अब से 43 साल पहले 16 दिसंबर 1978 को आर्मी ज्वाइन करने वाले बिपिन रावत की पूरी कहानी

SUNIL MAURYA

08 Dec 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:10 PM)

बिपिन रावत कौन हैं? CDS बिपिन रावत (Bipin Rawat) के आर्मी ज्वाइन करने की पूरी कहानी, 11गोरखा- राइफल्स (11th Gorkha Rifles) की 5वीं बटालियन से की थी शुरुआत, Read more crime news update on CrimeTak.in

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Bipin Rawat News : भारतीय इतिहास में पहली बार पूर्व थल सेना अध्यक्ष बिपिन रावत को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया था. रिटायरमेंट के बाद उन्हें ये जिम्मेदारी मिली थी. ये पद आज से पहले किसी को नहीं मिला था. यहां बता दें कि CDS का काम है थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के बीच तालमेल बैठाना. सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहकारों में प्रमुख थे.

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बिपिन रावत कौन हैं? Who is Bipin Rawat

Bipin Rawat Birth : बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को देहरादून में हुआ था. इनका पारिवारिक बैकग्राउंड ही आर्मी से जुड़ा रहा है. बिपिन रावत के पिता एलएस रावत भी फ़ौज में थे. उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल एलएस रावत के नाम से लोग जानते थे.

यही वजह है कि बिपिन रावत बचपन से ही आर्मी में आना चाहते थे. इनकी शुरुआती पढ़ाई शिमला के सेंट एवर्ड स्कूल शिमला में हुई थी. उसके बाद उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में एडमिशन लिया और देहरादून आ गए थे. यहां उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस को देखते हुए उन्हें पहला सम्मान पत्र मिला.

ये सम्मान SWORD OF HONOUR का था. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए थे. अमेरिका के सर्विस स्टाफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. साथ में उन्होंने हाई कमांड का भी कोर्स किया था.

आज से ठीक 43 साल पहले 16 दिसंबर को ज्वाइन की थी आर्मी

Bipin Rawat News: अमेरिका से लौटने के बाद ही उन्होंने आर्मी में शामिल होने की तैयारी शुरू की थी. इसमें उन्हें सफलता 16 दिसंबर 1978 में मिली. उन्हें गोरखा-11 राइफल्स की 5वीं बटालियन में शामिल किया गया था.

इस तरह आर्मी में उनका सफर गोरखा राइफल्स से शुरू हुआ था. इस तरह बचपन से आर्मी माहौल में रहने वाले बिपिन रावत ने आज से करीब 43 साल पहले 16 दिसंबर 1978 को आर्मी में ज्वाइन किया था.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 7 हजार लोगों की बचाई थी जान

बिपिन रावत का योगदान सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि पूरी इंटरनेशनल स्तर पर भी है. दरअसल, उन्होंने UN मिशन के दौरान अलग-अलग स्थानों पर 7 हजार से ज्यादा लोगों की जान बचाई थी. इन्हें अभी तक अति विशिष्ठ सेना मेडल और युद्ध सेना मेडल से नवाजा जा चुका है.

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