कोर्ट में शूट आउट के बाद लखनऊ के कामचलाऊ कमिश्नर इसलिए वकीलों के हाथ पांव जोड़ रहे थे!

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बुधवार को लखनऊ में कोर्ट के भीतर हुई हत्या के बाद पुलिस ने सील किया कोर्टरूम
बुधवार को लखनऊ में कोर्ट के भीतर हुई हत्या के बाद पुलिस ने सील किया कोर्टरूम
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sanjeev jeeva shot dead: बुधवार को लखनऊ की अदालत के भीतर जज के सामने जिस तरह कानून की धज्जियां उड़ाई गईं और उसे गोली मारकर लहुलुहान कर दिया गया। आलम ये हो गया कि कचहरी के बाहर कानून के सिपाही ही आमने सामने आकर अपना अफसोस कुछ इस तरह जाहिर करने लगे कि कानून का पालन कराने वाले वर्दी वाले सिपाहियों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। 

धरने पर बैठ गए वकील

अदालत के बाहर काले कोट वाले वकील इकट्ठा हुए और फिर धरने पर बैठ गए। लेकिन उसके बाद जो तमाशा हुआ वो वाकई देखने वाला था। सबके सामने मंद मंद मुस्कुराते हुए हाथ में कुछ कागज के पन्ने और डायरी के साथ साथ महंगा मोबाइल थामें लखनऊ के मौजूदा कार्यवाहक सीपी यानी कमिश्नर ऑफ पुलिस पीयूष मोर्डिया पहुँचते हैं।

लखनऊ में कोर्ट में शूटआउट के बाद वकीलों ने धरना दिया

कमिश्नर पीयूष मोर्डिया की बेइज्जती

कार्यवाहक कमिश्नर का नया नया जिम्मा संभालने वाले पीयूष मोर्डिया को देखते ही  वकील एक साथ बोल पड़े...वापस चले जाओ। पीयूष मोर्डिया वकीलों की ये बात सुनकर मुस्कुराए तो जरूर लेकिन खिसियानी तरीके से । असल में वकील बार बार एक ही बात दोहरा रहे थे कि पुलिस के चौकस बंदोबस्त की वजह से ही शहर की कानून व्यवस्था कोर्ट रूम में जज के सामने गोली खाकर घायल पड़ी है। चारो तरफ खून बिखरा हुआ है इसलिए मेहरबानी करके खाकी के आला अफसर वहां न ही आएं तो बेहतर है। 

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कमिश्नर की वकीलों से मनुहार

अपने तथाकथित फर्ज से बंधे पीयूष मोर्डिया बहुत देर तक वहीं खड़े मुस्कुराते रहे। अंदर ही अंदर कुछ घूंट गटकते रहे। और धरना देकर पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाते वकीलों से मनुहार करते रहे। असल में पीयूष मोर्डिया के शब्द वकीलों से मान जाने की गुहार के थे लेकिन उसका मतलब यही था कि पहले से ही शहर के लॉ एंड ऑर्डर की हालत पर जवाब देना भारी हो रहा है, ऐसे में वकीलों का धरना उनके लिए और परेशानी खड़ी कर देगा। कुल मिलाकर गरज सिर्फ इतनी थी कि जैसे भी हो धरना छोड़ दीजिए। 

कोर्ट के भीतर कानून लहुलुहान

वाकई लखनऊ में कानून व्यवस्था की सच्चाई बताने वाली तस्वीरें कोर्ट से ही बाहर सामने आईं, जबकि जाहिर तौर पर खुद कानून के पैरोकार वकील कानून के सिपाहियों यानी पुलिस पर जरा भी भरोसा करने को राजी करती नहीं दिखाई दे रही है। मगर वकीलों से पुलिस पर भरोसा रखने का भरोसा दिलाने की कोशिश में पुलिस के काम चलाऊ कमिश्नर भरोसा देते दिखाई पड़े। जब खाकी के पास कोई जवाब नहीं होता और वो पूरी तरह से लाचार नज़र आता है तो ऐसे ही झुक जाता है जैसा लखनऊ के कार्यवाहक कमिश्नर पीयूश मोर्डिया बुधवार की शाम कचहरी में करते दिखे। 

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कोर्ट में जज के सामने मारी गई जीवा को गोली, पुलिस ने पकड़ा आरोपी

