हुर्रियत पर लगेगा आतंक का कड़ा कानून UAPA तोड़ी जाएगी अलगाववादियों की फंडिग की कमर

केन्द्र सरकार विचार कर रही है कि वो अलगाववादी संगठनो पर UAPA लगाने जा रही है इनमें से एक धड़े की कमान मीरवाइज उमर फारुक संभालता था है जबकि दूसरा धड़े को सैय्यद अली शाह गिलानी है।

CrimeTak

25 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:03 PM)

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पाकिस्तान-कश्मीर एडमिशन घोटाला

हाल में ही सुरक्षा एजेंसियों को पता लगा था कि पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों के लिए MBBS की सीटें रिजर्व रखी जाती हैं। इन सीटों में एडमिशन के लिए पाकिस्तान कश्मीरी छात्रों से मोटी रकम वसूलता है । छात्रों से मिलने वाली रकम को हुर्रियत तक पहुंचा दिया जाता है जिसका इस्तेमाल वो कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए करता है।

साल 2020 में इस केस की जांच सीआईडी और काउंटर इंटेलीजेंस यूनिट ने शुरु की थी। जांच मे पता चला था कि कुछ हुर्रियत नेता कश्मीर के छात्रों को पाकिस्तान में MBBS की सीटें बेच रहे हैं। इस केस में पकड़े गए सभी लोगों का रिश्ता हुर्रियत के मीरवाइज गुट से था। जांच में ये बात भी सामने आई कि पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेज में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कई नेताओं के लिए कुछ सीटों का कोटा रहता है।

हुर्रियत के ये नेता कश्मीरी छात्रों को ये सीट बेच देते थे और उनसे आने वाले पैसों का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में किया करते थे। केवल MBBS ही नहीं बलकि दूसरे कोर्सों के लिए भी पैसे वसूल किए जाते थे। पाकिस्तान में एक MBBS एडमिशन के लिए हुर्रियत के नेता कश्मीरी छात्रों से 10 से 12 लाख रुपये की रकम वसूलते थे।

कैसे हुआ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का जन्म?

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की शुरुआत साल 1993 में हुई जिसमें उस वक्त 26 गुट शामिल थे। इनमें कई पाकिस्तान परस्त गुट थे जिनमें जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुखतरान-ए-मिल्लत शामिल थे। इसमें में ही पीपल कॉन्फ्रेंस और अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी जिसकी बागडोर मीरवाइज उमर फारुक के हाथ में थी।

2005 में हुर्रियत के दो धड़े हो गए एक धड़े का मुखिया मीरवाइज उमर फारुक बना जबकि दूसरे का सैय्यद अली शाह गिलानी। अभी तक केन्द्र सरकार हुर्रियत के हिस्सा रहे जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ पर बैन लगा चुकी है।

साल 2019 में दोनों को UAPA के तहत बैन किया गया। सूत्रों के मुताबिक जब जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग मामले की जांच की गई तो पता चला कि इनके पीछे अलगाववादी नेताओं का हाथ है जो घोषित आतंकी संगठनों हिजबुल मुजाहिद्दीन, दुखतरान-ए-मिल्लत और लश्कर-ए-तैयबा की मदद से फंडिग कर रहे थे।

कहां से आता है पैसा?

कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए भारत और दूसरे देशों से पैसे इकट्ठे किए जाते हैं। पैसा इकट्ठा करने के लिए ना केवल हवाला बलकि और भी कई गलत रास्ते अपनाए जाते हैं। जो पैसे इकट्ठा होता है उसका इस्तेमाल कश्मीर में पत्थरबाजी, स्कूलों को जलाने, पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पुहंचाने और भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में होता है।

हुर्रियत पर UAPA लगाने का फैसला कई टेरर फंडिंग के मामलों के बाद लिया जा रहा है। आतंकवादी मामलों की जांच एजेंसी NIA ने साल 2017 में टेरर फंडिग की जांच की थी जिसके बाद हुर्रियत के दोनों धड़ों के दूसरी पंक्ति के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जिनमें गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद, बिजनेसमैन जहूर अहमद वताली, गिलानी का करीब अयाज अकबर, पीर सैफुल्ला, शाहिद-उल-इस्लाम, जेकेएलएफ के मुखिया यासीन मलिक और दुखतरान-ए-मिल्लत की चीफ आसिया अंदराबी भी शामिल हैं।

हुर्रियत पर प्रतिबंध लगाने का ये भी एक कारण

एक और मामला जिस वजह से सरकार हुर्रियत पर प्रतिबंध लगाने जा रही है जिसमें महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के युवा नेता वहीद-उर-रहमान पर्रा ने सैय्यद अहमद शाह गिलानी के दामाद को कश्मीर में गड़बड़ी फैलाने के लिए 5 करोड़ रुपये दिए थे।

दरअसल ये रकम साल 2016 में हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद कश्मीर में अशातिं फैलाने के लिए दी गई थी।

वानी की मौत के बाद पीडीपी के युवा नेता पर्रा ने गिलानी के दामाद अलताफ शाह से संपर्क किया और उसे कश्मीर में पत्थरबाजी करवाने के लिए पैसे मुहैया कराए थे।

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