जुर्म की खान है पश्चिमी यूपी? इलेक्शन में वेस्टर्न यूपी पर क्राइम तक के सफर का निचोड़

FARRUKH HAIDER

27 Jan 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:12 PM)

UP ELECTION 2022

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20 जनवरी 2022

सुबह 8 बजे

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क्राइम तक की ये इनोवा कार फर्रुख हैदर, चिराग गोठी, प्रिवेश पांडे और कैमरापर्सन विनोद कुमार को लेते हुए नोएडा के फिल्म सिटी से मेरठ एक्सप्रेस हाईवे पर चढ़ी, यहां से हमारा पहला सफर था शामली ज़िले का कैराना। यूं तो कैराना शामली ज़िले में आता है लेकिन इस लोकसभा और विधानसभा सीट का नाम कैराना के नाम पर है। करीब 2 घंटों के सफर के बाद हमें सड़कों के दोनों तरफ सरसों और गन्ने के खेतों के नज़ारे दिखाए देने लगे। साथ ही सियासी रंगत भी नज़र आने लगी। बीच बीच में रुककर हमने लोगों से बात की तो हमें इस बात का अंदाज़ा हो गया कि यहां हर गांव हर कस्बे का समीकरण अलग अलग है, कोई सपा के साथ, कोई लोकदल के साथ तो कोई बीजेपी का हिमायती नज़र आया। ये अपने अपने नज़रिए थे लेकिन इन तमाम लोगों से बातचीत में एक बात तो साफ हो रही थी कि वेस्टर्न यूपी को लेकर हिंदू मुसलमान की जो खबरें हमें मीडिया पर दिखाई जा रही थीं हकीकत उससे जुदा है। कुछेक लोगों को छोड़ दें तो यहां धर्म लोगों के लिए मुद्दा नहीं था, आबादी के लिहाज़ से ये पूरा इलाका हिंदू मुस्लिम बराबरी का है, जनसंख्या के लिहाज़ से भी और भाईचारे के लिहाज़ से भी। हमने मुसलमानों से भी बात की और हिंदुओं से भी लेकिन इस बातचीत का निचोड़ ये था कि

"हम एक हैं और सियासी लोग और मीडिया हमें अपने फायदे के लिए अलग अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।"

20 जनवरी 2022

दोपहर 12 बजे

हम कैराना के एक भीड़ भाड़ वाले इलाके में खड़े हुए थे, और जैसे ही हमने कैमरा निकाला लोगों ने हमें घेर लिया। सवालों जवाबों का सिलसिला शुरु हुआ, सबसे पहला ही सवाल ये दागा गया कि हमने सुना है कि यहां हिंदू मुसलमानों में टसल है? इसका जवाब हमें हैरान करने वाला मिला, जो टोपी लगाए थे वो भी और जो टीका लगाए थे वो भी एक सुर में ये कहते हुए नज़र आए कि

"आप हमें बांटने की कोशिश ना कीजिए, हम यहां एक साथ मिलजुल कर रहते हैं, एक दूसरे के बिना हमारा गुज़ारा नहीं है।"

जैसे जैसे हमने लोगों को और खंगालना शुरु किया वैसे वैसे हमें ये एहसास होता गया कि मीडिया और सियासी लोगों ने कैराना की गलत तस्वीरें पेश की है। हमारे दौरे के दौरान ही गृहमंत्री अमित शाह भी आने वाले थे और वो उस परिवार से मिलने वाले थे जो बकौल सियासी लोग यहां से पलायन कर गए थे। हम उस परिवार से पहले ही मिलने गए, उससे मुलाकात तो नहीं हुई लेकिन आसपास के लोगों ने बताया कि यहां से पलायन करने वालों की वजह अलग अलग थी,

"हम ये नहीं कहते कि दंगों की वजह से लोगों ने पलायन नहीं किया, लेकिन ज़्यादातर लोग काम-धंधे और दूसरी वजहों से भी बाहर गए हैं। कैराना से हरियाणा और दिल्ली की सीमा लगी हुई है इसलिए ज़्यादातर लोग इन इलाकों में भी गए।"