सच से भरे सवाल और सुरक्षा का ठकोसला

सच्चाई ये भी है कि पुलिस के पास हकीकत तौर पर सच से लदे सवालों का सामना करने की हिम्मत है ही नहीं। और लखनऊ में ये बात हर कोई कहता सुनाई पड़ जाएगा कि लखनऊ के मौजूदा कमिश्नर पीयूष मोर्डिया के कदम जमीन पर हैं ही नहीं...वो तो जमीन के भीतर गड़ जाना चाहते हैं। और उस सोच को भी जमीन में ही दफ्न कर देना चाहते हैं कि पुलिस के नाम पर सुरक्षा की गारंटी का जो ठकोसला शहर में फैला हुआ है। 

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बंदोबस्त को ठेंगा दिखाया

असल में बुधवार की शाम पुलिस बंदोबस्त को बुरी तरह से छलनी किया एक मामूली से छुटभैये गुंडे विजय यादव ने। जिसकी अभी ठीक से मूंछ तक नहीं उगी उसने कोर्ट में सरेआम मूंछों पर ताव देने वाले कानून को घुटने पर ला दिया और कोर्ट रूम में जज के सामने जीवा को गोलियों से भून कर अपनी मूंछ की रेखा पर अपनी उंगली फेरी और कानून के बंदोबस्त को सरेआम ठेंगा दिखा दिया। 

पुलिस के पास कलेजा नहीं है

हालांकि बाद में पुलिस ने उसी 19 साल के शूटर विजय को दबोचकर अपनी जांबाजी की नुमाइश करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उस तस्वीर को देखकर लखनऊ में ये बात तेजी से दौड़ पड़ी कि यूपी पुलिस के पास वर्दी है, हथियार भी हैं लेकिन कलेजा नहीं है, जो आगे बढ़कर जुर्म की कलाई मरोड़ सके। 

साज़िश की गोली से हत्या?

यूपी पुलिस की डरपोक कथा का जितना भी बखान किया जाए उतना कम है, लेकिन बुधवार की शाम ढलते ढलते ये बात सवाल लेकर जुबान पर आ ही गई कि क्या संजीव जीवा को विजय यादव ने यूं ही मारा या उसकी पिस्तौल में साजिश की गोलियां थी। 

जीवा की हत्या साज़िश है

कुछ बातें ऐसी हैं जो सवाल खड़े कर ही रही हैं जिनमें साजिश की महक मिल जाती है। मसलन मुख्तार का साथी संजीव जीवा हमेशा बुलेटप्रूफ जैकेट पहनता था तो बुधवार को अदालत आते वक्त उसने क्यों नहीं पहनी? चलो जीवा ने बुलेटप्रूफ नहीं पहनी ये बात विजय यादव तक कैसे पहुँची और विजय यादव हथियार के साथ कोर्ट रूम कैसे पहुँच गया?

जीवा की हत्या के पीछे गहरी साजिश?

सच का पता लगाएगी SIT

बचने का एक छोटा सा कुतर्क ये बनता है कि वो वकीलों के वेष में था, तो क्या वकीलों को भी कोर्ट में हथियार ले जाने की छूट है। अगर हां तो कोई बात नहीं और अगर नहीं तो? और इन्हीं सवालों के जवाब तो पुलिस के लिए आउट आफ सिलेबस होते जा रहे हैं। हालांकि अब इस मामले में ज़्यादा कुछ नहीं लीपापोती के सिवाय कुछ नहीं होगा, तभी तो एक SIT बनाई गई है, ये भरोसा जिंदा रखने के लिए कि सात दिन में ये नई टीम कोई न कोई ऐसा सच सामने लेकर आ जाएगी जो गले उतर सके। 

यही होता आया है यही होगा!

कुछ दिखावा भी होगा, जैसे पुलिस के कुछ छोटे अफसरों और सिपाहियों को सस्पेंड की चिट्ठी पकड़ा दी जाएगी, और फिर आरोपी का लंबा चौड़ा क्रिमिनल बैकग्राउंड की एक बेहतरीन कहानी सुनाई जाएगी और फिर पुलिस मूंछों पर ताव देती हुई अगले किसी ऑपरेशन की तरफ निकल पड़ेगी। यही होता आया है और यही होगा?

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