डॉक्टर नहीं कह सकते कि रेप हुआ या नहीं, यह कोर्ट का काम; बलात्कार मामले में बोला HC

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डॉक्टर नहीं कह सकते कि रेप हुआ या नहीं, यह कोर्ट का काम; बलात्कार मामले में बोला HC
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय
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Court News: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक वर्षीय पोती के बलात्कार मामले में एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा. साथ ही देश में महिलाओं की स्थिति पर भी चिंता जताई. कोर्ट का कहना है कि 2012 में 'निर्भया कांड' के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ है. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और खासकर रेप के मामले बढ़ रहे हैं.

मामले की सुनवाई जस्टिस संजय धर और जस्टिस राजेश सेखरी की बेंच कर रही थी. इस मामले में कोर्ट ने कहा, 'यह जानकर मेरा शरीर कांप जाता है कि एक दादा ने अपनी हवस मिटाने के लिए एक साल की पोती के साथ रेप किया.' मामला साल 2011 का है. दरअसल, बोध राज नाम के शख्स की ओर से अपील दायर की गई थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने 2013 में उसे सजा सुनाई थी.

राज पर आरोप है कि वह उस कमरे से भाग गया जहां एक साल की बच्ची खून से लथपथ रोती हुई पाई गई थी. मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टर ने बताया था कि लड़की की हाइमन फट गई है और प्राइवेट पार्ट्स पर भी चोटें आई हैं. डॉक्टर ने कहा कि यह यौन हिंसा का मामला हो सकता है, लेकिन अन्य संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

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राज ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से पुरानी दुश्मनी के कारण उसे फंसाया गया है. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया. सुनवाई में स्टार गवाह की ओर से कोर्ट को घटना की पुख्ता जानकारी दी गयी. कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा, ''अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध भयानक है, जिसकी एक आम आदमी कभी कल्पना भी नहीं कर सकता.''

डॉक्टर को सलाह

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स पर चोट के निशान और वीर्य के दाग न हों तो भी रेप का अपराध साबित किया जा सकता है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि रेप पीड़िता का इलाज करने वाले डॉक्टर ही बता सकते हैं कि ताजा यौन गतिविधि के सबूत हैं या नहीं. वो ये नहीं कह सकते कि रेप हुआ है या नहीं, ये कोर्ट का काम है.

कोर्ट ने कहा, 'रेप पीड़िता का इलाज करने वाले मेडिकल एक्सपर्ट ही हालिया यौन गतिविधि के बारे में बता सकते हैं. रेप हुआ है या नहीं, इस पर राय देना उनका काम नहीं है. जज ने बताया कि चूंकि बलात्कार एक अपराध है, इसलिए यह सुनिश्चित करना अदालत का काम है कि यह आईपीसी की धारा 375 के तहत आता है या नहीं.

अदालत में राज की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया था कि किसी सटीक निष्कर्ष या वीर्य के धब्बे की अनुपस्थिति राज के खिलाफ अभियोजन मामले पर संदेह पैदा करती है। अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा और उसे आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई।

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