वो ग़म भुला ना पाएंगे
दर्दभरे क़िस्सों से सिसक उठा एयरपोर्ट, यूक्रेन से भारत पहुँचे बच्चों की रुला देने वाली दास्तां
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05 Mar 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:14 PM)
LATEST STUDENTS STORY: यूक्रेन में पढ़ने गए बच्चे रूसी हमले के बाद जैसे तैसे अपने वतन लौटे, तो उनके पास अगर कुछ बचा हुआ था तो सच्चे किस्सों की वो अमानत थी, जो शायद अब उनकी रहती ज़िंदगी में कभी न भूलने वाली ऐसी याद बनकर रहेगी, जिसे अगर वो भूलना भी चाहें तो कभी नहीं भुला सकते।
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वतन लौट पाए बच्चों का ये वो सच है जिसके एक एक हिस्से पर न जाने कितनी किताबें लिखी जा सकती हैं, कितनी हिट फिल्मों की स्क्रिप्ट रची जा सकती है जिसमें शुरू से लेकर आखिर तक बस रोमांच ही रोमांच नज़र आ सकता है। ये वो सच है जिसे उन बच्चों ने जीया है जो बच्चे यूक्रेन की ज़मीन से बचकर हिन्दुस्तान अपने मादरे वतन पहुँच पाए।
पलकों को भिगो देगी छात्रों की पीड़ा
STORY FROM WAR ZONE: यूक्रेन के अलग अलग हिस्सों में अभी भी हज़ारों बच्चे ज़िंदगी और मौत के दरम्यां फंसे हुए हैं। लेकिन जो बच्चे वतन लौट आए उनकी दर्दनाक दास्तां सुनने वालों की आंखों को गीला कर देती है।
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली एयरपोर्ट पर ऐसा मंज़र अब आम हो गया जब फ्लाइट से उतर कर आया बच्चा अपने घरवालों की बाहों में समाकर आंसुओं से तरबतर न हो जाता हो। एयरपोर्ट पर कदम कदम पर आंखों से गंगा जमुना बहाते हुए परिवार बड़ी हसरत के साथ अपने कलेजे को टुकड़ों को दोनों बाहों में समेटकर अपने घरों की तरफ रवाना होते देखे जा सकते हैं।
रोमानिया के बुखारेस्ट से दिल्ली पहुँची एक फ्लाइट से उतरा एक किशोर शुभांशू जैसे ही एयरपोर्ट के डिपार्चर लाउंज में पहुँचा, दो कांपते हुए बाजुओं ने उसे जकड़ लिया और एक भर्राई हुईं कांपती सी आवाज उसके कानों पर पड़ी, ‘मेरा बेटा’। अपनी मां को अपने क़रीब पाकर शुभांशु भी सिमटकर अपनी मां से लिपटकर बिलख पड़ा।
दर्दनाक वाकया सुनकर दर्द भी कराह उठेगा
OPERATION GANGA NEWS: यूक्रेन के वेनीत्सया में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए गया शुभांशु बीती 24 फरवरी से हिन्दुस्तान वापस आने के लिए छटपटा रहा था। क़रीब चार दिन तक बंकर में भूख प्यास से लड़ने के बाद जब वो खुले आसमान के नीचे पहुँचा तो वहां का डरावना ज़मीनी सच उसके सामने था। तबाही और बर्बादी बेलगाम हो चुकी थी, और रह रह कर मौत बरस रही थी।
शुभांशु ने जो सचमुच झेला है, उसे शायद शब्दों में बयां करना किसी के लिए शायद ही मुमकिन हो, बस इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि ऐसा दर्दनाक वाकया सुनकर दर्द भी कराह उठेगा। शुभांशु के ही अल्फ़ाज़ हैं, जहां हम थे, वो जगह नर्क से भी बदतर थी।
