'हनुमान गियर लगावत हई', इसलिए फेमस था मुख्तार का ये डायलॉग!

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सांकेतिक तस्वीर
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Don Mukhtar Ansari:  वो 80 का दशक था। सिनेमा के पर्दे पर अमिताभ बच्चन की फिल्में धूम मचा रही थीं। हिन्दुस्तान पर सिनेमा का असर बहुत जल्दी छाने लगता है, लिहाजा बॉलीवुड के लंबू की चाल और ढाल दोनों ही लोगों के दिलो दिमाग पर असर करने लगी थी। सुपर स्टार बन चुके अमिताभ बच्चन ने लोकसभा के चुनाव के दंगल में हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे सियासी मैदान के दिग्गज को पटखनी देकर लोगों के दिलों में हीरो वाली इमेज पूरी तरह से चस्पा कर दी थी। उसी दौर में पूर्वी उत्तर प्रदेश से एक और लंबू निकला और देखते ही देखते फिल्मी पर्दे को उसने निजी जिंदगी में उतार लिया। इस लंबू का नाम था मुख्तार अंसारी। 

पिछड़े पूर्वांचल में बाहूबलियों का डंडा

80 के उस दौर में माहौल पूरी तरह से करवट बदल रहा था। सदियों से पिछड़े होने की तोहमत झेल रहा पूर्वांचल अब पैसे की महक महसूस करने लगा था। क्योंकि विकास के नाम पर कुछ हरकतें तेज होने लगी थीं। रेलवे हो, या सड़क, शराब हो या बालू का खनन या फिर साइकिल और टैक्सी स्टैंड के ठेके इन जगहों पर अब भी बाहूबलियों का ही डंडा चल रहा था। 

मुख्तार अंसारी का तकिया कलाम माफिया नगरी में बड़ा फेमस था

जुर्म की जमीन पर जमते कदम

कॉलेज और यूनिवर्सिटी से बेरोजगारों की फौज निकल रही थी। नौकरी की लंबी लंबी लाइनों से उकताए नौजवान बाहूबलियों के चंगुल में फंसने लगे थे। बाहूबलियों को भी सस्ती कीमत पर ही पढ़े लिखे नौजवान मिलना शुरू हो गए थे। माथे से नालायकी की तोहमत को हटाने की सनक और चंद रुपयों की खातिर मरने मारने को हरदम तैयार रहने वाले नौजवान पिछड़े पूर्वांचल में जुर्म की जमीन पर बढ़ चढ़कर अपने कदम जमाते जा रहे थे। कमर में कट्टा खोंसकर चलने का शौक चरम पर था, स्कूटर पर राइफल लेकर चलना नया फैशन और साइकल पर दोनाली बंदूक लेकर चलने में लोग शान समझने लगे थे। उसी दौर में पूर्वांचल का लंबू यानी मुख्तार अंसारी भी दबंगई की दुनिया में कदम रख चुका था। 

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मुख्तार का तकिया कलाम

मुख्तार अंसारी को नजदीक से जानने वाले और उसकी बातचीत को गौर से सुनने वाले जिस एक शब्द का जिक्र करने से नहीं चूकते वो बेहद हैरान करने वाला है। क्योंकि जब भी कोई बड़ा जुर्म होता था, या फिर जुर्म का कोई मुश्किल टास्क होता था, यानी मुख्तार को जब भी कोई बड़ा काम फंसा हुआ दिखाई पड़ता था तो मुख्तार अंसारी एक जुमला जरूर बोलता था, हनुमान गियर लगावत हई। इस जुमले का मतलब ही होता था कि वो काम अब साम दाम दंड भेद यानी किसी भी तरीके और किसी भी सूरत में होकर रहेगा। 

मुख्तार अंसारी जब भी कहता था कि हनुमात गियर लगावत हई…इसका मतलब काम पक्का

‘हनुमान गियर लगावत हई’ 

पूर्वांचल में मीडिया से जुड़े लोगों की बातों पर यकीन किया जाए तो ये तकिया कलाम आखिर मुख्तार अंसारी क्यों बोलता था, उसे कहां से ये जुमला मिला, तो इसकी भी एक छोटी सी कहानी है।  मुख्तार अंसारी का एक खास शूटर था अन्नू त्रिपाठी। अन्नू त्रिपाठी कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद दिमाग से बेहत तेज था और बहुत शातिर भी। मुख्तार अंसारी उसे अपना काम देकर भले भूल जाएं मगर वो कुछ नहीं भूलता था। मुख्तार अक्सर अपना फंसा हुआ काम अन्नू त्रिपाठी को ही सौंपता था। और जब अन्नू त्रिपाठी अपनी पहली दूसरी कोशिश में कामयाब नहीं हो पाता था और मुख्तार अंसारी उसे टोकता था तो वो पुरवइया लहजे में कहता था ‘हनुमान गियर लगावत हई’ । 

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अपने शूटर से उधार लिया था तकिया कलाम

अन्नू त्रिपाठी का लहजा मुख्तार अंसारी को बहुत पसंद आता था। लिहाजा जब भी अन्नू त्रिपाठी ये जुमला बोलता था, तो मुख्तार उसे दोहराता भी था। धीरे धीरे इस जुमले को मुख्तार अंसारी ने ही अपना तकिया कलाम बना लिया था। जिसका मतलब यही होता था कि अब बड़े से बड़ा काम होकर रहेगा। माफिया की नगरी में ये तकिया कलाम इस कदर फेमस हुआ कि मुख्तार के विरोधी गुट को अगर पता चल जाता था कि मुख्तार ने इस काम की शुरूआत से पहले ये कहा है कि हनुमान गियर लगावत हुई, तो वो समझ जाते थे कि अब कुछ भी हो जाए, ये काम तो होकर ही रहेगा।  बाद में जेल में ही अन्नू त्रिपाठी की हत्या कर दी गई थी। लेकिन उसका दिया हुआ तकिया कलाम मुख्तार अंसारी ने अपने जीते जी जिंदा रखा। 

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