जब लखनऊ के जेल सुपरिंटेंडेंट हत्याकांड में आया मुख्तार का नाम, गवर्नर हाऊस के सामने चली गोलियां, आज भी ये सवाल हत्यारा कौन?

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जांच जारी
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Mukhtar Ansari: तारीख 4 फ़रवरी 1999 को लखनऊ जेल के जेल सुपरिंटेंडेंट आर.के.तिवारी की राज भवन से थोडी दूर पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसा कर हत्या कर दी गई। अचानक गवर्नर हाउस के सामने पूरा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा। हत्या हाईप्रोफाइल थी लिहाजा पुलिस और एसटीएफ की कई टीमों को जांच में लगा दिया गया। इस हत्याकांड से जुड़ा मुकदमा लखनऊ के हजरतगंज में दर्ज हुआ। जांच की जिम्मेदारी जिले के तेज तर्रार इंसंपेक्टर टीपीएस वर्मा को सौंपी गई। जांच कर रही टीम को ये पता चला कि आर के तिवारी की किसी से जाती दुश्मनी नहीं थी। बार बार जांच की सुई लखनऊ जेल की सलाखों के पीछे जाकर अटक जा रही थीं।

जेल सुपरिंटेंडेंट आर के तिवारी हत्याकांड

जांच का दायरा जेल से ही शुरू हुआ क्योंकि जेल सुप्रिटेंडेंट का मर्डर किया गया था पुलिस की कई टीम में बनाई गई और टीमों ने कम से कम मुख्तार अंसारी के ढाई सौ से ज्यादा गुर्गों से पूछताछ की। लखनऊ से लेकर देवरिया तक और यूपी के कई हिस्सों से दर्जनों लोग रातों रात उठा लिए। हिरासत में पूछताछ शुरु की गई। यूपी पुलिस की टीम ने जल्द ही शूटरों की गिरफ्तारी कर चौंकाने वाला खुलासा किया। जांच में पता चला कि ये शूटर मुख्तार अंसारी गैंग से ताल्लुक रखते थे। पुलिस ने हत्या के कुछ दिन बाद ही खुलासा किया की हत्याकांड को किसी और ने नहीं बल्कि बाहुबली डॉन मुख्तार अंसारी ने अंजाम दिलवाया। 

शूटरों की गिरफ्तारी पर चौंकाने वाला खुलासा

इस हत्याकांड में मुख्तार के अलावा अभय सिंह का नाम भी सामने आया। आरोप लगे कि मुख्तार ने अपने शूटरों के जरिए रमाकांत तिवारी की हत्या करवा दी। पुलिस ने साजिश का खुलासा करते हुए बताया कि जिस वक्त आर के तिवारी की हत्या की गई उस वक्त खुद मुख्तार अंसारी और उसके कई गुर्गे लखनऊ जेल में बंद थे। ये किसी से छुपा नहीं था कि डॉन मुख्तार की जेल में सल्तनत चलती थी। वो जो चाहता वो खाता जैसे चाहता वैसे रहता था। मुख्तार और उसके साथियों के लिए खाने पीने का खास इंतजाम किया जाता था। इलाहाबाद अब का प्रयागराज के रहने वाले जेल अधीक्षक आर के तिवारी चूंकि सख्त आफिसर माने जाते थे। लिहाजा लखनऊ जेल में तिवारी ने सख्तियां करना शुरु कर दिया।

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डॉन मुख्तार की जेल में सल्तनत

आर के तिवारी से मुख्तार गैंग को परेशानी होने लगी। अभी ये सिलसिला चल ही रहा था कि एक रोज़ आर के तिवारी ने मुख्तार के खास शूटर बबलू उपाध्याय को जेल के रिंग में बुला लिया। कहा जाता है कि जेल के रिंग में बुलाया जाना एक सजा मानी जाती है। ये बात मुख्तार गैंग को इतनी बुरी लगी कि गैंग ने आर के तिवारी से बदला लेने की ठान ली। बबलू उपाध्याय को मुख्तार अंसारी का राइट हैंड बताया जाता था और वह मुख्तार अंसारी का बेहद खास हुआ करता था। यह वह दौर था जब मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी जेल के अंदर मुख्तार अंसारी का दरबार सजता था। जेल की हालत यह थी कि मुख्तार अंसारी जब जहां जैसे जाना चाहता था चला जाता था। कई बार तो यह भी कहा गया कि मुख्तार अंसारी जेल सुपरिंटेंडेंट के कमरे में सो जाया करता था। मुख्तार से मिलने वालों को कोई रोक-टोक नहीं थी उसके परिवार और बीवी जब चाहे तब वहां जाकर उसके साथ मेल मुलाकात कर लिया करती थी। 

जेल के अंदर मुख्तार अंसारी का दरबार

यह वह दौर था जब मुख्तार अंसारी के लिए जेल में उसकी मनपसंद का खाना बनता था। मुख्तार अंसारी के लिए जेल में तीतर बटेर, मुर्गा, मटन बिरयानी और कोरमा यह सारे इंतजाम हो जाते थे। डॉन मुख्तार ही नहीं जेल के उसके सारे गुर्गे अपनी मनपसंद का खाना खाते थे। यूं मान लीजिए कि पूरे के पूरे जेल में जश्न का माहौल होता था ऐसा लगता था कि किसी का शादी वाली हो। बहरहाल पुलिस की जांच आगे बढ़ती जा रही थी। अचानक पुलिस ने लखनऊ जेल में छापा मारा और जेल से पुलिस को एक नक्शा मिला। इस नक्शे में बाकायदा वो रुट बनाया गया था जिसमे बताया गया था कि जेल अधीक्षक आर के तिवारी कब जेल से निकलते हैं किधर होते हुए कहां जाते हैं। पुलिस को समझते देर ना लगी कि कत्ल के तार सीधे मुख्तार गैंग से जुड़े हैं। रही सही कसर जेल में बंद कुछ कैदियों के बयानों ने पूरी कर दी। 

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जेल के अंदर रची गई कत्ल की साजिश

जांच में सामने आया कि जेल में साजिश रची गई और मुख्तार ने अपने शूटरों को निर्देश दिया कि जब भी जेल अधीक्षक जेल से बाहर निकलेगा उसका काम तमाम कर दिया जाए। इस काम के लिए बाराबंकी के शोएब, देवरिया के रामू के साथ कई शूटरों को शामिल किया गया। प्लान के मुताबिक तारीख 4 फ़रवरी 1999 को जेल अधीक्षक रमाकांत तिवारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। पुलिस ने इस मामले में मुख्तार समेत उसके दर्जनों साथियों को आरोपी बनाया था। लेकिन हैरानी देखिए मुकदमा कई बरस तक चलता रहा। हर बार की तरह कदम दर कदम गवाह मुकरते गए। वही हुआ जैसा कि मुख्तार से जुड़े कई मामलों में होता आया था। आरके तिवारी हत्याकांड में भी मुख्तार अंसारी को बरी कर दिया गया। एक तेज तर्रार और ईमानदार अधिकारी के कत्ल का केस वहीं खत्म हो गया और आज तक यह नहीं पता चला कि जेल सुपरिटेंडेंट का कातिल मुख्तार अंसारी गैंग नहीं तो और कौन है?

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