Anand Mohan Story : बिहार का बाहुबली आनंद मोहन अब रिहा होने वाला है. वही आनंद मोहन जो एकमात्र ऐसा राजनेता और पूर्व सांसद है जिसे आजाद भारत में फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बाद में वही सजा उम्रकैद में तब्दील हुई. और अब उसे रिहा कराने के लिए बिहार सरकार ने पूरा कानून ही बदल डाला. आखिर क्या है बाहुबली आनंद मोहन की कहानी (Story of Anand Mohan Singh). आनंद मोहन को रिहा करने के लिए किस कानून में बदलाव किया गया है. किस IAS अधिकारी की हत्या में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई गई थी. आइए जानते हैं इस पूरी रिपोर्ट से...
आजादी दिलाने वाले परिवार के बेटे बाहुबली आनंद मोहन की कहानी, DM की हत्या, फांसी और अब रिहाई
anand mohan bihar news : बिहार के बाहुबली आनंद मोहन की पूरी कहानी. कैसे बाहुबली से सियासत का सफर रहा. कैसे डीएम G krishnaiah की हत्या में शामिल रहा. अब क्यों रिहाई हो रही. जानें पूरी डिटेल
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bihar Anand Mohan Full story in hindi
25 Apr 2023 (अपडेटेड: Apr 25 2023 8:50 PM)
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आनंद मोहन को रिहा करने के लिए क्या कानून बदला है
anand mohan singh news : हाल में ही बिहार की नीतीश कुमार सरकार के गृह विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया. ये नोटिफिकेशन 10 अप्रैल को जारी हुआ. इसी नए कानून के तहत अब जल्द ही कानूनी तौर पर आनंद मोहन हमेशा के लिए रिहा हो जाएगा. असल में बिहार के कानून में अब तक ये था कि सरकारी अधिकारी की हत्या करने के दोषी को किसी भी आधार पर रिहा नहीं किया जाएगा. लेकिन अब बिहार सरकार ने जेल नियमावली में संशोधन किया. इसमें बदलाव करते हुए उस पार्ट (बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481 (1) ए) को हटा दिया गया जिसमें लिखा था कि सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी को किसी भी आधार पर जेल से रिहा नहीं किया जाएगा. अब ये नियम बाहुबली आनंद मोहन पर लागू हो रहा था. क्योंकि आनंद मोहन पर पूर्व डीएम जी. कृष्णैया (G krishnaiah) की अपनी मौजूदगी में हत्या कराने का आरोप था. जिसे कोर्ट में साबित भी कर दिया गया. फिर सजा भी सुनाई गई थी. लेकिन अब उस पार्ट को हटा दिए जाने से बिहार में चाहे किसी सरकारी अफसर का हत्यारा क्यों ना हो, उसे जेल नियमावली के आधार पर रिहाई मिल सकती है.
किस डीएम की हत्या में सजा काट रहा था आनंद मोहन
Bihar anand mohan singh News : आनंद मोहन. वो नाम जिसने बिहार की राजनीति में आसमां तक पहुंचने का नया रास्ता बनाया था. ये रास्ता था अपराध के आंकड़ों का. जुर्म की दुनिया में जिसका जितना बड़ा ग्राफ. उसका उतना ही बड़ा कद. उसी कद काठी जैसा ताकतवर रहा है आनंद मोहन. बात साल 1994 की है. जब एक घटना ने पूरे देश को हिला दिया था. किसी जिले का सरकारी मालिक डीएम को कहा जाता है और उसी डीएम की पीट-पीटकर हत्या होना कितनी बड़ी बात है. बिहार के मुजफ्फरपुर में यही हुआ. वो तारीख थी 4 दिसंबर. साल 1994. उस दिन छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई. इस छोटन शुक्ला को बाहुबली नेता आनंद मोहन बेहद खास मानता था.
असल में कहा जाता है कि छोटन शुक्ला विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था. छोटन शुक्ला बाहुबली आनंद मोहन का खास था और 1994 से ही बिहार पीपुल्स पार्टी से जुड़ा था. ये बिहार पीपुल्स पार्टी वही राजनीति पार्टी है जो उस समय के पिछड़े और दलितों की राजनीति करने वाली लालू यादव की पार्टी के विरोध में सवर्णों की राजनीति करने के लिए खड़ी हुई थी. जिसे खुद आनंद मोहन ने तैयार की थी. लेकिन छोटन शुक्ला की 4 दिसंबर 1994 को हत्या हुई और उसके अगले ही दिन यानी 5 दिसंबर 1994 को खुद आनंद मोहन के नेतृत्व में लाश लेकर सड़क पर विरोध किया जा रहा था.
