malegaon GangRape : 28 साल पहले फोटो स्टूडियो में दुल्हन जोड़े में महिला से गैंगरेप में नया मोड़, दोनों आरोपी बरी, वजह हैरान कर देगी

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Malegaon Gang Rape : सांकेतिक फोटो
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महाराष्ट्र से विद्या की रिपोर्ट

malegaon Gang Rape : मालेगांव सामूहिक दुष्कर्म मामले में बड़ा फैसला आया है. 28 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन दो लोगों को बरी कर दिया है, जिन्हें 1995 में शहर को हिलाकर रख देने वाले मालेगांव सेक्स स्कैंडल के लिए 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. 1997 में मालेगांव सेशन कोर्ट ने दोनों को सामूहिक बलात्कार की धाराओं के तहत सजा सुनाई थी. असल में दोनों आरोपियों के खिलाफ एक महिला ने केस दर्ज कराया था. जिसकी शादी नवंबर 1995 में हुई थी. उसने शादी की ड्रेस में फोटो खिंचवाने की इच्छा व्यक्त की थी. हालाँकि, उनके पति ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उन्हें पास के एक स्टूडियो में अपनी तस्वीर खिंचवाने के लिए 20 रुपये दिए थे.

इसलिए, महिला ने दिसंबर 1995 में फोटो खींचने के लिए मालेगांव के इस्लामपुरा इलाके में स्थित 'सनराइज फोटो स्टूडियो' से संपर्क किया. वो महिला उस स्टूडियो में पहुंची थी. महिला ने दावा किया था कि स्टूडियो में दो लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया और उसकी न्यूड तस्वीरें खींचीं थी. लगभग दो हफ्ते बाद महिला और उसके पति दोनों एक साथ अपनी तस्वीरें लेने गए तो उन्हें ब्लैकमेल किया गया था. असल में महिला स्टूडियो के अंदर अकेले गई थी. जबकि उनके पति बाहर खड़े थे. उसी समय दोनों आरोपियों ने ब्लैकमेल करते हुए न्यूड तस्वीरें दिखाईं और एक दूसरे स्थान पर आने के लिए कहा था. न्यूड तस्वीरें देखकर महिला ने उसे गुस्से में हाथ में लेकर फाड़ दिया था. हालांकि, महिला जब ऐसा कर रही थी तब बाहर खड़े उसके पति ने देख लिया था. खुलासे के बाद एफआईआर दर्ज की गई और इस खबर को फोटो स्टूडियो में सेक्स स्कैंडल के तौर पर खूब प्रचारित किया गया।

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Court News : सांकेतिक फोटो

क्या हुआ कोर्ट में, क्यों हुए दोनों बरी

उच्च न्यायालय में मिस्बाह सोलकर के साथ वकील अजिंक्य उदाने और अमीन सोलकर दोषी व्यक्तियों की ओर से पेश हुए और बताया कि नग्न तस्वीरों में यह नहीं कहा जा सकता है कि यह शिकायतकर्ता की है क्योंकि जो फोटो है वो प्राइवेट अंगों की थी. वकीलों ने यह भी बताया कि इस्लामपुरा में जहां स्टूडियो है वह घनी आबादी वाला इलाका है. इसलिए अगर शिकायतकर्ता ने कुछ शोर मचाया था, तो यह आश्चर्य की बात है कि किसी ने चीख-पुकार कैसे नहीं सुनी. और कोई भी उसके बचाव में क्यों नहीं आया. कोर्ट में उस महिला के पति के बयान की ओर भी इशारा किया गया क्योंकि महिला ने अपने पति से शिकायत क्यों नहीं की. 

न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने मुकदमे के समक्ष रखे गए साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद कहा , "प्रमुख गवाहों के साक्ष्यों से सामने आई आरोपों में तालमेल नहीं दिख रहा है. इसके मद्देनजर अभियोजन पक्ष का मामला संदिग्ध प्रतीत होता है।" पीठ ने आगे कहा, "आक्षेपित निर्णय अभियोजन पक्ष के मामले में गंभीर कमियों और खामियों पर विचार करने में विफल रहा है जो इसकी विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं और केवल इस आधार पर कि अभियोजक ने घटना की रिपोर्ट नहीं की क्योंकि वह नवविवाहित थी।" रिपोर्ट दाखिल करने में लगभग 15 दिनों की देरी के बावजूद ट्रायल जज ने उसके कथन पर विश्वास किया है।" पीठ ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले को प्रभावित करने वाली बात सिर्फ एफआईआर दर्ज करने में देरी नहीं थी, बल्कि "शिकायतकर्ता और उसके पति के बयान में असंगतता और बलात्कार के गंभीर अपराध के साबित होने या अनुमान लगाने के आधार पर" थी। 

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