Lakhimpur Kheri Case : टेक्निकल पेच में अटक गई आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की रिहाई, जेल का ताला खुलने में लग सकता है वक़्त
अजय मिश्रा टेनी के बेटे को मिली बेल, टेक्निकल पेच में उलझ गई रिहाई, Read more crime news Hindi, crime stories in Hindi and viral video (वायरल वीडियो) on CrimeTak.in
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सलाखों में अटक गई ज़मानत
LATEST CRIME UPDATE: केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनू को लखीमपुर खीरी कांड में ज़मानत तो मिल गई लेकिन जेल से रिहाई मिलने में शायद अभी कुछ और वक़्त लगे। क्योंकि ज़मानत और रिहाई के बीच एक पेंच ऐसा फंसा कि सलाखों के ताले में लगी चाबी घूमने से पहले ही अटक गई।
गुरुवार को जिस वक्त पश्चिम उत्तर प्रदेश में यूपी विधानसभा चुनाव के पहले दौर की वोटिंग चल रही थी ऐन उसी वक़्त हाईकोर्ट में आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की ज़मानत याचिका पर सुनवाई चल रही थी। और शाम होते होते हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुँच चुकी थी कि आशीष मिश्रा को जमानत दी जा सकती है।
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ज़मानत ऑर्डर में टेक्निकल पेंच
LATEST CRIME NEWS IN HINDI:लेकिन इससे पहले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के घर पर खुशियों की खबर दस्तक दे पाती हाईकोर्ट की ज़मानत की ऑर्डर की कॉपी में एक टेक्निकल पेंच फंस गया। और ताला खुलने से पहले जमानत की चाबी ऑर्डर के लीवर में ही फंस कर रह गई।
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असल में हाईकोर्ट ने आशीष मिश्रा को IPC की धारा 147, 148, 149, 307 सी, 326, 427, दफ़ा 34 और 30 आर्म्स एक्ट में ज़मानत दी है। लेकिन उस ज़मानत के ऑर्डर की इबारत में कहीं भी दफ़ा 302 और 120B का ज़िक्र तक नहीं किया गया है।
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ये मामला इतना संजीदा है कि किसी भी जेल अधिकारी और पुलिस अफसर की हिम्मत ही नहीं पड़ी कि उस ऑर्डर कॉपी में लिखी धाराओं से नज़रें फेर ले। क्योंकि आशीष मिश्रा के ख़िलाफ मामला ही हत्या और हत्या की साज़िश रचने का ही उत्तर प्रदेश की पुलिस की SIT ने दर्ज की थी।
ऑर्डर की कॉपी में रह गई ये बड़ी कमी
LAKHIMPUR KHIRI CASE UPDATE:दिल को बहलाने के लिए अब ये कहा जा रहा है कि क्लर्किल मिस्टेक है, यानी लिपिकीय त्रुटि है, जिसकी वजह से ज़मानत की ऑर्डर कॉपी में दो सेक्शन लिखने से रह गए। इसलिए अब आशीष मिश्रा के वकीलों ने इस ज़मानत ऑर्डर में सुधार के लिए 11 फरवरी को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दे दी है।
जल्दी ही सुधार के साथ ऑर्डर की कॉपी जारी हो जाएगी। अदालत से नए ऑर्डर की कॉपी आने के बाद ही बेल बॉन्ड यानी ज़मानत के कागजात पर दस्तखत किए जाएगे। उसके बाद वो आदेश की कॉपी जेल पहुँचाई जाएगी, तब जाकर आशीष की सेल का ताला खुल पाएगा।
लखीमपुर खीरी कांड में आशीष मिश्रा पर आंदोलनकारी किसानों पर अपनी थार गाड़ी चढ़ाकर उन्हें कुचलने और इस पूरी साज़िश को रचने का आरोपी उत्तर प्रदेश पुलिस की SIT ने बनाया है। आशीष मिश्रा उर्फ मोनू के अलावा 13 और लोगों को भी इस मामले में SIT ने आरोपी बताया है।
टेक्निकल सुधार के लिए याचिका
LAKHIMPUR BAIL UPDATE: इस वारदात को चार महीने से ज़्यादा का वक़्त हुआ है। इस दौरान आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की तरफ से हाईकोर्ट में एक याचिका दी गई थी जिसमें उसे 147, 148, 149, 279, 338, 302, 304A, 120 B धाराओं में ज़मानत देने का अनुरोध किया गया था। मगर एप्लीकेशन में तमाम धाराएं कुछ इस अंदाज़ में लिखी थी कि ऑर्डर को टाइप करते वक़्त दो प्रमुख धाराएं लिखने से छूट गईं।
इस बीच खबर ये भी सामने आई है कि आशीष मिश्रा की ज़मानत याचिका का किसान पक्ष ने जमकर विरोध किया। हालांकि हाईकोर्ट से आशीष मिश्रा को जमानत दे दी गई। मगर किसान पक्ष चार्जशीट में दर्ज 17 वैज्ञानिक साक्ष्यों, सात फिजिकल सबूत और 208 गवाहों की बुनियाद पर जल्द ही एक बेल रिजेक्शन एप्लीकेशन हाईकोर्ट में दाखिल करेगा।
सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला तो ये होगा
LATEST UPDATE NEWS: सुप्रीम कोर्ट के एक वकील के मुताबिक हाईकोर्ट जिस मामले में ज़मानत आदेश देता है उसके ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही अपील याचिका दायर हो सकती है जिसके लिए एक खास और लंबी प्रक्रिया है।
इस मामले में होगा ये कि किसान पक्ष की ओर से जब सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन फाइल की जाएगी, तो सुप्रीम कोर्ट उस बारे में पहले विचार करेगा कि किसानों की वो गुहार स्वीकार करने के योग्य है भी या नहीं। पिटिशन दाखिल होने और उसके स्वीकार या खारिज होने में तीन से पांच दिन का वक़्त लग ही जाता है।
सुप्रीम कोर्ट अगर पिटिशन स्वीकार कर लेता है तो सभी पक्षों को नोटिस भेजा जाता है। नोटिस भेजने के बाद दूसरी तारीख कम से कम 15 दिन बाद ही मिल पाती है। उस तारीख में सभी पक्षों को अपना अपना लिखित जवाब देना होगा।
जवाब दाखिल होने के बाद बहस पर एक और तारीख मिलेगी। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज सारे पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला देंगे। यानी मोटे तौर पर देखें तो इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 20 से 25 दिन से लेकर क़रीब एक महीना तक लग सकता है।
ऐसे में अब ये कहा जा सकता है कि अगर जब तक हाईकोर्ट का संशोधित ज़मानत ऑर्डर आने में थोड़ा भी वक़्त लग गया, और इस बीच मामला कहीं से सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया तो कहीं ऐसा न हो कि आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की जेल की सलाखों के ताले में अटकी चाबी कहीं फंस कर न रह जाए। और ये टेक्निकल पेंच कहीं बड़ा लोचा न खड़ा कर दे।
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