काबुल धमाके का जिम्मेदार ISIS और ISIS-K आतंकी संगठन क्या है, जानें पूरा इतिहास

SUNIL MAURYA

27 Aug 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:04 PM)

Afghanistan में ISIS के हमले से उसके तालिबान के साथ होने की आशंका, America की ISIS से पुरानी दुश्मनी, Afghanistan become house of multiple terrorist groups. Read more crime news in Hindi on CrimeTak

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ISIS & ISIS-K History :

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में सीरियल ब्लास्ट के लिए आतंकी संगठन ISIS ने जिम्मेदारी ली है. हाल में ही इस्लामिक स्टेट संगठन ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान में कब्जा करने का विरोध भी किया था. इसके साथ ही धमकी भी दी थी. ऐसे में ये साफ है कि इस्लामिक स्टेट तालिबान के खिलाफ है.

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लेकिन इस हमले में आम लोगों की मौतें हुईं हैं. अमेरिकी सैनिकों की जानें गईं हैं. ऐसे में कह सकते हैं कि इस्लामिक स्टेट फिर से दुनिया के सामने विकराल रूप दिखा रहा है. आइए जानते हैं इस्लामिक स्टेट के इतिहास के बारे में...

साल 1999 में इस संगठन का हुआ जन्म

इस्लामिक स्टेट की शुरुआती स्थापना साल 1999 में मानी जाती है. हालांकि, इसकी स्थापना पहले जमात अल-ताव्हिद वल जिहाद के नाम से हुई थी. इस संगठन की सक्रियता उस समय बढ़ी जब अल-कायदा ने अमेरिका पर वर्ष 2001 में आतंकी हमला किया. इस हमले के बाद अमेरिका ने अल-कायदा को ख़त्म करने के लिये इराक में प्रवेश किया.

उसी दौरान अलकायदा इन इराक (AQI) से अलग हुए लड़ाकों ने इस्लामिक स्टेट संगठन बनाया था. साल 2004 में जमात अल-ताव्हिद वल जिहाद संगठन के साथ मिलकर ये इस्लामिक स्टेट बना और इसकी शुरुआत अबु मुसाब अल जराकी (Abu Musab Al Zaraqawi) ने की. हालांकि ये चर्चा में उस समय और आया जब 2007 में इराक में अमेरिकी सैनिकों से लड़ाई हुई.

इस्लामिक स्टेट ऐसे बना ISIS

साल 2011 में सीरिया में असद की तानाशाह सरकार के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे. कुछ समय बाद ये गृह-युद्ध में बदल गया. वहीं, इराक में भी सद्दाम हुसैन की मौत के बाद अस्थिरता की स्थिति आ गई थी. ऐसे में इराक और सीरिया के हालात ऐसे बन गए कि यहां आसानी से कोई भी आतंकी संगठन पैर पसार सकता था. और फिर हुआ भी वही. इसी का लाभ उठाकर इस्लामिक स्टेट ने वहां के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया.

इसके बाद साल 2013 के अंत में ही इसने अपना नाम इस्लामिक स्टेट से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक़ एंड सीरिया ISIS (Islamic State of Iraq and Syria) कर लिया था. हालांकि, इसकी घोषणा साल 2014 में मोसूल पर कब्ज़ा करने के बाद हुई थी. इसके बाद 29 जून 2014 को अबु बकर अल बग़दादी (Abu Bakr Al Baghdadi) ने खुद को इस्लामिक विश्व का खलीफा घोषित कर दिया था.

सुन्नी समुदाय का रहनुमा बताया ISIS ने

पश्चिम एशिया के इन देशों में प्रमुख रूप से इस्लामी मान्यताएं हैं. हालांकि, इस क्षेत्र में इस्लाम के भीतर ही लोग अलग-अलग समुदाय के हैं और कट्टरता भी दिखाते हैं. जैसे शिया, सुन्नी और कुर्द में यहां के लोगों का विभाजन है. इस वजह से यहां सांप्रदायिक संघर्ष भी होते रहते हैं. माना जाता है कि सीरिया और इराक में सुन्नी और शिया आबादी ज्यादा है.

इराक के पूर्व तानाशाह व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन सुन्नी समुदाय से थे. लेकिन इनकी मौत के बाद इस्लामिक स्टेट ने दावा किया कि इराक में सुन्नियों का शोषण किया जा रहा है. इसलिए ISIS ने अपनी छवि को सुन्नी संप्रदाय के रहनुमा के तौर पर बताया.

इसी वजह से शोषण के शिकार हो रहे सुन्नी समुदाय के लोग तेजी से इस गुट से जुड़ने लगे. यही वजह है कि जबरन वसूली के अलावा सुन्नी समर्थकों से भी इस संगठन को काफी आर्थिक मदद मिली जिसकी वजह से ये दुनिया में सबसे धनी आतंकी संगठन बन गया.

बगदादी ने दुनिया के कई देशों में किया विस्तार

कहने के लिए ISIS का नाम इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया है. लेकिन इसका विस्तार अब दुनिया भर में है. ये विस्तार बगदादी ने किया. इसने पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी एशिया तथा भारत समेत विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी IS के प्रसार की बात कही.

हालांकि, विशेषज्ञ बताते हैं कि विश्व स्तर पर और भारत में इसको अधिक सफलता नहीं मिल पाई. लेकिन इस दौरान ये जरूर हुआ कि कई आतंकी गुट ISIS से जरूर जुड़ गए. जिसका उसे फायदा मिल रहा है.

