दुनिया की सबसे खूनी लैब, जहां ज़िंदा इंसानों को दी जाती थी LIVE मौत!

FARRUKH HAIDER

13 Oct 2021 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:07 PM)

most dangerous lab in the world unit 731

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पिछले साल चीन के वुहान शहर से निकलने कोरोना वायरस ने दुनियाभर में हाहाकार मचा दिया, चीन पर आरोप लगाया गया है कोरोना के वायरस को वुहान की ही एक लैब में बनाया गया और उसे इसे पूरी दुनिया में छोड़ दिया गया। हालांकि अभी तक इसकी हकीकत सामने नहीं आई। मगर एक लैब ऐसी भी है, जिसे दुनिया की सबसे खतरनाक लैब माना जाता है। जिसके सामने चीन की लैब कुछ भी नहीं हैं, दरअसल, हम बात कर रहे हैं यूनिट-731 नाम की लैब की।

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दरअसल, जापान की सेना के सैनिकों ने साल 1930 से 1945 के दौरान चीन के पिंगफांग जिले में एक लैब बनाई थी, जिसका नाम 'यूनिट 731' रखा गया था। वैसे चीन का इससे कोई संबंध नहीं था, लेकिन लैब में किए जाने वाले प्रयोग चीन के लोगों पर ही किए जाते थे। जापान सरकार के पास रखे दस्तावेज में भी यूनिट 731 लैब का जिक्र मिलता है, हालांकि बहुत से दस्तावेजों को अब जला दिया गया है।

बताया जाता है कि इस लैब में ऐसे कई दर्दनाक प्रयोग किए गए, जो मजबूत से मजबूत इंसान को भी डरा सकते हैं। इस लैब में जिंदा इंसानों को यातना देने के लिए एक खास प्रयोग किया गया था जिसे फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग कहा जाता है। योशिमुरा हिसातो नाम के एक वैज्ञानिक को इस प्रयोग में बहुत मजा आता था, वो ये देखने के लिए प्रयोग करते थे कि जमे हुए तापमान का शरीर पर क्या असर होता है। इसे जांचने के लिए किसी व्यक्ति के हाथ-पैर ठंडे पानी में डुबो दिए जाते थे, जब व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से सिकुड़ जाता, तब उसके हाथ-पैर तेज गर्म पानी में डाल दिए जाते। इस प्रक्रिया के दौरान हाथ-पैर पानी में लकड़ी के चटकने की तरह आवाज करते हुए फट जाते थे, इस जांच में कई लोगों की जानें गईं, लेकिन प्रयोग को रोका नहीं गया।

बता दें कि यूनिट 731 लैब में मरूता नाम की एक शाखी थी, इसका प्रयोग तो भयंकर यातना देने वाला था। इस शाखा में हो रहे प्रयोग के तहत ये जानने की कोशिश होती थी कि आखिर इंसान का शरीर कितना टॉर्चर झेल सकता है। इसके लिए किसी व्यक्ति को बिना बेहोश किए धीरे-धीरे उनके शरीर का एक-एक अंग काटा जाता था। इसके अलावा इस लैब में इसी तरह के तमाम और भी प्रयोग किए गए। एक दूसरे प्रयोग में जिंदा इंसानों के अंदर हैजा या फिर प्लेग के पैथोजन (वायरस) डाल दिए जाते। इसके बाद संक्रमित व्यक्ति के शरीर की चीरफाड़ कर ये देखने की कोशिश होती थी कि इन बीमारियों का शरीर के किस हिस्से पर क्या असर होता है. प्रयोग के लिए संक्रमित इंसान के मरने का भी इंतजार नहीं किया जाता था बल्कि उसे जिंदा रहते हुए ही चीरफाड़ की जाती थी। अगर कोई व्यक्ति इतनी यातना के बाद भी जिंदा बच जाए, तो उसे जिंदा जला दिया जाता था।

ऐसा माना जाता है कि इस लैब की सच्चाई दुनिया को पता न चले इसलिए इसके ज्यादातर रिकॉर्ड को जला दिया गया, ऐसा कहा जाता है कि इस रिसर्च में शामिल लोग जापान के कई विश्वविद्यालयों या अच्छे जगहों पर काम करने लगे थे। लेकिन आज तक इस लैब से संबंधित कोई चेहरा सामने नहीं आया और ना ही इसमें काम करने वाले किसी कर्मचारी की पहचान सामने आई।

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