क्या है खालिस्तानी :- What is Khalistani? What is Khalistani Movement?

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क्या है खालिस्तानी :- What is Khalistani? What is Khalistani Movement?
What is Khalistani?
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क्या है खालिस्तानी :- What is Khalistani?

खालिस्तान का मतलब है खालसे की जमीन। यानी सिखों की जमीन। ये एक अलग राष्ट्र खालिस्तान की परिकल्पना है। ये नाम अलगाववादियों ने दिया है। अलगवादी मानते हैं कि हमारा क्षेत्र सिर्फ पंजाब ही नहीं है, बल्कि चण्डीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड राज्यों के भी कुछ क्षेत्र शामिल है।

Khalistani Movement

 

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क्या है खालिस्तानी आंदोलन: - What is Khalistani Movement?

ये आंदोलन है नये राष्ट्र खालिस्तान के लिए। अलगाववादियों को लगता है कि भारत सरकार उनकी मांगों को नहीं मान रही है, लिहाजा ये सपना अभी तक अधूरा है। वो चाहते हैं नया राष्ट्र। सिर्फ पंजाब में ही खालिस्तानी एक्टिव नही हैं। अब कनाडा, यूके, यूएस में रहने वाले अलगाव वादी भी इससे जुड़ गए हैं। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ये लोग आंदोलन कर रहे हैं। हिंसा का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं।

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Khalistani Movement

 

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कब शुरू हुआ था खालिस्तान आंदोलन: - When did the Khalistan movement start?

1940 के आसपास खालिस्तान मूवमेंट शुरू हुआ। खालिस्तान का जिक्र पहली बार "खालिस्तान" नामक एक बुक में किया गया। देश आजाद होने के बाद इसकी मांग और बढ़ने लगी। कई आंदोलन शुरू हो गए। अलगाव वादी सरकार से भिड़ने लगे।

पंजाब में 1984 के दशक में उग्रवाद की शुरुआत हुई। साथ साथ ये आंदोलन और तेज हो गया। दहशत का ये दौर 1995 तक चला। उग्रवाद को कुचलने के लिए भारत सरकार और सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार, ऑपरेशन वुड रोज़, ऑपरेशन ब्लैक थंडर 1 तथा ऑपरेशन ब्लैक थंडर 2 चलाए।

इस दौरान कई लोग मारे गए। भारतीय सिख और प्रवासी सिख आज भी खालिस्तान का समर्थन करते हैं। इन्हें पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और अमरीका, कनाडा और यूके के खालिस्तानी अलगाववादियों का सपोर्ट है।

 

Khalistani Movement

 

खालिस्तान नाम कैसे दिया गया :- How was the name Khalistan given?

1947 के बाद देश का बंटवारा हुआ। उस वक्त पंजाब का एक हिस्सा भारत में तो दूसरा पाकिस्तान में चला गया। अकाली दल ने सिखों के लिए अलग प्रदेश की मांग तेज कर दी। आंदोलन चलता रहा। हालांकि आजादी के पहले से ही खालिस्तान की मांग समय-समय पर उठती रही।

आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने इस मांग को मान लिया। पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया। सिखों के लिए पंजाब, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था। उस समय चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की ही राजधानी बनाया गया, लेकिन इससे भी अलगाववादी संतुष्ट नहीं हुए। उनका कहना था कि और अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन अब सरकार अलगाववादियों की एक भी बात मानने के लिए तैयार नहीं हुई। लिहाजा दोनों पक्षों में संघर्ष चलता रहा।

13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इस झड़प में 13 अकाली कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। इसके बाद रोष दिवस मनाया गया। इसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले ने हिस्सा लिया। भिंडरावाले ने सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। पंजाब में बढ़ती हिंसक घटनाओं के लिए भिंडरावाले को जिम्मेदार ठहराया गया। सरकार ने भिंडरावाले को मार गिराया।

भिंडरावाले की मौत के बाद हालात बिगड़ गए। 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या ने कर दी। इसके बाद देश में दंगे हो गए। लेकिन सरकार ने इसके बाद खालिस्तान मूवमेंट को उठने नहीं दिया। हालात ये है कि इस वक्त भारत में खालिस्तान आंदोलन की कमर टूट गई है, लेकिन अब भी देश के कई हिस्सों में खालिस्तान समर्थक मौजूद हैं।  खालिस्तान 1993 में UNPO का भी सदस्य बना।

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