इस आतंकी संगठन और इससे जुड़े संगठनों की बड़ी घटना का तब पता चला जब इसने रूस के एक नागरिक विमान को मार गिराया. ISIS ने अपने से जुड़े संगठनों को विलायत का नाम दिया है. यहां विलायत का मतलब एक प्रशासनिक इकाई के रूप में निकाला जा सकता है.

इंटरनेट से जुड़कर कराता है लोन वुल्फ अटैक, जानें

इस्लामिक स्टेट ने इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने प्रचार-प्रसार में किया. ना सिर्फ प्रचार किया बल्कि दुनिया के कई देशों में छोटे आतंकी संगठनों के संपर्क में आया. इंटरनेट के जरिए ही उन्हें ट्रेनिंग दी और एक नए अटैक का चलन शुरू किया. इसी ट्रेनिंग की वजह से दुनिया में खासतौर पर पश्चिमी विश्व और पूर्वी एशिया में आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ.

दरअसल, इन घटनाओं में इस्लामिक स्टेट सीधे तौर पर शामिल नहीं हुआ. लेकिन किसी खास व्यक्ति यानी आत्मघाती हमले या फिर छोटे समूह द्वारा इसे अंजाम दिलाया गया. इन घटनाओं को अंजाम देने वालों का किसी भी आतंकवादी संगठन से कोई सीधे संबंध नहीं होता था.

इस प्रकार के हमलों को ही लोन वुल्फ अटैक (Lone Wolf Attack) कहा गया. इसमें आतंकी इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा IS की विचारधारा से जुड़ता था और फिर ट्रेनिंग लेकर हमले को अंजाम देता है.

काबुल में आत्मघाती हमला भी कहीं लोन वुल्फ अटैक तो नहीं?

दरअसल, जिस तरह से ISIS ने इस घटना की जिम्मेदारी ली है उससे भी ये लोन वुल्फ अटैक जैसे हमले की आशंका जताई जा रही है. इसके पीछे वजह ये है कि अफ़ग़ानिस्तान में जो इस्लामिक स्टेट के लिए आतंकी गुट काम करता है उसी का नाम है इस्लामिक स्टेट खुरासन ( ISIS-K) है.

ये आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के लिए रिमोट की तरह काम करता है. उसी से ट्रेनिंग लेकर लोन वुल्फ अटैक करता है. यानी इसमें इस्लामिक स्टेट सीधे तो शामिल नहीं होता है लेकिन साजिश के पीछे वही रहता है.

क्या है खुरासन (What is Khorasan)

खुरासन दक्षिण एशिया के ईरान के उत्तर पूर्वी इलाके में है. इसका एक हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान और सेंट्रल एशिया में भी आता है. इस इलाक़े के विद्रोही अफगानिस्तान-पाकिस्तान के हैं. इन्होंने अपना मुख्यालय अफगानिस्तान के नांगरहार इलाके में बनाया है.

ये एरिया पाकिस्तान से भी जुड़ा है. ISIS-K संगठन पहले तालिबान का ही समर्थक था लेकिन अमेरिका की एयरस्ट्राइक और फिर तालिबान के साथ वार्ता करने की वजह से ये विद्रोही हो गए.

इनका मकसद खुरासन राज्य की स्थापना करना है. अमेरिकी हमलों की वजह से साल 2016 तक ISIS-K में 1500 से 2000 आतंकवादी ही बचे थे. इसके बाद अप्रैल 2017 में अमेरिका ने इस आतंकवादी संगठन के नांगरहार राज्य में मुख्यालय के ठीक ऊपर बम गिराया था.

जिसमें 30 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए थे. इसके बाद से ही ये संगठन हमले की फिराक में था. साल 2020 में ISIS-K ने शिहाब अल-मुहाजिर को अपना नया लीडर घोषित किया था.

इस्लामिक स्टेट इसलिए तालिबान से है नाराज

इस्लामिक स्टेट की तालिबान के प्रति नाराजगी की सबसे प्रमुख वजह है अमेरिका. दरअसल, पहले इसने ISIS-K के मुख्यालय पर एयरस्ट्राइक की और फिर अमेरिका ने 2020 में तालिबान के साथ दोहा वार्ता की और अफ़ग़ान से सैनिकों को हटाने की बात कही थी.

इसके बाद जुलाई 2021 तक आधे से ज्यादा अमेरिकी सैनिक हटा भी लिए गए और धीरे-धीरे करते तालिबान ने अफ़ग़ान की सत्ता हथिया ली. इसलिए पूरे घटनाक्रम को लेकर हाल में ही इस्लामिक स्टेट ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि तालिबान को वहां कोई जीत हासिल नहीं हुई है बल्कि अमेरिका ने इस मुल्क की कमान उन्हें सौंप दी है.

इस्लामिक स्टेट ने अपने साप्ताहिक अख़बार अल-नबा के 19 अगस्त के संपादकीय में ये बात लिखी थी. ये कहा था कि भले ही ये अमन के लिए जीत हो सकती है, लेकिन इस्लाम के लिए नहीं. ये सौदेबाज़ी की जीत है ना कि जिहाद की. ये भी दावा किया था कि नया तालिबान इस्लाम का नक़ाब पहने हुए बहुरूपिया है.

जिसका इस्तेमाल अमेरिका मुसलमानों को बरगलाने और क्षेत्र से इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति ख़त्म करने के लिए कर रहा है. हालांकि, यहां बता दे कि एक समय ऐसा भी था जब तालिबान और इस्लामिक स्टेट मिले भी हुए थे.

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