Shraddha Case: श्रद्धा मर्डर केस में कैसे होगा फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन, हाईटेक तकनीक से कैसे जुटाए जाएंगे सबूत?

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Shraddha Murder Case: दिल दहला देने वाले दिल्ली के श्रद्धा हत्याकांड (Shraddha Murder Case) में ना तो लाश है ना कोई मेडिको-लीगल केस (MLC) नहीं है, कोई पोस्टमार्टम रिपोर्ट (Postmortem) नहीं है और न ही मृत्यु प्रमाण पत्र है। अब सवाल यह है कि जब पुलिस को मौके वारदात से कोई नमूने नहीं मिले हैं ना ही पोस्टमार्टम हुआ है ना ही लाश मौजूद है तो फिर किस तरह का साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन किया जाएगा?

जिससे कि यह पता चल सके कि श्रद्धा की हत्या महरौली के फ्लैट में हुई। लाश के टुकड़े वहीं किए गए। टुकड़ों को फ्रिज में रखा गया। लाश के टुकड़ों को एक एक कर जंगल में फेंका गया। फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो अब एजेंसीज के पास रास्ता बचता है कि वह डीएनए प्रोफाइलिंग फिंगरप्ट्स, सुपरइंपोजिशन, फेशियल रिकंस्ट्रक्शन, सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल डंप डाटा के जरिए सबूत इकट्ठा करने होंगे।

डीएनए से कैसे होगा मिलान?

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सबसे पहले बात करते हैं कि डीएनए के जरिए कैसे सबूत हासिल किए जा सकते हैं? दरअसल दिल्ली पुलिस को सबसे पहले मौका ए वारदात यानि फ्लैट से हर हाल में फिंगरप्रिंट्स की तलाश करनी होगी। कपड़े बिस्तर, चादर, सोफे, कुर्सी और दीवार और फ्रिज से नमूने लेने होंगे। वहां पर मौजूद धूल के कण और बाल वगैरह से सबूत इकट्ठे किए जाएंगे। एजेंसी आरोपी आफताब और श्रद्धा के कपड़ों की भी जांच करेगी।

अगर पुलिस को वह कपड़े मिलते हैं जो श्रद्धा ने पहने थे उस हालत में साइंटिस्ट उन कपड़ों से खून से निशान (ब्लड स्टेन) व नमूने ले सकती है। कपड़ों पर लगे उंगलियों के निशान हासिल कर सकते हैं। इन ब्लड स्टोन के जरिए डीएनए प्रोफाइलिंग की जा सकती है। जिससे कि आरोप साबित करने में मदद मिलेगी। आरोपी के पास या मौके पर यदि घर में कोई लड़की का बाल या नाखून के टुकड़े या उसके कपड़ों पर फिंगरप्रिंट पाए जाते हैं तो ऐसे बालों से भी डीएनए प्रोफाइलिंग करके कनेक्टिंग चेन तैयार की जा सकती है।

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किया जा सकता है ब्रेन मैपिंग टेस्ट

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आमतौर पर ऐसे कैसे से देखा जाता है कि पुलिस आरोपी का ब्रेन मैपिंग टेस्ट करती है जिसके जरिए वह कितना सच बोल रहा है कितना झूठ बोल रहा है उसकी जानकारियां हासिल की जाती हैं। इस प्रक्रिया में स्क्रीन पर आरोपी को केस से जुड़ी हुई तस्वीरें जगह वीडियो दिखाई जाते हैं और मशीन के जरिए यह जानकारी ली जाती है क्या फिर उसका दिमाग किस तरह से रिएक्ट कर रहा है। जिसके बाद पूरा कंप्यूटराइज्ड एनालिसिस किया जाता है और बताया जाता है की तस्वीरों और वीडियो या वह जगह जहां वारदात को अंजाम दिया गया देखने के बाद आरोपी का दिमाग किस तरह रिएक्ट करता है। 

क्या होगा आफताब का ब्रेन मैपिंग टेस्ट?