शुभांशु ने यूक्रेन में रोमानिया के बॉर्डर तक पहुँचने का जो क़िस्सा बयां किया उसे सुनकर शरीर के एक भी रोंगटे की मजाल नहीं थी कि वो अपनी जगह पर बैठ जाए।
सर्द मौसम में ख़ौफ़ की कंपकंपी
INDIAN STUDENT EVACUATION : शुभांशु ने अपने कांपती हुई आवाज़ में जब बताना शुरू किया खुले हुए मुंह और फैली हुई आंखों का मजमा लग गया। उसने बताया वेनीत्स्या से रोमानिया के बॉर्डर तक पहुँचने में उसे ज़्यादा दिक़्क़त नहीं हुई। क्योंकि वहां एजेंट ने उसके साथ के ज़्यादातर बच्चों को एक बस करवा दी थी, जिसने रोमानिया बॉर्डर से थोड़ी दूर लेजाकर छोड़ दिया था।
सर्द मौसम में ख़ौफ़ की कंपकंपी के बीच वो लोग 12 किलोमीटर पैदल चलते चलते जैसे तैसे रोमानिया बॉर्डर पर पहुँच गए। उसके बाद शुरू हुई हिन्दुस्तानी बच्चों की ऐसी जंग, जिसका ज़िक्र भर उनसे उनकी कई कई रातों का सुकून उनसे छीन सकता है। जाहिर है उस हालात को बयां करने के लिए शब्दों की लम्बाई चौड़ाई कम पड़ जाती है।
वो कितना भयानक मंज़र था
STUDENTS RETURN FROM HELL: बकौल शुभांशु रोमानिया बॉर्डर पार करने उस वक़्त तमाम हिन्दुस्तानी बच्चों के लिए नामुमकिन से भी ज़्यादा मुश्किल था। वहां लड़के और लड़कियां बॉर्डर के ऑफिसरों के सामने रो रहे थे, गिड़गिड़ा रहे थे, हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठकर ऑफिसरों के सामने बॉर्डर पार करने की भीख मांग रहे थे, मगर वहां किसी का दिल नहीं पसीज रहा था। ये सब शुभांशु ने खुद अपनी आंखों से देखा। उसने तो ये भी देखा कि वहां बच्चे आपस में लड़ रहे थे, और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे, पहले मैं, पहले मैं।
रोमानिया बॉर्डर का एक ख़ौफनाक मंज़र कितना भयानक रहा होगा जिसे बयां करते करते शुभांशु दिल्ली एयरपोर्ट के बाहर लॉबी में खड़े खड़े कांप उठा। उसने बताया कि रोमानिया बॉर्डर पर सरहद पार करते समय कुछ बच्चों को वहां के सुरक्षा अधिकारियों ने राइफल की बट से मारना शुरू कर दिया था।
...और आख़िर में राहत मिल गई
LATEST CRIME NEWS: इस बात को बताते बताते शुभांशु थोड़ा ठहरा और माथे पर गुस्से की लकीरों को लाते हुए उसने कहा कि रोमानिया के बॉर्डर पर हिन्दुस्तानियों को पीछे धकेल दिया जाता था। उनकी कोई इज्ज़त नहीं थी। दुत्कार कर भगा दिया जाता था। यूक्रेन के लोगों को बॉर्डर से सबसे पहले निकाला जाता था। शायद हम हिन्दुस्तानियों को वो सबसे आखिर में कतार में रखते थे।
बॉर्डर पार होते ही दुश्वारियां भी एक ही झटके में ख़त्म हो गई थीं। ऐसा लग रहा था मानों हम किसी बुरे सपने से अभी अभी जागे हों...क्योंकि रोमानिया के बॉर्डर से जैसे ही हम लोग बाहर निकले वहां भारतीय दूतावास के लोग मौजूद थे जिन्होंने हमारी अच्छी तरह से देखभाल की। हमें पानी दिया खाना दिया, दवा दी और सबसे बड़ी बात राहत दे दी।
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