20 जनवरी 2022

शाम 4 बजे

कैराना गैंगस्टर मुकीम काला की वजह से भी सुर्खियों में रहा, वो मुकीम काला जिसे जेल में ही मार दिया गया। हम उसके गांव पहुंचे तो लोगों ने हमें घेर लिया, उन्हें लगा कि हम उनके सेंटीमेंट के खिलाफ ये खबर बनाने आए हैं। मगर हमारी टीम ने उन तमाम लोगों को अपनी अपनी बात रखने का मौका दिया, जिसका लब्बोलुआब ये निकला कि उन्हें इस बात को मानने से गुरेज़ नहीं है कि मुकीम काला गैंगस्टर था, बल्कि उनका ये कहना था कि उसे जिस तरह जेल के अंदर मारा गया, गुस्सा उस बात का है। इंसाफ करने का हक सिर्फ अदालत को है, सरकारों को नहीं। यहां हमें कुछ ऐसे लोग भी मिले जो इस बात से नाराज़ थे कि चुनाव आते ही हिंदू मुसलमान मुद्दा क्यों बना दिया जाता है, जबकि हम साथ रहते हैं और इस वजह से हमारे रिश्तों में दरार डालने की कोशिश की जाती है। जिन्ना के मुद्दे पर भी यहां के मुसलमानों ने खुलकर बोला और जिन्ना को मुसलमानों का सबसे बड़ा विलेन बतया।

20 जनवरी 2022

रात 8 बजे

चुनाव से ऐन पहले सपा उम्मीदवार नाहिद हसन की गिरफ्तारी भी कैराना को सुर्खियों में लाई क्योंकि उन पर जो मुकदमें लगाए गए उसे बीजेपी ने चुनाव का मुद्दा बना लिया। नाहिद हसन जेल में थे लिहाजा हमने उनके परिवार के दूसरे सदस्यों से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन कोई भी बात करने को राज़ी नहीं हुआ। नॉमिनेशन कैंसिल हो जाने के डर से नाहिद हसन की बहन इकार हसन निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से पर्चा भर रही थीं। हमने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हमसे बात करने से इनकार कर दिया, लेकिन बहुत मानमुनव्वल करने के बाद उनके मामा हमसे बात करने के लिए राज़ी हो गए। हमारी टीम नाहिद हसन के घर पहुंची तो वहां अच्छी खासी भीड़ जमा थी वहां जमा लोगों में हिंदू मुसलमान सब शामिल थे। खुद एक हिंदू नेता ने हमें नाहिद हसन के घर में एक "ऊँ" लिखी तस्वीर को दिखाते हुए बताया कि बाहरी नेता हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। और नाहिद हसन को चुनावों की वजह से जेल में ठूंसा गया है, जबकि उन पर लगे ज़्यादातर मुकदमें लोगों की मदद करने के दौरान हुए। ज़ाहिर है हलवाई अपनी मिठाई को कभी खराब नहीं कहेगा, इसलिए फैसला करने की ज़िम्मेदारी अदालत की है।

21 जनवरी 2022

सुबह 10 बजे

कैराना से होते हुए हमारी टीम मुज़फ्फरनगर आ गई, जहां हमने उन परिवारों से मुलाकात की जो 2013 के दंगों के दौरान प्रभावित हुए। हालांकि वो लोग अब अपने पुराने ज़ख्मों को भूलकर ज़िंदगी में आगे बढ चुके थे। हम उन ज़ख्मों को कुरेदना नहीं चाहते थे लेकिन सच सामने लाने के लिए हमने उनसे बात की, हम कई लोगों से मिले जिन्होंने अपने अपनों को खोया था उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे हमेशा साथ रहने वाले लोग अचानक एक दूसरे के दुश्मन बन गए थे। हम उन इलाकों में भी गए जहां से कुछ मुस्लिम परिवार पलायन कर गए यहां हमें एक ऐसी मस्जिद मिली जिसपर दंगों के बाद से ताला लगा हुआ था। हालांकि इलाके के लोगों का कहना था कि यहां के मुस्लिम परिवार खुद अपनी मर्ज़ी से यहां से पलायन कर गए।

