Bharat Ratna Karpoori Thakur : बिहार के पूर्व CM कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न मिलेगा, जिनकी ईमानदारी की कभी कसमें खाते थे लोग

karpoori thakur : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाएगा। राष्ट्रपति भवन ने मंगलवार को यह घोषणा की।

Bharat Ratna Karpoori Thakur

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23 Jan 2024 (अपडेटेड: Jan 23 2024 8:55 PM)

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Bharat Ratna Karpoori Thakur :  बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाएगा. इसकी घोषणा 23 जनवरी को राष्ट्रपति भवन से की गई. ‘जननायक’ के रूप में मशहूर कर्पूरी ठाकुर दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका 17 फरवरी, 1988 को निधन हो गया था.

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कर्पूरी ठाकुर कौन थे?

Who Was Karpoori Thakur : आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गाँव में हुआ था. उन्होंने 1940 में पटना से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. कर्पूरी ठाकुर ने आचार्य नरेन्द्र देव के साथ चलना पसंद किया। इसके बाद उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसके कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा. 1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए, जिसका उद्देश्य अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर व्याप्त जातिगत और सामाजिक भेदभाव को दूर करना था ताकि दलितों, पिछड़ों और वंचितों को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी मिल सकता है.

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1952 में पहली बार विधायक बने

Bharat Ratna Karpoori Thakur : कर्पूरी ठाकुर 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से जीतकर विधायक बने। 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी एक बड़ी ताकत बनकर उभरी, जिसके परिणामस्वरूप बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टी की सरकार बनी। जब महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने, तो कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री बने और उन्हें शिक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया। कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस खत्म कर दी थी और अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म कर दी थी. कुछ समय बाद बिहार की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बन गये.

इस दौरान वह छह महीने तक सत्ता में रहे. उन्होंने उन क्षेत्रों पर लगान समाप्त कर दिया जिनसे किसानों को कोई लाभ नहीं होता था, 5 एकड़ से कम भूमि पर लगान भी समाप्त कर दिया और उर्दू को राज्य भाषा का दर्जा भी दिया। इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत काफी बढ़ गई और कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए. मंडल आंदोलन से पहले भी जब वे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया था. लोकनायक जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया उनके राजनीतिक गुरु थे।

 

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