उसी दौरान हाजीपुर के रास्ते नेशनल हाइवे नंबर-28 से लाल बत्ती वाली गाड़ी गुजर रही थी. उस गाड़ी में पड़ोसी जिले गोपालगंज के डीएम थे. डीएम का नाम जी कृष्णैया (G krishnaiah) था. वो दलित डीएम थे. मूलरूप से तेलंगाना के रहने वाले. इधर, सवर्ण जाति वाले सड़क पर विरोध कर रहे थे. कहते हैं कि इनका इस केस से कोई लेना देना नहीं था. मुजफ्फरपुर में सरकारी अधिकारियों की एक अहम मीटिंग थी. उसी मीटिंग में शामिल होने जी कृष्णैया आए थे. मीटिंग के बाद वो सरकारी गाड़ी से गोपालगंज लौट रहे थे. तभी भीड़ अचानक बेकाबू हो गई थी.
डीएम जी कृष्णैया के साथ सरकारी गनर भी थे. फिर भी भीड़ ने डीएम को पीटना शुरू किया. वो चीखते हुए बोले कि मैं गोपालगंज का डीएम हूं. मुजफ्फरपुर का नहीं. फिर भी भीड़ पीटती रही. और फिर कहा जाता है कि आनंद मोहन के उकसाने पर उसी डीएम की कनपटी पर गोली मार दी गई थी. जिससे खून से लथपथ वहीं पर डीएम की मौत हो गई थी.
खुद कोर्ट में जो सबूत आया वो दहला देने वाला था
anand mohan singh news : आनंद मोहन का डीएम की हत्या में कितना हाथ था या नहीं था. उसे समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला खुद गवाही देता है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि...
14 में से 10 गवाह ऐसे मिले थे जो जुलूस में थे. घटनास्थल के बिल्कुल पास थे. उन्होंने कोर्ट में कहा था कि आनंद मोहन ने भुटकुन शुक्ला को गोली मारने के लिए कहा था.
इन गवाहों के बयान के आधार पर ये कहा गया कि भले ही खुद आनंद मोहन ने हत्या नहीं की लेकिन डीएम की हत्या करने के लिए उसी ने भीड़ को उकसाया था. उस समय अभियोजन पक्ष ने कहा था कि आनंद मोहन के कहने पर ही भुटकुन शुक्ला ने डीएम को सटाकर गोली मारी थी. इस केस को लेकर ट्रायल कोर्ट ने आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी. हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को बदल दिया था. इसे आजीवन कारावास में बदल दिया. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि आनंद मोहन ने शूटर को गोली चलाने के लिए उकसाया था. खुद गोली नहीं मारी थी. इसलिए मौत की सजा देना सही नहीं है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर सहमति जताई थी और साल 2012 में आनंद मोहन की सजा बरकरार रखी थी. यानी उसे आजीवन कारवास की सजा थी. लेकिन 14 साल सजा काटने के बाद उसका राज्य सरकार ने रिव्यू किया. और अच्छे आचरण और नए कानून में संशोधन का हवाला देकर आनंद मोहन को रिहा कर दिया है.
कौन है आनंद मोहन
Who is anand mohan singh : आनंद मोहन का परिवार देश की स्वंत्रता संग्राम में हिस्सा ले चुका है. आनंद मोहन का जन्म बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ. वो तारीख थी 28 जनवरी 1954. आनंद के दादा राम बहादुर सिंह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर चुके थे. लिहाजा, खिलाफत करना आनंद मोहन के खून में था. अब वो आजादी से पहले अंग्रेजों को खिलाफ था और आजादी के बाद विरोधी नेताओं के खिलाफ. अब साल 1974 का दौर आता है. इमरजेंसी के खिलाफ जेपी आंदोलन शुरू हुआ था. जय प्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन शुरू किया. आनंद मोहन भी इसमें शामिल हो गए. 2 साल के लिए जेल भी जाना पड़ा.
