DELHI DCP SANJAY SEHRAWAT SUSPENDED : न गिरफ्तारी, न बेल, चार्जशीट का ये कैसा खेल ? अब डीसीपी का हुआ निलंबन, संजय सहरावत की गिरफ्तारी क्यों नहीं ?

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DELHI DCP SANJAY SEHRAWAT SUSPENDED : दिल्ली पुलिस के डीसीपी संजय कुमार सहरावत को निलंबित कर दिया गया है। ये आदेश दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने जारी किया है। इससे पहले दिल्ली पुलिस के एक और डीसीपी शंकर चौधरी और एक एसएचओ भरत सिंह को लेकर भी दिल्ली पुलिस की जबरदस्त किरकरी हुई है। ऐसे में अब संजय सहरावत के खिलाफ देश के सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने चार्जशीट दाखिल कर दी है। लेकिन सवाल ये उठता है कि आरोपी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया ? 7 जून को सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर को 15 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। जब सीबीआई ने महज 15 हजार रुपए के लिए एक सब इंस्पेक्टर को गिरफ्तार किया था तो आखिर डीसीपी संजय सहरावत को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया।

इसके बारे में कानूनी जानकार मानते है कि ये अधिकार सीबीआर्ई के पास होता है कि वो आरोपी को गिरफ्तार करे या नहीं, लेकिन ज्यादातर या यूं कहे कि 99 फीसदी मामलों में एजेंसी या पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है। कई बार केस की ग्रेवेटी और दूसरे फैक्टर्स के बेस पर भी गिरफ्तार नहीं किया जाता है।

लेकिन यहां कई सवाल खड़े होते है कि किन परिस्थितियों में एजेंसियां आरोपी को गिरफ्तार करती है ?

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एजेंसी आरोपी को क्यों गिरफ्तार करना चाहती है ? मसलन क्या वो सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है कि अगर बाहर रहे तो ?

दूसरा क्या वो गवाहों को धमका सकता है ?

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क्या उसके बाहर रहने से केस की जांच पर फर्क पड़ सकता है ?

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क्या वो भाग सकता है ?

क्या उसकी पूछताछ के लिए रिमांड चाहिए, क्योंकि जांच जारी है ?

हालांकि इस पर आरोपी पक्ष की तरफ से कई दलीलें दी जाती है कि वो गवाहों को धमकाएगा नहीं। वो देश छोड़ कर भागेगा नहीं, इसके लिए वो बाकायदा अपना पासपोर्ट जमा करा देता है। इसके अलावा अदालत कई शर्तें लगा देती है।

कानूनी जानकार मानते है कि गिरफ्तार करना अलग विषय है और आरोप पत्र दाखिल करना अलग विषय। ज्यादातर देखा गया है कि आरोपी को तब जमानत मिलती है, जब जांच खत्म हो जाती है यानी जब आरोप पत्र दाखिल हो जाता है, लेकिन उससे पहले एजेंसियां अदालत के समक्ष ये दलीलें देती है कि अभी जांच चल रही, लिहाजा आरोपी को बेल नहीं दी जाए और अदालत ज्यादातर मामलों में बेल नहीं देती है। अगर आरोप पत्र दाखिल हो जाए तो आरोपी को आसानी से बेल मिल जाती है।

अब यहां कई सवाल खड़े होते है ?

क्यों संजय सहरावत को गिरफ्तार नहीं किया गया ?

क्या उन्हें अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया ?

क्या अदालत ने उन्हें बेल पर रिहा किया था ?

क्या अदालत से उसे कोई प्रोटेक्शन मिली थी ?

क्योंकि जो धाराएं संजय सहरावत पर लगी है वो Non-Bailable है। इसमें तो आरोपी तुरंत गिरफ्तार होता है और फिर अदालत में पेश किया जाता है। अदालत ये तय करती है कि उसे बेल दी जाए या नहीं, लेकिन इस मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ ? दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी ने बताया कि कई बार आरोपी को बिना गिरफ्तार किए आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाता है।

हालांकि यहां कई सवाल फिर खड़ होते है

क्या सैंटिग के जरिए अरेस्ट नहीं किया गया ?

क्या डीसीपी का रुतबा गिरफ्तार में रुकावट बना ?

क्या दिल्ली पुलिस में उनके योगदान को ध्यान में रखा गया ?

क्या सीबीआई में डीसीपी संजय सहरावत की जान पहचान काम आई ?

क्या किसी अधिकारी विशेष ने संजय सहरावत को बचाया ?

