Shraddha Murder Case: महरौली के घने जंगल में रात 2 बजे पहुंचा Crime Tak, 'ऐसा लग रहा था कि अंधेरे में कोई जानवर न मार डाले'

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चिराग गोठी की EXCLUSIVE REPORT

Shraddha Murder Case : दिमाग के एक सवाल आया कि क्यों न उस जगह का सीन Recreate किया जाए, जहां पर आफताब रहता था और जहां पर उसने शरीर के टुकड़े करने के बाद पालिथीन में रखे और बाद में अपने घर से महरौली के घने जंगलों में फेंकने के लिए गया।

तो मैंने ये तय किया कि मौके पर जाया जाए। हम करीब 1 बजे महरौली पहुंचे। मैं और मेरा कैमरामेन रितेश। करीब 2 बजे हमने अपना शूट शुरू किया। हम उस घर पर गए, जहां आफताब रहता था। यानी छतरपुर पहाड़ी की गली नंबर 1 का 'खूनी मकान'। हमारी टीम देर रात पहुंची। 2 बजे हमने वहां से महरौली के जंगल तक पैदल जाने का निर्णय किया।

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Shraddha Murder Case : रात का वक्त। चारों तरफ अंधेरा। एकाध आदमी हमें बीच बीच में दिखाई दे रहा था। हां कुछ विदेशी लड़कियां, जो शायद नाइजीरिया देश की होंगी, वो जरूर नजर आईं। वो इतनी देर रात कहां से आ रही थी। हमने उसने पूछना चाहा पर वो बिना कुछ जवाब दिये चली गईं। वो छतरपुर पहाड़ी इलाके में संभवत किराए पर मकान लेकर रह रही होंगी।

Shraddha Murder : गली पार करने के बाद हम उसे कंटेक्टिड सड़क , जिसे 60 फुटा रोड भी कहते है, वहां पहुंचे। रास्ते में कुछ ट्रक खड़े हुए दिखाई दिए। उनमें सरिया भरा हुआ था। सरिया उतारने के लिए ट्रक आए थे। कुछ बैंको के एटीएम हमें नजर आए। कुछ जगहों पर सीसीटीवी नजर आए। कही पर कुत्ते भौंकते हुए नजर आए, लेकिन जिनको राजधानी की सड़कों पर होनी चाहिए थी, यानी दिल्ली पुलिस वो कही भी नजर नहीं आई।

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करीब 17 मिनट का पैदर सफर पार करते हुए हम लोग 60 फुटा रोड के महरौली मेन रोड पहुंच गए। इसी से सटा हुआ है जंगल। महरौली का घना जंगल। रात के 2 बज कर 17 मिनट हुए। क्राइम तक के Associate Editor चिराग गोठी इस घने जंगल में अपने कैमरामेन Ritesh Mishra के साथ पहुंचे। एक अजीब सा डर लग रहा था।

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Shraddha Murder : इस घने जंगल में रात 2 बजे मौजूद होना और अंधेरा को चीरना वाकई आसान काम नहीं है। ये जंगल इतना घना है कि रात में कभी भी कोई भी जानवर किसी की जान ले सकता है। ऐसे में आफताब कई दिनों तक इस जंगल में शरीर के टुकडे़ फेंकता रहा और किसी को कानों कान खबर तक नहीं हुई, ये अजीब बात लगती है।

Delhi Murder Update : हमे किसी ने भी नहीं टोका। किसी ने ये नहीं पूछा कि बैग में क्या है और इतनी रात कहां जा रहे हो। जंगल के अंदर पहुंचते ही सैंकड़ों पालिथीन नजर आई। मैंने से सोचा कि दिल्ली पुलिस ने शरीर के टुकड़े तलाशने के नाम क्या सिर्फ खानापूर्ति की थी, क्योंकि इतनी गंदगी की सफाई के लिए कम से कम 50 मजदूरों की जरूरत पड़ेगी। पर पुलिस ने 2.3 कांस्टेबलों के जरिए शरीर के टुकड़े बरामद कर लिए, वो भी छह महीने के बाद।

यानी आरोपी को भी याद था कि उसने शरीर के टुकड़े कहां फेंके थे और वो जमीन के अंदर समाए भी नहीं थे।

जंगल में पहुंचने के दौरान हमें कुछ हड्डी दिखाई पड़ी। जानवरों की आवाजें सुनाई दे रही थी। डर ये था कि वापस कही रास्ता न भटक जाए। डर ये था कि कोई जानवर मार न दे।

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Delhi Shraddha Murder Update : करीब आधा घंटा बिताने के बाद हम जंगल से बाहर निकल आए और अब हम वापस आफताब के घर की ओर चल पड़े। इस पूरे सफर को हमने करीब 1 घंटे में पूरा किया, लेकिन वापस जंगल से आफताब के घर जाते वक्त हमें एक पीसी आर जरूर मिली थी, लेकिन उसने भी अपनी मजबूरी बयां कर दी।

जाहिर है न तो आफताब को लोगों ने रोका और न ही उसे पुलिस दिखाई दी। यही वजह थी कि उसने एक एक करके कई टुकड़े महरौली के जंगल में फेंके।

इस दौरान रात में हमें कुछ लोग मिले, जिन्होंने बताया कि पुलिस कभी कभी दिखाई देती है। इससे ये साफ होता है कि आफताब को भी घर पहुंचने में करीब एक घंटा लगता होगा। ये साफ है कि पुलिस की मौजूदगी नहीं थी, इसलिए आरोपी आफताब का डर निकल गया।

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