यहीं से आनंद मोहन ने राजनीति में कदम रखा था. स्वंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता परमेश्वर कुंवर को अपना गुरु बनाया. कुछ साल बाद 1980 में समाजवादी क्रांति सेना नाम से एक संस्था भी बनाई. इसका काम सरकार का विरोध करना था. फिर सरकार ने इनाम घोषित कया और साल 1983 में आनंद मोहन को पहली बार 3 महीने की सजा भी हुई थी. जेल भी जाना पड़ा था.
1990 में बना अपराधी से माननीय आनंद मोहन
anand mohan singh news : बिहार में 1990 का दौर बेहद अजीब रहा. उस समय जुर्म की दुनिया में जिसका जितना बड़ा नाम उसकी राजनीति में उतनी ही आसानी से एंट्री होती थी. अब तक अपने इलाके में आनंद मोहन का नाम बाहुबली में टॉप पर आ चुका था. लिहाजा, उसी समय जनता दल से महिषी विधानसभा चुनाव का टिकट मिल गया. आनंद मोहन इस विधायकी चुनाव में जीत गया. इसके बाद आनंद मोहन का कद और बढ़ गया. अब ये पिछड़ी जातियों के विरोध के लिए एक प्राइवेट आर्मी भी तैयार कर ली थी. आलम ये हो गया कि 1995 के आते आते ये लालू यादव को टक्कर देने लगा था. इसकी वजह बनी थी 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिश लागू करना. इस सिफारिश का समर्थन जनता दल ने भी किया था. मंडल कमीशन चूंकि पिछड़ी जातियों के आरक्षण को लेकर था. इसलिए आनंद मोहन ने इसका विरोध किया. अब जनता दल पार्टी छोड़ दी. इसके बाद खुद की बिहार पीपुल्स पार्टी बना ली थी. अब आलम ये हुआ कि लालू यादव पिछड़ों के नेता हैं तो अग्रणी जातियों के असली नेता आनंद मोहन है. लेकिन ठीक उसी साल 1994 में छोटन शुक्ला की हत्या के बाद आनंद मोहन के उकसावे पर हुई डीएम की हत्या में जेल की हवा खानी पड़ी. आखिरकार पहले फांसी की सजा हुई. जिसे कहा जाता है कि आजाद भारत में पहली बार किसी राजनेता को फांसी की सजा हुई. जिसे बाद में उम्रकैद में तब्दील किया गया था. लेकिन आज फिर वो शख्स बिना उम्रकैद की सजा काटे आजाद हो गया.
कभी पप्पू यादव से दुश्मनी अब दोस्ती
पहले इस तस्वीर को देखिए. कैसे पप्पू यादव और आनंद मोहन गले मिल रहे हैं. चेहरे पर मुस्कान है. लेकिन ये मुस्कान 1990 के दशक में नहीं था. दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हुआ करते थे. 1990 के आसपास बिहार में कई बाहुबली उभरे थे. एक तरफ पिछड़ों के नेता के रूप में पप्पू यादव तो दूसरी तरफ विरोध सवर्णों का नेता बना था आनंद मोहन. बिहार के कोसी इलाके में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर दोनों अक्सर लड़ते थे. लेकिन आज नया दौर है. आनंद मोहन पैरोल पर जब अपने बेटे की सगाई में आया तो हंसकर पप्पू यादव के गले मिला था.
जेल में लिखी किताब, आज संसद में की लाइब्रेरी की शोभा बढ़ा रही
आनंद मोहन ने जेल में रहते हुए दो किताबें लिखीं. एक किताब कैद में आजाद कलम और दूसरी स्वाधीन अभिव्यक्ति. इसके अलावा आनंद मोहन की लिखी कहानी 'पर्वत पुरुष दशरथ' काफी फेमस है. चूंकि आनंद मोहन सांसद रह चुका है. इसलिए उसकी लिखी किताबें संसद लाइब्रेरी में भी उपलब्ध हैं.
आनंद मोहन का ये है परिवार
आनंद मोहन की पत्नी का नाम लवली आनंद है. दोनों की 1991 में शादी हुई थी. शादी के 3 साल बाद ही लवली आनंद सांसद बनी थी. 1994 में लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा उपचुनाव जीती थी. साल 2020 से लवली आनंद आरजेडी पार्टी में है. इन दोनों के दो बच्चे हैं. एक बेटा चेतन आनंद और दूसरी बेटी सुरभि आनंद. अब बेटा चेतन आनंद भी आरजेडी में है.
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