इस तकनीक के जरिए आरोपी के सिर के हिस्से में ट्रायोड लगाए जाते हैं और कंप्यूटर स्क्रीन पर उसे मरने वाले की तस्वीरें मौत से जुड़ी तस्वीरें और कत्ल से जुड़े राज और सबूत दिखाए जाते हैं। और साइंटिस्ट कंप्यूटर के जरिए दिमाग को पढ़ते हैं आरोपी का दिमाग कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है उसका एनालिसिस किया जाता है। 

नारको एनालिसिस टेस्ट देगा सुराग?

खासकर ऐसे मामले में जब सबूत पुलिस के पास कम हो तो पुलिस नारको एनालिसिस टेस्ट भी कर लेती है। जिसके जरिए नीम बेहोशी की हालत में आरोपी से जानकारी हासिल की जाती है और केस के बारे में पूछे जाते हैं सवाल उन सवालों के जवाब के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है कि आखिर इस वारदात के पीछे क्या वजह थी और कैसे अंजाम दिया गया था। 

लाई डिटेक्टर टेस्ट जोड़ सकता है कत्ल की कड़ियां

अगर जांच एजेंसी को इस बात का शक होता है कि आरोपी झूठ बोल रहा है तो इस हालत में उसका लाई डिटेक्टर टेस्ट भी करवाया जा सकता है लाई डिटेक्टर टेस्ट तकनीक के जरिए एक Questionnaire दिया जाता है जो केस से जुड़ा होता है और वह आरोपी को उसमें हां या ना में जवाब देना होता है जिसका एनालिसिस बताता है यह किस-किस बातों का जवाब आरोपी झूठ की शक्ल में दे रहा है या आरोपी सच बोल रहा है।

मोबाइल लोकेशन और डंप डाटा से मिलेगा सबूत

दिल्ली पुलिस श्रद्धा और आफताब के मोबाइल डंप डाटा के जरिए भी यह पता लगा सकती है कि वारदात के वक्त उस जगह पर कितने मोबाइल फोन एक्टिव थे। डंप डाटा निकालकर यह पता लगाया जाता है कि उस टावर में खासकर उस जगह के आसपास कितने मोबाइल नंबर उस वक्त सक्रिय थे जब इस वारदात को अंजाम दिया गया। आसपास के सीसीटीवी फुटेज मौजूद है या सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो पुलिस यह जानकारी ले सकती है कि मौका ए वारदात हत्या के दिन और उसके बाद आफताब की गतिविधायां कैसी और क्या थीं। उसके फ्लैट पर पर किन लोगों की आवाजाही थी।

सबसे अहम कड़ी श्रद्धा के सिर का हिस्सा 

इस केस में पुलिस और जांच अधिकारियो के सामने मुश्किल ये है कि लाश कंकाल और हड्डियों में तब्दील हो चुकी है।  लिहाजा ये कैसे साबित किया जाए कि ये हड्डियां श्रद्धा की ही हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को तलाश है श्रद्धा की सिर वाले हिस्से यानि खोपड़ी की, क्योंकि खोपड़ी की बरामदगी के बाद ही मरने वाली की पहचान साबित की जा सकेगी। बरामद खोपड़ी के सुपरइम्पोजिशन टेस्ट किया जा सकता है। सुपरइम्पोजिशन टेस्ट के बाद ये पता चल सकेगा की ये खोपड़ी श्रद्धा की है या नहीं।   

जाहिर है कि मरने वाले की पहचान साबित होते ही क्राइम की कड़ियां और सबूत भी जोड़कर एविडेंस की चेन तैयार की जा सकेगी। सवाल ये उठता है कि आखिर क्या है सुपरइम्पोजिशन तकनीक? इस तकनीक के जरिए किसी खोपड़ी को उसकी शक्ल और सूरत कैसे दी जाती है। तो आइए आपकों बताते हैं कि सुपरइम्पोजिशन तकनीक क्या होती है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट किस तरह कंकाल खोपड़ी को उसकी सूरत दे देते हैं।      

क्या है सुपर इंपोजिशन तकनीक? 

