SHO साहब रात में सोना मना है, पहुंच गए एडिश्नल डीसीपी साहब! फिर ये हुआ

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Delhi Sun light Colony SHO Negligence
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Delhi Sun light Colony SHO Negligence : दिल्ली पुलिस के एक SHO (एसएचओ) साहब को सोना बहुत भारी पड़ गया। मतलब सोना गोल्ड नहीं, बल्कि नींद लेना। रात में अचानक IPS अफसर Sunlight Colony थाने पहुंच गए। फिर क्या था, पूरे स्टाफ में हड़कंप मच गया। इन आईपीएस अफसर के साथ कुछ और पुलिस वाले भी थे। अचानक से उनमें से एक बोला - कहां है SHO साहब? थाने में मौजूद पुलिस वाला बोला साहब रेस्ट रूम में सो रहे हैं। फिर दूसरी तरफ से आवाज आई - बताइए उन्हें कि एडिश्नल डीसीपी साहब आए हैं।

Sun light Colony SHO : SHO साहब को एक पुलिसवाला जगाने आया कि एडिश्नल डीसीपी साहब हर्ष इंदौरा जी आए हैं। तपाक से एसएचओ साहब की कुंभकरण नींद टूट गयी। उन्होंने वर्दी पहनी और उठ खड़े हुए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डीसीपी साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। एसएचओ साहब को लाइन हाजिर कर दिया गया। यानी उन्हें सोने की इतनी बड़ी सजा मिली। अभी तक तो खबर महकमे में घूम रही थी, फिर मीडिया में लीक हो गई।

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सवाल ये उठता है कि SHO विजय सेनवाल को क्या नींद लेने की इतनी बड़ी सजा मिली?

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क्या एडिश्नल डीसीपी साहब को बहुत देर वेट करवाने की सजा एसएचओ को मिली?

क्या रात में भी दिल्ली का एसएचओ सो नहीं सकता?

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दिल्ली में प्रगति मैदान टनल में लूट हुई तो सारे बड़े अधिकारी सड़कों पर नजर आए। हम सबको पता है कि ये सब औपचारिकता है, कुछ दिनों का ड्रामा है फिर तो वो ही स्थिति बनी रहेगी, जो पहले थी। लेकिन इसका मतलब ये है कि जिस आईपीएस अफसर ने मेहनत करके नौकरी हासिल की है, वो सड़कों पर तैनात रहेगा?  फिर एसएचओ और दूसरा स्टाफ किस लिए हैं?

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खैर, इसे एसएचओ की किस्मत खराब कहे कि एडिश्नल डीसीपी थाने पहुंच गए और ये एक्शन हो गया। हो सकता है कि कुछ दिनों एसएचओ साहब की बहाली हो जाए।

 

DCP RAJESH DEO 

इस पर डीसीपी साउथ ईस्ट राजेश देव ने कहा, 

दक्षिण पूर्व जिले में अपराध की घटनाओं को रोकने के लिए क्षेत्र में पुलिस की दृश्यता और प्रभुत्व बढ़ाने के उद्देश्य से 26 जून की मध्यरात्रि जनरल गश्त के निर्देश जारी किए गए थे। PHQ के निर्देशों का सावधानीपूर्वक अनुपालन सुनिश्चित करने और जनरल गश्त के दौरान गश्त करने वाले कर्मचारियों की निगरानी के लिए डीसीपी-I/दक्षिण पूर्व जिला भी जनरल गश्त ड्यूटी पर थे। रात्रि करीब 11.10 बजे जब डीसीपी-I ने पीएस सन लाइट कॉलोनी का दौरा किया। उन्होंने पाया कि SHO सन लाइट कॉलोनी, जिन्हें क्षेत्र में गश्त करनी चाहिए थी, PHQ के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अपने विश्राम कक्ष में सो रहे थे। जब उन्हें बाहर बुलाया गया, उन्होंने विश्राम कक्ष से बाहर आने में लगभग 10 मिनट का समय लगा दिया। वे अपने कर्तव्यों का पालन न करने का कारण नहीं बता सके। SHO सन लाइट कॉलोनी की ओर से उपरोक्त कृत्य बहुत ही संवेदनहीन, गैर-पेशेवर और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जारी निर्देशों का घोर उल्लंघन था। इसी वजह से दक्षिण पूर्व जिले में तैनात सभी पुलिस अधिकारियों को एक स्पष्ट और मजबूत संदेश देने के लिए ये कदम उठाया गया। SHO सन लाइट कॉलोनी को तत्काल प्रभाव से जिला लाइन में रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया है।