21 जनवरी 2022

दोपहर 2 बजे

हम एक चौराहे के किनारे जमा थे, हमारी गाड़ी और कैमरे को देखकर कुछ अचानक जमा होने लगे, हमें लगा कि शायद हमसे कुछ गलती हो गई लेकिन उन लोगों ने कहा कि उनमें सभी समुदाए और धर्मों के लोग है और हमें उनसे बात करनी चाहिए। हमने उनकी बात मान ली और बातचीत का सिलसिला शुरु हुआ। इस भीड़ में तीन तरह के लोग थे, पहले बीजेपी समर्थक, दूसरे सपा समर्थक और तीसरे वो लोग जो किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं थे। बीजेपी समर्थकों का कहना था कि मुख्यमंत्री योगी ने अपने कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था टाइट कर दी है और अब यहां अपराध के पहले जैसे हालात नहीं है, सपा के समर्थकों का कहना था कि रोज़गार और भाईचारे के मुद्दे पर योगी सरकार फेल रही है। जबकि तीसरे तरह के लोगों का कहना था कि सरकार जो भी आए वो रोज़गार, किसान और भाईचारे का ख्याल रखे।

22 जनवरी 2022

सुबह 11 बजे

कैराना में दोपहर ढाई बजे गृहमंत्री अमित शाह आने वाले थे लिहाज़ा हमें मुज़फ्फरनगर से दोबारा कैराना लौटना पड़ा। हर तरफ पुलिस का जमावड़ा था, इस दौरान वो जहां जाने वाले थे उसके रास्ते में हमें एक ऐसा पुलिस थाना मिला जो मुगलकालीन पुलिस थाना था। मुगलों के ज़माने से बना ये पुलिसथाना अब तक उसी हालत में ज़िंदा है हालांकि अलग बगल की जगहों पर आधुनिक निर्माण हो चुका है। ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर जब वेस्टर्न यूपी की तरफ आया करते थे तो वो कैरान रुकते थे।

22 जनवरी 2022

शाम 4 बजे

एक तरफ गृहमंत्री अमित शाह लोगों से मिल रहे थे और दूसरी तरफ हमारी टीम लोगों से बात कर रही थी। इस बातचीत में एक चीज़ साफतौर पर निकल कर आई कि लोगों को हिंदू मुसलमान के मुद्दों से ज़्यादा रोज़गार की ज़रूरत थी। हालांकि काफी लोग योगी सरकार के दौरान कानून व्यवस्था में हुए सुधार से खुश नज़र आए लेकिन उन्होंने रोज़गार के मुद्दे अभी भी अखरते हैं।

23 जनवरी 2022

सुबह 10 बजे

रात में करीब 4 से 5 घंटे तक का सफर तय कर के हम सहारनपुर पहुंचे। और सुबह होते ही काम पर निकल पड़े, यहां सबसे पहले हमने रेलवे स्टेशन पर कुलियों से बात की। इसलिए क्योंकि विधानसभा चुनावों में कुलियों की सुनी नहीं जाती है, लिहाज़ा हमने उनसे बात की। कुलियों ने बताया कि उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बार बार रेलमंत्रियों के बदलने से फायदा उन तक पहुंचा ही नहीं। हमें देखकर दूसरे लोग भी जमा होने लगे जो योगी की कानून व्यवस्था से खुश नज़र आए लेकिन रोज़गार का मुद्दा भी उनके लिए अहम था।