फेशियल सुपरइंपोजिशन एक फोरेंसिक तकनीक है। इस टेस्ट में साइटिस्ट के पास खोपड़ी होती है और जिस शक के मरने का शक है उसकी तस्वीर भी साथ में मौजूद रहती है। साइंसदां फोटो को कंप्यूटर में एक विशेष साफ्टवेयर की मदद से खोपड़ी और तस्वीर का मिलान करते हैं। इस तकनीक से कंकाल बनी खोपड़ी के खास हिस्सों मसलन ललाट, मुंह और माथे के हिस्सों का तस्वीर से मिलान किया जाता है।

इस टेस्ट से साबित हो जाता है कि खोपड़ी और फोटो के फीचर मिलते हैं। इस प्रयोग में टेक्निकल कैलकुलेशन के ज़रिए दोनों तस्वीरों के मार्फ़ोलॉजिकल फीचर्स के अध्ययन किया जाता है। इनमें तस्वीरों के ललाट, भौं, नाक, ग्लाबेला, होंठ, आंख, चेहरे की बनावट जैसे करीब 15 बिंदुओं को परखा जाता है। फिर साइंसदान आखिरी नतीजे पर पहुंच कर अपनी रिपोर्ट देते हैं।

कैसे हो सकता है श्रद्धा का डीएनए टेस्ट मिलान?

दरअसल डीएनए टेस्ट के मिलान के लिए सबसे अहम चीज है मरने वाले के खून या लार या फिर टूथ लिक्विड का मिलना।  इस कैस में पुलिस को अभी तक इनमें से कोई भी चीज नही मिली है। पुलिस की कोशिश होगी कि वो फ्रिज के अंदर से ब्लड स्टेन निकाल सके ताकि श्रद्धा के परिजनों ने खून का मिलान किया जा सके। सिर का हिस्सा मिलता है तो दांतों में मौजूद लिक्विड के जरिए डीएनए का मिलान किया जा सकता है।

क्या है फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक

अगर पुलिस को श्रद्धा के सिर का हिस्सा मिलता है तो पुलिस एक और तकनीक का इस्तेमाल कर सकती है जिसे कि फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल मैनुअली किया जाता है। जिसके तहत कंकाल खोपड़ी में मांस और त्वचा जैसा एक खास तरह का मैटेरियल भरा जाता है। इस प्रक्रिया में बाकायदा पूरा चेहरा बनाया जाता है। जिसमें आंख कान नाक होठ सब हिस्से आर्टिफिशियल तरीके से लगाए जाते हैं। फेशियल रिकंसट्रक्शन तकनीक से मृतक का चेहरा बना दिया जाता है।

आखिर में इस चेहरे को मृतक या संदिग्ध की फोटो से मिलान किया जाता है। साइंटिफिक और फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है। 

साइंटिफिक और फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं जहां पर इनके जरिए सबूत गवाह ना होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया है। 

निठारी कांड मे हुआ था डीएनए और सुपरइंपोजिशन

निठारी किलिंग की बात करें तो इस दौरान भी जांच एजेंसियों के पास बच्चों की पहचान का कोई रास्ता नहीं था लेकिन इस केस में भी जांच एजेंसी ने चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब से सभी बच्चों के डीएनए प्रोफाइलिंग कराई गई और उनकी दांत से लिक्विड लिए गए और उनके माता-पिता के ब्लड से मिलाया गया और उनकी पहचान हो सकी।

जिन बच्चों की पहचान डीएनए से नहीं हो सकी उन बच्चों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने फेशियल रिकॉनस्ट्रक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया और फेशियल सुपरिंपोजिशन के जरिए उनके कंकालों को उनकी पहचान दी गई। तब जाकर इस केस में आरोपियों को सजा हुई। गौरतलब है कि मुंबई के शीना बोरा मर्डर केस में सुपर इंरपोजिशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। 

श्रद्धा मर्डर केस में सबूत मिटा दिए गए हैं और सबूत इकट्ठा करने के लिए जांच एजेंसी को साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन और हाईटेक फॉरेंसिक एग्जामिनेशन के जरिए सबूत इकट्ठे करने होंगे चाहिए और इस केस की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारियां हासिल करनी होंगी ताकि श्रद्धा के परिजनों इंसाफ हो सके।

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