जाने क्या है Section 302 IPC, इस से जुड़ी धाराएं

CHIRAG GOTHI

09 Nov 2022 (अपडेटेड: Mar 6 2023 4:29 PM)

क्या है Section 302 कब लगयी जाती है, और मर्डर से जुड़ी धाराएं और सजा के प्रावधान संक्षेप में, Read more crime news in Hind, crime story, क्राइम न्यूज़, वायरल वीडियो and more on CrimeTak.in

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क्या है IPC की धारा 302? (What is IPC 302 in Hindi)

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धारा 302 (IPC Section 302) भारतीय दंड संहिता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हत्या के आरोपी व्यक्तियों पर धारा 302 के तहत कोर्ट में मुकदमा चलाया जाता है। इसके अलावा, हत्या के मामले में आरोपी को दोषी पाए जाने पर धारा 302 के तहत सजा दी जाती है। धारा 302 के अनुसार आरोपी को या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड (हत्या की गंभीरता के आधार पर) के साथ - साथ जुर्माने की सजा दी जाती है। हत्या से संबंधित मामलों में न्यायालय के लिए विचार का प्राथमिक बिंदु आरोपी का इरादा और उद्देश्य है। यही वजह है कि यह महत्वपूर्ण है कि आरोपी का उद्देश्य और इरादा इस धारा के तहत मामलों में साबित हो।

धारा 302 में सजा का प्रावधान (Punishment IPC Section 302 in Hindi)

उत्तर : भारतीय दंड संहिता की धारा 302 में हत्या के लिए सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार जो कोई भी हत्या करता है उसे दण्डित किया जाता है :

- मौत

- आजीवन कारावास

- दोषी भी जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा

केवल RAREST से RAREST मामले में मृत्युदंड

बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य ; एआईआर 1980 एससी 898 ;। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि इस मामले में यह अनिवार्य है कि मौत की सजा केवल दुर्लभतम मामलों में ही दी जा सकती है। बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य के मामले में कुछ मानदंड निर्धारित किए गए थे जिनका पालन किसी अभियुक्त को मृत्युदंड देने से पहले किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सांखला के मुताबिक, मूल सिद्धांत यह है कि मानव जीवन बहुत मूल्यवान है और मौत की सजा केवल तभी दी जानी चाहिए जब यह अनिवार्य हो और सजा का कोई अन्य विकल्प न हो और ऐसे मामलों में भी जहां अपराध की सीमा बहुत ही जघन्य हो।

हाफ मर्डर में कौन सी धारा लगती है?

उत्तर : हाफ मर्डर शब्द किसी भी कानून की किताब में कहीं नहीं लिखा है। लेकिन लोग लोकप्रिय रूप से 'हत्या के प्रयास' के अपराध को हाफ मर्डर (Half Murder) कहते हैं। इस अपराध के लिए केवल एक धारा है। यह आईपीसी की धारा 307 है।

ऐसे कई मामले हैं जहां एक व्यक्ति पर हमला किया जाता है और उसे कई चोटें आती हैं लेकिन उसकी मृत्यु नहीं होती है। इस मामले में धारा 324 या 326 आईपीसी भी कई बार लागू होती है।

आईपीसी की धारा 307 को आकर्षित करने के लिए चोटों की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है। एक भी चोट या कोई चोट इस खंड को आकर्षित नहीं कर सकती है। इसमें अधिकत्तम सजा आजीवन कारावास से लेकर जुर्माने तक का प्रावधान है।

हाथ पैर टूटने पर कौन सी धारा लगती है?

उत्तर : IPC की धारा 320 - यानी गंभीर चोट मारना

धारा 325 - गंभीर चोट पहुंचाने के लिए सजा

स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने के लिए दंड । जो कोई भी स्वेच्छा से गंभीर चोट का कारण बनता है, उसे किसी भी अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है।

गोली चलाने पर कौन सी धारा लगती है?

धारा 326 - दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाला कार्य

जो कोई भी इतनी जल्दबाजी या लापरवाही से मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालता है उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे एक अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। तीन महीने या जुर्माने से, जो ढाई सौ रुपये तक हो सकता है या दोनों से।

आईपीसी की धारा 307 क्या है ?

हत्या की कोशिश

वरिष्ठ वकील कपिल सांखला के मुताबिक, कोई भी इस तरह के इरादे या ज्ञान के साथ कोई कार्य करता है, और ऐसी परिस्थितियों में, यदि वह उस कार्य से मृत्यु का कारण बनता है, तो वह हत्या का दोषी होगा, उसे किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस साल तक हो सकती है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा। यदि इस तरह के कृत्य से किसी व्यक्ति को चोट लगती है, तो अपराधी या तो आजीवन कारावास या इस तरह की सजा के लिए उत्तरदायी होगा।

मर्डर केस में कितने दिनों में और कैसे जमानत मिलती है ?

ये हरेक केस के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। किसी भी जघन्य अपराध में चार्जशीट दाखिल होने के बाद बेल के लिए आरोपी एप्लाई कर सकता है। हत्या एक गैर-जमानती अपराध है जिसके लिए पुलिस द्वारा जमानत नहीं दी जा सकती है और यह पूरी तरह से अदालत के दायरे में आता है। सीआरपीसी (CrPC) की धारा 437 और 439 के तहत आरोपी जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

धारा 307 में जमानत कैसे मिलती है?

वरिष्ठ वकील कपिल सांखला के मुताबिक, ये पूर्णत: अदालत में निर्भर करता है कि वो आरोपी को कब जमानत दे। अगर अदालत को लगता है कि आरोपी सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है तो इस स्थिति में उसे जमानत नहीं मिलती है।

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