23 जनवरी 2022

दोपहर 12 बजे

हम सहारनपुर जाएं और देवबंद की बात ना हो ऐसा मुमकिन नहीं। दोपहर तक हम देवबंद पहुंचे और वहां लोगों से बात करने की कोशिश की। भीड़ में ज़्यादातर मुसलमान थे जिनका एक सुर में कहना था कि सरकार कोई भी बने बस हमें नज़रअंदाज़ ना करें। मुख्यमंत्री योगी के 80/20 के बयान पर लोग थोड़ा दुखी नज़र आए, उनका कहना था कि इस 80/20 में उन्हें भी शामिल किया जाना चाहिए।

23 जनवरी 2022

दोपहर 2 बजे

देवबंद में लोगों से बात करते करते हमें उस तहरीक या कहें आंदोलन की याद आई जो देवबंद से शुरु हुई थी। रेशमी रुमाल तहरीक। 1857 की क्रांति से पहले देवबंद और आसपास के इलाकों के कुछ विद्वान लोगों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ एक रेशमी रुमाल तहरीक की शुरु की। ये तहरीक एक गुप्त आंदोलन था क्योंकि उस दौर में अंग्रेज़ों के जासूस किसी भी आंदोलन की पोल उसके शुरु होने से पहले ही खोल दिया करते थे। यहां उस पुरानी इमारत जिसमें ये तहरीक शुरु हुई और कुछ तस्वीरें हमें दिखाई गईं। जो अपने इतिहास को बयां कर रही थी। इसमें हिंदू स्वतंत्रता सेनानियों के साथ साथ मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों की भी लंबी फेहरिस्त थी।

23 जनवरी 2022

शाम 4 बजे

देवबंद से निकलते निकलते हमें कुछ लोग मिले जिन्होंने हमें एक ऐसे गांव के बारे में बताया जो बेहद अनोखा था। एक ऐसा गांव जहां पिछले 500 सालों से नशे की नो-एंट्री थी। कहते हैं 500 साल पहले यहां एक बाबा आए थे और उन्होंने गांववालों से कहा कि अगर इस गांव के लोग नशे से दूर रहेंगे तो हमेशा खुशहाल रहेंगे।

24 जनवरी 2022

सुबह 10 बजे

क्राइम तक की टीम देवबंद से होते हुए आज़म खान के गढ रामपुर पहुंची, हालांकि रामपुर का नाम नवाबों के नाम के अलावा रामपुरी चाकू के नाम से भी मशहूर है। लिहाज़ा हमने रामपुरी चाकू को तलाशना शुरु कर दिया। वो रामपुरी चाकू जो बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं, लग जाए तो खून निकल आता है। हालांकि मौजूदा दौर में रामपुरी चाकू की धार कुंद होती जा रही है। ना तो बिक्री है और ना ही इसे बनाने वाले कारीगर बचे हैं। सिर्फ एक कारीगर अमीन भाई बचे हैं जो इसे ज़िंदा रखे हुए हैं।

24 जनवरी 2022

शाम 7 बजे

इस पूरे दौरे पर, वेस्टर्न यूपी का वो चेहरा जो सबसे ज़्यादा नामचीन है वो है आज़म खान, जिन्हें कई मामलों में पिछले करीब 2 सालों से जेल में रखा गया है, उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म को हाल ही में ज़मानत मिली है। इस दौरे के आखिर में हमने अब्दुल्लाह आज़म को संपर्क किया। शुरु में उन्होंने मना किया लेकिन काफी मनाने के बाद वो हमसे बात करने को तैयार हुआ।

कुल मिलाकर 6 दिनों के इस सफर में हमें अलग अलग तरह के रंग दिखाई दिए, जीवन के रंग और सियासत के रंग। एक बात जो इस सफर में समझ आई, वो ये कि एक आम आदमी को इससे मतलब नहीं कि सत्ता में कौन है, उसे मतलब है अपने कारोबार से, रोज़गार से, सुरक्षा व्यवस्था से और आपसी भाईचारे से। क्योंकि सौ बात की एक बात ये है कि नफरत में जीना किसी को अच्छा नहीं लगता।

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