Shams Ki Zubani: पहले फांसी, फिर उम्र क़ैद और अब रिहाई, राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई की कहानी

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Shams Ki Zubani: राजीव गांधी की हत्या (Assassination) में शामिल सभी दोषियों (Convicts) की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला (Verdict) आया है। तीस साल (Thirty Years) के आस-पास दोषी जेल (Jail) में बंद रहे। इन तमाम लोगों ने हर रोज मौत के डर और दहशत में कई साल गुजारे। डर इस बात का कि ना जाने कब फांसी हो जाए। इसी बीच इन आरोपियों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी। कुछ साल पहले ही राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने खुद अदालत और गवर्नर से माफी देने को कहती हैं। एक आरोपी गर्भवती थी जिसको छोड़ने के लिए खुद पहल की थी।

राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई की कहानी

Shams Ki Zubani: इसी साल मई में एक और फैसला आया। फैसला उस शख्स की रिहाई के आदेश दिया था। वो शख्स जो तीस साल से जेल में था जेल में रहकर उसने दो-दो डिग्रियां हासिल कीं। पढ़ाई में गोल्ड मेडल हासिल किया था। इस आरोपी को भी अदालत रिहा करने का आदेश दे देती है। इस शख्स पर आरोप था कि जिसने युवती धनु जिसने खुद को बम से उड़ाया था उस बम के लिए दो पेंसिल बैटरी और मोटरसाइकिल मुहैया कराई थीं।

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इस शख्स का नाम है ए जी पेरारिवलन। इसी साल 18 मई को ए जी पेरारिवलन को कोर्ट ने रिहा कर दिया था। यूं तो इस केस में कुल 7 लोगों को सजा हुई थी। ए जी पेरारिवलन के छूटने का बाद 6 लोग बचे थे। इन छह को रिहा करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये सभी 30 साल का लंबा वक्त जेल में गुजार चुके हैं। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्ना के बेंच ने सुनाया है।

दरअसल 21 मई 1991 को तमिलनाडु से श्रीपेंरबदूर में सुसाइड बॉंबर धमाका करती है। इस धमाके में 18 लोग मारे जाते हैं हमले में राजीव गांधी की भी मौत होती है। धमाका इतना बड़ा था कि राजीव गांधी के शव की शिनाख्त जूतों और घड़ी से हुई। जांच के दौरान सबसे पहले ए जी पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया। इस मुकदमें में 288 गवाह थे। 26 आरोपी थे। 19 पहले ही रिहा हो चुके हैं।

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आखिर में सात बचे थे ए जी पेरारिवलन के बाद 6 आरोपी बचे थे। 7 लोगों को सजा ए मौत सुनाई थी। केस में 1477 दस्तावेज दाखिल हुए। 10 हजार पन्नों के और 1180 नमूने पेश किए गए जिसके बाद 7 को फांसी हुई थी। इस सात लोगों में ए जी पेरारिवलन, मुरुगन,  नलिनी श्रीहरन, संथन, जयकुमारन, पयास और पी. रविचंद्रन शामिल थे।

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Shams Ki Zubani: इसी साल मई में ए जी पेरारिवलन को रिहा करते हुए कहा गया कि ये साजिश से अनभिज्ञ था। सीबीआई ने भी यह बात मानी कि पेरारिवलन ने बैटरी और बाइक अनजाने में किसी दोस्त को दी थी। 1971 में यह तमिलनाडु वेल्लोर में पैदा हुआ था। जब राजीव गांधी की हत्या हुई उस वक्त पेरारिवलन इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में डिप्लोमा कर रहा था। 18 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील किया था।

जेल में रहकर ही पेरारिवलन ने एमसीए किया था। ये परीक्षा पेरारिवलन ने करीब 90 प्रतिशत अंको से पास की थी। तमिलनाडु की एक परीक्षा में पेरारिवलन गोल्ड मेडलिस्ट भी था। 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एजी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया था। पेरारिवलन की रिहाई के बाद अब 6 दोषी बचे थे जिनको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

छ दोषियों में पहला नाम है मुरुगन का। ये इस ऑपरेशन की अहम कड़ी था। मुरुगन नाम का आरोपी जो कि श्रीलंका के जाफना से भारत आया था। मुरुगन बम बनाने में माहिर था और LTTE का ट्रेनर था। मुरुगन नलिनी श्रीहरन का पति था। गौरतलब है कि नलिनी भी हत्या के इस षड्यंत्र में बराबर से शामिल थी। इन दोनों पति-पत्नी को साल 1999 में फांसी की सजा का ऐलान किया था।

सजा के दौरान ही नलिनी ने जेल में एक बच्ची को जन्म दिया था। बेटी पैदा होने के बाद नलिनी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था। जेल में बंद मुरुगन ने अपनी बीमारी के चलते ही सुप्रीम कोर्ट से मर्सी किलिंग की गुजारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने ये फरियाद नामंजूर कर दी थी। इसने 10 दिनों का उपवास भी रखा था।