संजय पर आरोप है कि उसने पुलिस अफसर की नौकरी पाने के लिए उसने जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया। सीबीआई ने हाल ही में इस मामले में संजय कुमार सहरावत के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया है। सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल करने की जानकारी दिल्ली पुलिस मुख्यालय को दी। इसके बाद पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने डीसीपी संजय कुमार सहरावत के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए दिल्ली सरकार को फाइल भेज दी। दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने 9 जून 2022 को डीसीपी संजय कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया। संजय कुमार इस समय दिल्ली सशस्त्र पुलिस की दूसरी बटालियन में डीसीपी के पद पर तैनात थे।

संजय कुमार सहरावत दानिप्स सेवा (दिल्ली अंडमान निकोबार द्वीपसमूह ) के 2009 बैच का अफसर है। सीबीआई ने पूर्वी जिले के तत्कालीन एडिशनल डीसीपी संजय कुमार सहरावत के खिलाफ 7 सितंबर 2020 को भारतीय दंड संहिता की धारा 419/420/467/468/471 के तहत जालसाजी और धोखाधड़ी आदि का मुकदमा (आरसी/एफआईआर) दर्ज किया था।

किसने की थी शिकायत ?

संजय के खिलाफ 2018 में सीबीआई में शिकायत की गई थी। शिकायतकर्ता महाबीर सिंह, जो कि जिला झज्जर, बहादुरगढ़ के सेक्टर 6 के रहने वाले है, ने कहा था कि संजय ने किसी और की शैक्षिक योग्यता और जन्म प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया है। जिसके दस्तावेज इस्तेमाल किए गए है, उसका नाम भी संजय सहरावत है। इसी के आधार पर संजय ने यूपीएससी का एक्जाम दिया था और पास किया था। संजय को दूसरे के जन्म प्रमाण पत्र का फायदा मिला था, क्योंकि उसमें आयु कम थी। महाबीर सिंह संजय के ससुर है।

देश की तेजतर्रार जांच एजेंसी सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के संजय कुमार सहरावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने में ही ढाई साल लगा दिए थे। सीबीआई द्वारा दर्ज आरसी/एफआईआर में ही लिखा है कि इस मामले की शिकायत 14 मार्च 2018 को सीबीआई को शिकायत मिली थी। करीब ढाई साल बाद सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया। फिर जांच का दायरा बढ़ा। पीतमपुरा और सिंघु गांव के घरों और दफ्तर में सीबीआई द्वारा तलाशी भी ली गई थी। सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार बहादुर गढ निवासी महावीर सिंह ने सीबीआई को दी शिकायत में बताया कि एडशिनल डीसीपी संजय की असली जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 है।

क्लर्क से डीसीपी बनने तक का सफर

क्या है FIR में ?

संजय कुमार 15 जुलाई 1998 को श्रम मंत्रालय में क्लर्क भर्ती हुआ था वहां उसकी जन्मतिथि 8 जुलाई 1977 ही लिखी हुई हैं। 4 अक्टूबर 2007 को संजय ने क्लर्क की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। यूपीएससी के माध्यम से संजय का 6 जून 2011 को पुलिस में दानिप्स सेवा में चयन हो गया। एफआईआर के मुताबिक, संजय अपनी असली जन्मतिथि के आधार पर यूपीएससी की परीक्षा में बैठने की उम्र सीमा पार कर चुका था, इसलिए उसने परीक्षा में शामिल होने के लिए 1 दिसंबर 1981 की गलत जन्म तिथि से आवेदन किया।

इस गलत जन्म तिथि के आधार पर यूपीएससी से आयु सीमा में छूट हासिल कर वह परीक्षा में शामिल हो गया। पुलिस अफसर संजय ने जो जन्म तिथि प्रमाण पत्र इस्तेमाल किया, वह दिल्ली में दशघरा इलाके में डीडीए फ्लैट निवासी संजय कुमार का है। उस संजय के पिता का नाम भी ओम प्रकाश है। वह सुनार समुदाय का है। जांच में ये बात भी सामने आई थी कि मंत्रालय में जन्मतिथि प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध नहीं है।

जांच एजेंसी पर खड़े हुए सवाल

इस मामले ने सीबीआई की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस मामले में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज करने में ढाई साल का वक्त लगा दिया। आखिर इसके पीछे वजह क्या थी ? क्यों इतना वक्त लगा ? जब कि इस मामले में जांच के नाम पर ज्यादा काम नहीं था। इस केस में संजय सहरावत दिल्ली में सिंघु गांव का मूल निवासी हैं, सीबीआई चाहती तो पहले ही गांव, स्कूल, कॉलेज के सहपाठियों, दोस्तों, रिश्तेदारों आदि से भी यह बात आसानी से पता लगा सकती थी कि संजय सहरावत का जन्म कब हुआ।

स्कूल, कॉलेज के रिकॉर्ड और प्रमाणपत्र आदि में भी जन्म तिथि होती है। दशघरा निवासी संजय के जन्मतिथि प्रमाणपत्र आदि की सत्यता का पता लगाना भी सीबीआई के लिए बहुत ही आसान काम था, लेकिन इसमें इतना वक्त जाया हुआ, जिससे सवाल उठना तो लाजिमी है।

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