आनंद मोहन की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को भेजा ये नोटिस, जानें पूरा मामला

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आनंद मोहन की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को भेजा ये नोटिस, जानें पूरा मामला
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दिल्ली से संजय शर्मा की रिपोर्ट

Bihar Anand Mohan News : बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand mohan) की रिहाई के खिलाफ IAS अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई दो हफ्ते टल गई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को कोर्ट ने नोटिस भेजा है. बता दें कि बिहार की नीतीश सरकार ने कानून और नियम में बदलाव करके आनंद मोहन समेत 26 कैदियों को रिहा कर दिया है. बड़ा सवाल यह है कि क्या कानून ने अभी लाया गया बदलाव वर्षों पहले सुनाई गई सजा पर लागू होगा? 
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. आनंद मोहन मामले में फिलहाल सुनवाई टल गई है. कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी कर मांगा जवाब. आनंद मोहन की रिहाई और बिहार सरकार के नियम बदलने के खिलाफ दाखिल जी कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार, केंद्र सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा. 

anand mohan (File Photo)

आनंद मोहन को रिहा करने के लिए क्या कानून बदला है

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anand mohan singh news : हाल में ही बिहार की नीतीश कुमार सरकार के गृह विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया. ये नोटिफिकेशन 10 अप्रैल को जारी हुआ. इसी नए कानून के तहत अब जल्द ही कानूनी तौर पर आनंद मोहन हमेशा के लिए रिहा हो जाएगा. असल में बिहार के कानून में अब तक ये था कि सरकारी अधिकारी की हत्या करने के दोषी को किसी भी आधार पर रिहा नहीं किया जाएगा. लेकिन अब बिहार सरकार ने जेल नियमावली में संशोधन किया. इसमें बदलाव करते हुए उस पार्ट (बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए) को हटा दिया गया जिसमें लिखा था कि सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी को किसी भी आधार पर जेल से रिहा नहीं किया जाएगा. अब ये नियम बाहुबली आनंद मोहन पर लागू हो रहा था. क्योंकि आनंद मोहन पर पूर्व डीएम जी. कृष्णैया (G krishnaiah) की अपनी मौजूदगी में हत्या कराने का आरोप था. जिसे कोर्ट में साबित भी कर दिया गया. फिर सजा भी सुनाई गई थी. लेकिन अब उस पार्ट को हटा दिए जाने से बिहार में चाहे किसी सरकारी अफसर का हत्यारा क्यों ना हो, उसे जेल नियमावली के आधार पर रिहाई मिल सकती है.

कौन है आनंद मोहन 

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Who is anand mohan singh : आनंद मोहन का परिवार देश की स्वंत्रता संग्राम में हिस्सा ले चुका है. आनंद मोहन का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ. वो तारीख थी 28 जनवरी 1954. आनंद के दादा राम बहादुर सिंह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर चुके थे. लिहाजा, खिलाफत करना आनंद मोहन के खून में था. अब वो आजादी से पहले अंग्रेजों को खिलाफ था और आजादी के बाद विरोधी नेताओं के खिलाफ. अब साल 1974 का दौर आता है. इमरजेंसी के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ था. जय प्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन शुरू किया. आनंद मोहन भी इसमें शामिल हो गए. 2 साल के लिए जेल भी जाना पड़ा. 

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यहीं से आनंद मोहन ने राजनीति में कदम रखा था. स्वंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर को अपना गुरु बनाया. कुछ साल बाद 1980 में समाजवादी क्रांति सेना नाम से एक संस्था भी बनाई. इसका काम सरकार का विरोध करना था. फिर सरकार ने इनाम घोषित कया और साल 1983 में आनंद मोहन को पहली बार 3 महीने की सजा भी हुई थी. जेल भी जाना पड़ा था.

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1990 में बना अपराधी से माननीय आनंद मोहन

anand mohan singh news : बिहार में 1990 का दौर बेहद अजीब रहा. उस समय जुर्म की दुनिया में जिसका जितना बड़ा नाम उसकी राजनीति में उतनी ही आसानी से एंट्री होती थी. अब तक अपने इलाके में आनंद मोहन का नाम बाहुबली में टॉप पर आ चुका था. लिहाजा, उसी समय जनता दल से महिषी विधानसभा चुनाव का टिकट मिल गया. आनंद मोहन इस विधायकी चुनाव में जीत गया. इसके बाद आनंद मोहन का कद और बढ़ गया. अब ये पिछड़ी जातियों के विरोध के लिए एक प्राइवेट आर्मी भी तैयार कर ली थी. आलम ये हो गया कि 1995 के आते आते ये लालू यादव को टक्कर देने लगा था. इसकी वजह बनी थी 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिश लागू करना. इस सिफारिश का समर्थन जनता दल ने भी किया था. मंडल कमीशन चूंकि पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लेकर था. इसलिए आनंद मोहन ने इसका विरोध किया. अब जनता दल पार्टी छोड़ दी. इसके बाद खुद की बिहार पीपुल्स पार्टी बना ली थी. अब आलम ये हुआ कि लालू यादव पिछड़ों के नेता हैं तो अग्रणी जातियों के असली नेता आनंद मोहन है. लेकिन ठीक उसी साल 1994 में छोटन शुक्ला की हत्या के बाद आनंद मोहन के उकसावे पर हुई डीएम की हत्या में जेल की हवा खानी पड़ी. आखिरकार पहले फांसी की सजा हुई. जिसे कहा जाता है कि आजाद भारत में पहली बार किसी राजनेता को फांसी की सजा हुई. जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील किया गया था. लेकिन आज फिर वो शख्स बिना उम्रकैद की सजा काटे आजाद हो गया.

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