 

ये बात ठीक है कि जब आदेश जारी किया गया था तो एसएचओ को उसका पालन करना चाहिए था, लेकिन इस कहानी का दूसरा पहलू भी है। 

 

SHO साहब पर हैं बड़ी जिम्मेदारियां, एक गलती की इतनी बड़ी सजा, अच्छाई सब भूल गए

 

ये हम सबको पता कि एसएचओ पर इलाके की बड़ी जिम्मेदारी होती है। उन पर न केवल कानून-व्यवस्था को बनाए रखना की जिम्मेदारी होती है, बल्कि कई जगहों पर ऐसे देखा गया कि एसएचओ को अधिकारियों की फटीक निपटाने की भी 'बड़ी जिम्मेदारी 'मिलती है। ये बात भी सच है कि कुछ मामलों में बड़े अधिकारी अपने चेहतों को ही एसएचओ बनवाते हैं ताकि उनकी फटीक बरकरार रहे।

लेकिन हर जगह स्थिति ऐसी नहीं है। ज्यादातर थाने के एसएचओ बेचारे दिन-रात थाने में, कई-कई दिनों तक रहते हैं, उसके बाद एकाध दिन के लिए वो घर जाते हैं। ये स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि उन्हें भ्रष्ट आचरण करने का अधिकार मिल गया हो, लेकिन ये बात भी सच है कि उन पर भारी दबाव रहता है और कई बार बड़े अधिकारी उनसे गलत काम भी करवाते हैं और अगर वो नहीं करे तो समझ लीजिए उसका क्या होगा?

हालांकि कई SHO OFF THE Record कहते हैं कि इतना प्रेशर में काम करते हैं तो क्या हुआ प्यार से रिश्वत ले ली, काम भी तो करा दिया, किसी को परेशान तो नहीं किया। कई एसएचओ तो ये भी कहते हैं कि हमारा छोटा सा अपराध दिखता है, बड़े अधिकारियों का बड़ा अपराध नजर नहीं आता।

लेकिन कुछ पुलिस ऐसे भी हैं कि जो ये कहते हैं कि एसएचओ और आईपीएस अफसरों यानी साहब को सरकार सैलेरी के अलावा बहुत सुविधाएं मिलती हैं, फिर वो रिश्वत क्यों लेते हैं? इसका जवाब हम सबको पता है। जरूरत है पुलिस सुधारों की, जिसमें सैलेरी करेक्शन भी जरूरी है। साथ-साथ आचरण बदलने की। मोटिवेशन की। किसी ने ये थोड़ी कहां था कि पुलिस में भर्ती हो जाओ। अगर कहा भी था तो इसके मैरिट और डि मैरिट का भी पता होगा। इसका मतलब ये नहीं है कि गलत को बर्दाश्त करो, इसका मतलब ये है कि गलत को बर्दाश्त करते करते सच की बात करो और कोशिश करो की चीजें ठीक हो जाए।

काम दिल से किया जाए न कि मजबूरी में, क्योंकि यहां उद्देश्य है कि सिस्टम सुधरे। जरूरत समाज में समानता लाने की भी है, ताकि कोई दूसरे को देखकर आकर्षित न हो, लेकिन ऐसा शायद होगा नहीं। ऐसा नहीं है कि जो हम लिख रहे हैं, वो पता नहीं है, लेकिन सच तो ये भी कि पता होने के बाद भी सब बस नौकरी कर रहे हैं। 

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