Phoolan Devi : फूलन नाम सुनकर 'फ्लावर' समझा क्या? फूलन 'फ्लावर' नहीं 'फायर' थी

चंबल के बीहड़ की रानी कहे जाने वाली फूलन देवी की पूरी कहानी, जाने की हालातों की वजह से बन ना पड़ा डकैत, जिंदगी से जुड़े कुछ यादें, Read crime news Hindi, crime stories in Hindi, वायरल फोटो on Crime Tak.

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13 Feb 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:13 PM)

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हालातों ने बनाया डकैत

बीहड़ के जंगलों का नाम सुनते ही मन में बंदूक थामे और घोड़े पर बैठे ख़तरनाक डाकू का डर लोगों के मन मे आता है। ख़तरनाक डाकूओं की लंबी फेहरिस्त में जहां एक तरफ़ निर्भय गुर्जर, सुल्ताना डाकू, लवली डाकू, पान सिंह तोमर, मल्खान सिंह, रज्जन गुर्जर, फक्कड़, लालाराम डाकू जैसे नाम शामिल है वहीं महिला डाकूओं का भी एक समय पर दबदबा हुआ करता था। फूलन देवी के नाम से एक समय पर लोग दहशत में रहते थे। लेकिन फूलन देवी कैसे बनी आतंक की दुनिया में महिला डकैत का सबसे बड़ा नाम। मजबूरियां, हालात या फिर शौक.. हर किसी के डकैत बनने की कहानी अलग होती है। लेकिन फूलन देवी के डाकू बनने का किस्सा क्या था, क्यों एक सामान्य लड़की चंबल की दस्यु रानी बन गई इसकी कहानी बड़ी लंबी है।

फूलन देवी बनने की कहानी

Phoolan Devi Biography: 10 अगस्त 1963 को फूलन देवी का जन्म गरीब घर में हुआ था। उस समय के माहौल में भी फूलन देवी दब्बू नहीं थी।फूलन देवी ने एक बार अपनी मां से सुना था कि उसके चाचा ने उनकी ज़मीन हड़प ली और इसी बात पर वो चाचा से भिड़ गई और ज़मीन के लिए धरना तक दे दिया। यहां तक की चचेरे भाई के सिर पर ईंट तक मार दी और इसी की सज़ा फूलन देवी को मिली। कम उम्र में ही उसकी शादी 30-40 साल बड़े शख्स कर दी गई। जिसके बाद फूलन देवी का हर दिन मानों नर्क में गुज़र रहा हो।बूढ़े पति ने उसका रेप किया और फिर श्रीराम ठाकुर गैंग ने। कुछ दिन बाद फूलन देवी की तबियत बिगड़ने लगी और वो अपने मायके वापस आ गई। कुछ दिन बाद जब वो वापस लौटी तो पति ने दूसरी शादी कर ली थी और फूलन देवी को फिर एक बार बेइज्ज़ होना पड़ा। फिर फूलन को अपना घर छोड़ना पड़ा।

बीहड़ का सफ़र

यही वो समय था जहां से फूलन देवी की ज़िंदगी बदली और बीहड़ की तरफ़ कदम बढ़े। फूलन का उठना-बैठना अब अलग और नए लोगों के साथ होने लगा।अब वो डाकूओं के साथ घूमने लगी थी। और इसे फूलने ने अपनी किस्मत बताई। हालाकि फूलन का डाकूओं से लगाव कैसे हुआ ये कभी साफ नहीं हो पाया। फूलन ने बीहड़ में आने का फैसला ख़ुद लिया या फिर उसे उठा कर लाया गया ये साफ नहीं हो पाया ना ही फूलन ने कभी किया।

फूलन पर मरते थे डाकू के सरदार

सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर मरता था और ये बात विक्रम मल्लाह को रास नहीं आई। विक्रम मल्लाह ने बाबू गुज्जर की हत्या कर दी और ख़ुद सरदार बन गया। इस हत्या के बाद फूलन विक्रम के साथ रहने लगी और इसी दौरान उसने अपने पति और उसकी दूसरी पत्नी को जमकर लताड़ा। अब फूलन देवी जिस गैंग में थी वो ठाकुरों के निशाने पर था क्योंकि श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर का गैंग फूलन देवी को ही बाबू गुज्जर की हत्या का ज़िम्मेदार मानता था। एक बार फूलन देवी का गैंग यानि की विक्रम मल्लाह का संगठन और ठाकुर संगठन दोनों में लड़ाई हुई और इसमें विक्रम मल्लाह मारा गया और ठाकुरों के गैंग ने फूलन को किडनैप कर 3 हफ़्ते तक बलात्कार किया।

रेप के बदले 22 ठाकुरों की हत्या

Phoolan Devi story in Hindi: यहां से फूलन भाग निकली और फिर फूलन देवी का वो रुप देखने को मिला जिसके लिए वो आज भी जानी जाती हैं। 1981 में फूलन फिर बेहमई गांव लौटी और रेप करने वालों में से 2 लोगों को पहचान लिया लेकिन बाकियों के बारे में पता नहीं चल पाया। जिसके बाद फूलन ने 22 ठाकुरों को गोली मार दी और बन गई खूंखार फूलन देवी। और राजनीतिक दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.पी.सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

फूलनदेवी का आत्मसमर्पण

आख़िरकार फूलन देवी ने आत्मसमर्पण किया और उस वक्त तक फूलन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपरहरण के मामले दर्ज थे। इसकी सज़ा भुगतने के लिए फूलन देवी जेल गईं और 11 साल सज़ा भी काटी।अब वो वक्त आया जब फूलन देवी पर राजनैतिक मेहरबानी हुई। 1993 में मुलायम सरकार ने फूलन पर लगे सभी आरोपों को वापस ले लिया। 1994 में वो जेल से बाहर आई और 1996 में वो समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ी। अब बीहड़ की दस्यु सुंदरी मिर्ज़ापुर की सांसद बन चुकी थी। फूलन का आशियाना अब जंगल, खार और टीले नहीं बल्कि अशोका रोड का शानदार बंगला था। हालाकि 1998 में वो हारी, फिर 1999 में जीत गई। 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन देवी से मिलने आया और फूलन के संगठन एकलव्य सेना से जुड़ने की बात कही। जाते वक्त शेर सिंह राणा ने गेट पर पहुंच कर फूलन को गोली मार दी और इसे बेहमई हत्याकांड का बदला बताया।14 अगस्त 2014 में अदालत ने शेर सि्ंह राणा को उम्रकैद की सज़ा सुनाई।

अब नहीं है अपराध का साया

फूलनदेवी ने बीहड़ से संसद तक का सफ़र तय किया। एक ज़माना था जब डकैतों का असर चुनाव पर पड़ता था। ना सिर्फ असर पड़ता था बल्कि सत्ता किसकी बनेगी इसमें बहुत बड़ी भूमिका होती थी। लेकिन अब डकैतों का नाम तक इन बीहड़ों से मिट चुका है। अब चुनाव पर ना तो किसी डकैत का और ना ही किसी आपराधिक फ़ैक्टर का असर पड़ता दिख रहा है।

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