Shams Ki Zubani: दूसरा नाम है नलिनी का पूरा नाम नलिनी श्रीहरन है। नलिनी ने चेन्नई से ग्रेजुएशन किया था। जब राजीव गांधी पर हमला हुआ तब नलिनी वह चेन्नई की प्राइवेट कंपनी में स्टेनोग्राफर थी। हैरानी की बात ये है कि सुनवाई के नलिनी के कबूल किया कि वो LTTE के संपर्क में थी। जल्द ही वो LTTE संगठन की सक्रिय सदस्य बन गई थी।  उसका भाई पीएस भाग्यनाथन भी LTTE  से जुड़ा हुआ था। नलिनी भी भाई कीस वजह से LTTE से जुड़ गई।

नलिनी की शादी मुरुगन से हुई थी। नलिनी ने अपनी सजा के दौरान एक बेटी को जन्म दिया था। जिसके बाद नलिनी ने अदालत से कहा कि मुझे और मेरे पति को फांसी की सजा दी गई है लेकिन इस बच्ची का क्या कसूर है। इस अर्जी के बाद सोनिया गांधी ने पहल की थी और उन्होने कहा कि नलिनी को माफ कर दिया जाए।

सजा ए मौत उम्रकैद में तब्दील कर दी गई। 2000 में सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति ने दया याचिका मंजूर की और उसको माफी दी गई थी। नलिनी ने भी मर्सी पिटिशन दी थी जो नामंजूर हो गई थी। नलिनी की 29 साल की बेटी ने लंदन में पढ़ाई की और वहां उसकी शादी हुई है। नलिनी लंदन में शादी होने के लिए पेरोल पर गई थी।  

तीसरा चेहरा है संथन। ये साजिश की हर कड़ी जानता था। 12 सितंबर को 1990 को तमिलनाडु आया था। संथन भी LTTE का सक्रिय सदस्य था। बम धमाके में संथन का अहम रोल था। संथन राजीव गांधी को बम से उड़ाने वाली ह्यूमन बम धनु का बेद कराबी दोस्त था। संथन लगातार LTTE के इंटेलिजेंस हेड पोट्टू अम्मान के संपर्क में था।

जांच के दौरान नलिनी ने संथन के बारे में चौंकाने वाला खुलासा किया था। नलिनी ने जांच एजेंसियों को बताया कि संथन बेहद खतरनाक है और वो ऐसे किसी भी शख्स को जिंदा नहीं छोड़ता जिसने उनसे धोखा किया हो। इसी ने धनु का ब्रेन वाश किया था। संथन को भी पहले फांसी और फिर उम्रकैद की सजा मिली थी। अब उसको रिहा करने के आदेश हुए हैं।

Shams Ki Zubani: चौथा शख्स है पी. रविचंद्रन भी LTTE से सीधे तौर पर जुड़ा था और संगठन का एक सक्रिय सदस्य था। पी. रविचंद्रन ने LTTE श्रीलंका कैंप में हथियारों की ट्रेनिंग भी ली थी। पी. रविचंद्रन LTTE के बड़े नेताओं से जुड़ा हुआ था। बताते हैं कि रविंद्रन की मुलाकात शिवरासन से भी हुई थी। शिवरासन की ही देख रेख में राजीव गांधी पर हमले को अंजाम दिया गया था। शिवरासन ने राजी गांधी पर हमले के बाद खुदकुशी कर ली थी। रविचंद्रन को भी पहले फांसी और फिर उम्रकैद की सजा मिली थी। अब उसको रिहा करने के आदेश हुए हैं।

पांचवा नाम है जयकुमारन। जयकुमारन भी LTTE का सक्रिय सदस्य था। जयकुमारन को LTTE ने ही भारत भेजा था ताकि वो धमाके को अंजाम देने वालों को शेल्टर मुहैया करा सके। बाद में जांच के दौरान खुलासा हुआ कि जयकुमारन की बम धमाकों के आरोपी पयास का रिश्तेदार है। जयकुमारन की बहन की शादी पयास से हुई थी। जयकुमारन बैकअप टीम की लीडर था।

छठा नाम है पयास। पयास भी LTTE का सक्रिय सदस्य था। पयास पर आतंकियों को हथियार बम मुहैया कराने की जिम्मेदारी थी। पयास ने अपने साले जयकुमारन के साथ मिलकर सभी आरोपियों को शेल्टर मुहैया कराए थे। पयास को भी फांसी की सजा हुई थी जिसे बाद में आजीवन कारावासा में बदल दिया गया था। करीब 30 साल तक ये जेल में रहे और अब रिहा हुए हैं। यह सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला माना जा रहा है। इस केस में सभी 7 आरोपियों को सजा ए मौत हुई थी लेकिन मौत की सजा किसी को भी नहीं दी गई।  

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