSL आगरा से इस मकान की जांच की गई थी। सीबीआई ने एम्स के विशेषज्ञों की एक टीम भी गठित की जिन्होंने मकान नंबर डी-5 की बेहद ही गहराई से जांच की और सैंपल लिए। लेकिन उस कोठी से ना ही किसी दूसरे इंसान से जुड़े कोई सबूत मिला और ना ही खून से सने कपड़े, न कोई खून का धब्बा ही कहीं से मिले।
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क्या सुरेंद्र कोली ने मर्डर के बाद इंसानी मांस को खाया, इस पर क्या है फैसले में
Nithari Kand Ka sach : अगर सुरेंद्र कोली ने वास्तव में इंसानों को पकाकर खा रहा था तो निश्चित रूप से किचन की दीवार या किसी बर्तन में बॉयोलॉजिकल अवशेष (इंसानी मांस के अवशेष) पाए जाने चाहिए थे. लेकिन ऐसे कोई भी निशान होने के सबूत नहीं मिले. इस तरह सुरेंद्र कोली के दिए गए बयान (कबूलनामा) के अलावा ऐसा कोई साइंटिफिक एविडेंस नहीं मिला जिसे पता चला हो कि वो नरभक्षि था. इसके अलावा सुरेंद्र कोली के कबूलनामे में जिस सफाई करने वाले कपड़े से गला घोंटकर हत्या करने का दावा है वो कपड़ा डी-5 से कभी मिला ही नहीं.
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जांच एजेंसी ने ये बेसिक जांच में भी बरती लापरवाही
Nithari Case Investigation Failure Why : हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जांच एजेंसी के बेसिक जांच के आधार पर बड़े सवाल उठाए हैं. जैसे किसी भी सामान्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामले में कोई भी जांच एजेंसी खासतौर पर बेसिक जांच जरूर करती है. जैसे…Last Seen, Witness who has seen or heard the Victim near the spot, Motive, Witnesses to preparation, Post Offence Conduct, Recovery of blood-stained weapons, Forensics Blood on clothes used by the accused, Forensics-DNA or semen on the spot of victim's clothes, Forensics- Blood on the Spot. लेकिन मजे की बात यह है कि ये जितने भी प्वाइंट्स हैं इससे जुड़ा कोई भी सबूत नहीं है. यानी जांच एजेंसी ने इन बेसिक जांच को भी पूरा नहीं किया.
कोली के बाथरूम में कभी कोई ब्लड स्पॉट क्यों नहीं मिला
Surendra Koli : सुरेंद्र कोली के कबूलनामे में कई बार कहा गया है कि वो शवों को कई घंटों तक बाथरूम में रखे रहता था. ड्राइंग रूम में चारों ओर कपड़े बिखरे हुए थे. ये कथित तौर पर तब भी हुआ जब लोग घर में थे. लेकिन इसके बाद भी किसी का बिखरे हुए कपड़ों पर ध्यान नहीं गया. ऐसा कैसे हो सकता है कि बाथरूम से बदबू नहीं आ रही हो. क्योंकि कभी किसी ने बाथरूम से बदबू आने की जानकारी नहीं दी. इस पर विश्वास करना कठिन है कि 16 हत्याओं में से किसी पर भी किसी का कोई ध्यान नहीं गया. इसके अलावा, कोई खून का धब्बा नहीं था.
सुरेंद्र कोली के ऑडियो वीडियो कबूलनामा भी इस वजह से हो गया खारिज
Nithari Surendra Koli : सुरेंद्र कोली के मैजिस्ट्रेट के सामने किया गया कबूलनामा भी हाईकोर्ट में नहीं टिक सका. इसके पीछे भी हाईकोर्ट ने कई वजहें बताई हैं. सबसे पहले तो सुरेंद्र कोली के कबूलनामे के लिए जिस कैमरे से रिकॉर्डिंग की गई थी उसकी असली चिप कभी भी कोर्ट में पेश नहीं की गई. उस वीडियो वाले कबूलनामे पर सुरेंद्र कोली का साइन भी नहीं कराया गया था. बिना उसके हस्ताक्षर के ही वो कबूलनामे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई थी. इसके अलावा सीआरपीसी की धारा-164 ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं देती है. ये भी उल्लंघन है.
क्या लाश के टुकड़े कर नाले में फेंके या काट-काटकर, फंस गया ये पेच
Surendra Koli : कोली के कबूलनामे के अनुसार, उसने इंसानी शरीर के कटे हुए अंगों को एक पॉलिथीन बैग में डालकर डी-5 के पीछे गैलरी में फेंक दिए थे. अगर ऐसा सच में होता तो गैलरी के पीछे उस तरह के बैग एक दूसरे के ऊपर आते हुए वहां ढेर लग जाता. लेकिन कोठी के पीछे गैलरी में ऐसा कोई ढेर नहीं मिला. सुरेंद्र कोली के कबूलनामे वाले वीडियो में ऐसा कभी नहीं कहा गया कि प्लास्टिक के बैग को जमीन में गहराई तक दबाया था. लेकिन जो पंचनामा और सबूत की लिस्ट बनाई गई थी उसमें एक जगह लिखा है कि खोपड़ियां और हड्डियां जमीन में गाड़ दी गईं थीं.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, कोई भी एक पूरी डेडबॉडी नहीं मिली थी. नाली में डालने से पहले शरीर को कई हिस्सों में काट दिया गया था. लेकिन कबूलनामे में ये कहा गया है कि 4 पीड़ितों के शरीर को बिना काटे ही फेंक दिया गया था. लेकिन जब उनके कंकाल मिले तो कई हिस्सों में कटे हुए थे. उस कंकाल से जुड़े DNA भी मैच हो गए. ऐसे में दोनों बातें कैसे सही हो सकती हैं.
Report By : Sunil Maurya & Privesh Pandey
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